एक क्लिक की बदौलत !
१
वाणी जयराम की आवाज—
बोले रे पपीहरा...
बाहर जो घिरे हैं
बादल
मन में भी घिर आए हैं
मन हो गया है हरा
सबकुछ जैसे ठहरा-ठहरा
लेकिन
घड़ी की सूई कमबख्त...
टिक् टिक्
नाथे हुए है दिनचर्या
को
चलो रे मन
बस्ता उठाओ !!
२
तकते हैं
सूरज को
हँसते हैं
सूरजमुखी खिल-खुलकर
बहुत दिन हुए
किसी को
देखा नहीं है
सूरजमुखी-सा हँसते !!
३
तस्वीर किसी की
नज़र किसी की
असर किसी पर
खबर किसी की
तस्वीरों से झाँकती है
मुस्कुराहट
मौसम छू जाता है
एक
क्लिक की बदौलत !
४
बादल गरजे
बिजली कड़की
याद आ गए
दास तुलसी
घन घमंड नभ गरजत घोरा......
५
झील का पानी
चादर चाँदी की
झिलमिलाती
६
फूल गेंदे के
एक नहीं
कई-कई
मन हुआ
फिर-फिर
थई-थई !!
७
चंद लम्हों में
तय हो जाते हैं
रास्ते
इक उम्र के
इक
उम्र लग जाती है
उन
लम्हों तक आने में
८
आँख में
चमका सूरज
महिषासुरमर्दिनी
क्रोध भर
हर जाए
सारा
तम-तामस
अन्तर भी हो
यही
अग्नि प्रखर
९
भस्म कर के
निकला है
अंधकार को
उठो !
प्रकाश में
नहा लो ,
जला डालो
मन के
विकार को !
१०
कोई चुपचाप रहता है
बहुत चुपके से कहता है
हवा लिखती है जैसे वो
अपनी बात रखता है
११
धान के खेत
शाम की
उतरती पीली धूप
किसने
किसको सँवारा है !!
१२
धान कटे
खेत पटे
पच्छिम में
सूरज का
सोना चमका
इन्द्रधनुष झाँका ऊपर
भरकर तुम्हारी याद
आँखों में
समा नहीं रहा
एक साँझ धनकटनी की
छोड़ गई आभा अपनी
चहरे पर
मन
सोना-सोना हो गया !
१३
शाम इतवार की
कौन करता है किसके नाम
वो ज़माना और था
वो
हम भी, तुम भी
और थे !
१४
कोई न कोई
तो नहीं होगा
जो दिखता है
वही
मुकम्मल नहीं होता !
जो
नहीं दिखता
तस्वीर
उसी से
पूरी होती है
बाज दफ़ा !
१५
सबकी
जानी हुई
सुनी-सुनाई
बात
फिर से
सुनना चाहें
जैसे
कि हो
पहली दफ़ा
कुछ नायाब-सा...
मुहब्बत ही तो है
वगरना क्या ?
१६
हवा उदास करती है
एक चिड़िया
उम्मीद की
मन की डाली पर
है
तो है !
१७
देर तक जगे
कि
नींद
थक के
आ जाए
तुम
कहते हो
रतजगे
मैं
कहता हूँ
इंतज़ार
१८
बादल छाए
बरस रहे
मन मेरा
मुझसे कहे –
चल कहीं दूर निकल जाएँ !
१९
जगते
बीती रात फिर
तुम्हारा खयाल
याद तुम्हारी
तुम्हारी बात !
२०
खुद से
भागते हैं
तो
पहुँच जाते हैं
तुम तक
अब
और मुहब्बत का
इम्तहान न लो !
बच्चे की
जान न लो !
२१
बंध हटे
खुल गए लम्हे
बेबाक
बँध गईं आँखें
बिंध गया मन
हो गए
दिन-रात
कितने शफ़्फ़ाक़ !
२२
आदमी
ग़ुरूर में है
सुरूर में है
किसी के हुज़ूर में है
किसी के
हुज़ूर में
होने के ग़ुरूर
के
सुरूर में है !
२३
सजग होना है...
अलग हूँ
कितना सजग हूँ
तुम्हारे प्रति...!
२४
कुछ बातों को
सिद्धांत की तरह
सिद्ध नहीं किया जा सकता
माना जा सकता है
जाना जा सकता है
अभिगृहीत की तरह
जैसे कि
तुम्हारा अच्छा लगना !
२५
बड़े लोगों की
कहानियाँ
बड़ी होती हैं,
नहीं ?
नहीं !
जिनकी
कहानियाँ
बड़ी होती हैं
बड़े वे होते हैं !!
२६
जो है, वो नहीं
जो नहीं है
वही
चाहता है मन
मन के मारे हैं
मन को मनाओ रे
किसी को बताओ रे
किसी को बुलाओ रे !
