बान्द्रा वेस्ट : चौदह अप्रैल दो हजार बीस
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घर जाना है, घर जाना है
साहब हमको घर जाना है !
तुमको खाली समझाना है
देखो साहब, घर जाना है
खोज-खबर लेने से क्या है
माना वाजिब सब चिंता है
एक बार बस घर जाना है
घर पर चाहे मर जाना है !
साहब देखो तुमको क्या है
हमको देखो कैसा क्या है
तुम खबरों से विचलित, हमको
बस खबरों में भर जाना है
अब हम खतरा, हम मुश्किल हैं
रोते चुपचुप दिल ही दिल हैं
हम ना होंगे, तब देखेंगे
किसने क्या-क्या कर पाना है
हम क्या समझें, हम क्या जानें
हम क्या देखें, हम क्या मानें
तिल-तिल कर मरने से अच्छा
एक बार में मर जाना है !
धूल पड़ा हो, बैठा हो तन
महल कि गलियाँ, या बन उपबन
जो भी फूल खिला जीवन का
उसको आखिर झर जाना है
घर में बैठे जब कहते हैं
थोड़ा-सा तो सब सहते हैं
क्या बतलाएँ क्या लगता है
अब कितना सह कर जाना है !
हमको तुमसे बैर नहीं है
अपना कोई, खैर, नहीं है
जंग अकेले ही लड़नी है
और नहीं अब भरमाना है
रोजी-रोटी और भला क्या
किस्मत ने है ऐसा पटका
तंगी कर देती है क्या-क्या
यह जीते-जी मर जाना है !
हमने कितना दाम लिया है
तुमने कितना नाम लिया है
नाम लिया बदनाम किया है
यहाँ नहीं फिर कर आना है
तुम आगे हम पीछे होंगे
तुम ऊँचे हम नीचे होंगे
जिसके हिस्से जितना होगा
उसको उतना भर पाना है
किसके आगे रोएँ जाकर
पाप कहाँ अब धोएँ जाकर
सारे आँसू सूख चुके हैं
अब तो बस हँस कर जाना है
अपने में धँस कर जाना है
मुट्ठी को कस कर जाना है
जाना है बस अब जाना है
बस बेबस हैं, अब जाना है
देखो साहब, घर जाना है
साहब हमको घर जाना है
घर जाना है, घर जाना है
घर जाना है, घर जाना है !!
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