“बच्चा
अंधेरे से डरता है बाबा,
फिर एक दिन वो बड़ा हो जाता है”
राम बलराम,1980 निर्देशक: विजय आनंद लेखक: कमलेश्वर
***
आँखें मूँदे निभाए
जाते
तो निभ जाते हैं
रिश्ते-नाते
सौहार्द से भरे
हँसते-मुस्कुराते
एक दिन मगर
खुल जाती है आँख
दिखने लगता है पर्दे के पीछे का भी सच
मन के बंद कमरों का
अँधेरा
और उस अँधेरे में
आदमी,आदमी को
सामने फन काढ़े
खड़ा पाता है
“बच्चा अँधेरे से
डरता है, बाबा !
फिर एक दिन वो
बड़ा हो जाता है !”
यूँ बड़ा होना
बच्चे का
एक त्रासदी है
तल्ख तो है, मगर सच यही है !
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