२७
बेमानी
मेरा हाल पूछना
तुम्हारा 'ठीक' कह देना
मेरा हौसला देना
तुम्हारा मुस्कुरा देना
२८
निर्बन्ध
निर्द्वंद्व
कैसे हो मन
बन्ध में कसे बिना
द्वंद्व में पड़े बिना
२९
इतनी अच्छी धूप खिली है,
बहुत दिनों के बाद
इतनी अच्छी धूप लगी है,
बहुत दिनों के बाद
छत पर आ कर टहल रहा हूँ,
बहुत दिनों के बाद
कुछ करने की भूख जगी
है,
बहुत दिनों के बाद
३०
चंद टुकड़े
सच
चंद टुकड़े
ख़्वाब
'पज़ल' है
ज़िन्दगी
चाहे जैसे हल करो
३१
पलकें
बड़ी हैं
झुकी हैं
पलकों के पीछे
आँखों की हलचल
कह रही है
" तुमको देख लिया है" !!
३२
हीरे की अँगूठी
सोने के कंगन
चाँदी की बिछिया
कम-से-कम...
ख़याल
कुछ भी है तुम्हें ?
अब क्या कहें,
ख़ैर,
जाने दे... !!
३३
हारे ज्यादा जीते कम
देखे फिर भी सीखे कम
भावुकता में रह जाए
बिलकुल ना समझे बौड़म
३४
इस कदर खींचती है
कोयल की बोली हुजूर
आदमी
कभी कोयल
रहा होगा
ज़ुरूर।
३५
एक हद तक ही
चाह सकता हूँ
कि तुम भी मुझे चाहो
उसके बाद
जैसा तुम चाहो
बाकी मैं हूँ
और मेरी मुहब्बत तो है ही !!
३६
औपचारिकताएँ
दफ़्तर में छोड़ आएँ
मेरे पास आएँ
तो सिर्फ़ आप आएँ !
३७
आपके सफ़र में
कोई
साथ नहीं आने वाला
ख़्वाबों ख़यालों को
महफ़ूज़ रखिए
३८
बदले ज़माने में बरसों
लगे हैं
खुद को मनाने में बरसों
लगे हैं
किसी को किसी की ज़रूरत नहीं है
इसे आज़माने में बरसों लगे हैं
३९
अर्थ
निहित अर्थ
अनर्थ
कौन है समर्थ
जो सब समझ सका...
४०
बातें गोल- गोल
करना टालमटोल
ये छलना नहीं आता
बीच का कोई रास्ता
चलना नहीं आता
ये सोच कर ही चलना
जो चलना हो मेरे साथ ।
४१
हमने
अपने समय में
यह भी देखा
सामानों से
भरती गई ज़िंदगी
किताबों ने
खाली कर दी जगह
पेशी जो होगी सुनवाई में
भला मुँह दिखाएँगे
हम किस तरह !!
४२
भगवान, इतनी दया रहे
कुछ देना हो
किसी को
तो
सोचना न पड़े!
४३
सारा सफ़र
ज़िंदगी का
घर पहुँचने तक का है
घर कहाँ है !
घर कहाँ है !!
घर कहाँ है !!!
४४
थकान भर काम
और
काम भर थकान
ज़िंदगी है
क्या भला
इस तलाश के सिवा ?
४५
अंत नहीं
प्रस्थान बिंदुओं से भरा है
जीवन
यात्राओं का नाम है
एक के बाद एक
एक के बाद
एक !
४६
सिर्फ़
अपनी ही
खबर है
इतने
बेखबर हैं हम...
४७
मेरी शाम
तुम्हारी शाम से
जुदा क्यूँ न हो
मैं मैं हूँ
तुम तुम हो !
४८
मायूस हो जाना
खुद को मनाना
फिर से भिड़ जाना
हार के बाद
बहुत मुश्किल है
मगर
बहुत ज़रूरी है
४९
सुबह
और शाम में
फ़र्क क्या है ?
बात
तुम्हारे
पास होने
न होने की है
५०
दर्द है
तो दर्द से
निबटने का
तरीका
ईजाद कर लेते हैं
तुम हमको याद कर लो
हम तुमको याद कर लेते हैं
५१
छोटे शहर की आँखों में
बसता है सपना
सामने
धोनी का घर
साथ है
बेटा अपना !
५२
अब तो यही है
कहीं कुछ नहीं है
मैं भी नहीं हूँ
तू भी नहीं है
इक ड्रामा है अब जो
बस चलता जाता है
५३
मेघ का मोह गया नहीं है
मेघ का मोह नया नहीं है
गल-गल दुख बहता रहता है
दुख का दुख, ओह! गया नहीं है
५४
नींद
गड़ रही है आँखों में
ख़्वाब
पलकों पे कसमसाते हैं
रंग
जीवन के
हैं एक-से-एक
मन- चितेरे की
कूची
गीली है ....!
५५
हम
दिल ही दिल हैं
दिल की दिल से
हम सुनते हैं
और कहते हैं
आँखों से भी
जिनसे मिलिए
मिलिए दिल से

फिर पढ़ डाला । फिर उतना ही अच्छा लगा ।
जवाब देंहटाएंअप्रतिम! सापेक्षवादिता का सिद्धान्त से लेकर दर्द से निपटने के तरीक़े का ईजाद। मन प्रफुल्लित हो गया। साधुवाद चेतन।👏👏
जवाब देंहटाएंYou write the feelings in adorable way….. really appreciate, god bless you my dear
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