हमारे ब्रदर टोनी डायस
कभी कभी किसी व्यक्ति से आपका बहुत ही प्रेम का संबंध और व्यवहार होता है, और एक दिन अचानक वे चले जाते हैं। इस दुनिया को छोड़कर। उनके जाने की खबर सुनकर आप भावशून्य हो जाते हैं। मानसिक रूप से जड़। और तो और, उनके जाने के बाद उनके नाम के हिज्जे देखकर आप अचंभित होते हैं कि अरे! उनके नाम का हिज्जे तक पता नहीं था!! उनके जीवन के आखिरी दिनों में आपकी उनसे बात होती है। यह तय किया जाता है कि इस बार शहर में जब भी रहे तो भेंट होगी। आप उनसे मिलने भी जाते हैं। पता चलता है कि वे अस्पताल में भर्ती हैं। वही रूटीन काम, यानी लंग्स से पानी निकलवाने के लिए भर्ती हैं ; दो चार दिनों में आ जाएँगे। फिर एक दिन आपके एक दोस्त का फोन आता है कि वो अस्पताल में है, उनको देखने। वह पूछता भी है कि बात कराऊँ? आप कह देते हैं कि साथ चल के मिलेंगे ही। और दो दिन बाद वही दोस्त खबर देता है कि वे नहीं रहे! ये सारी बातें ब्रदर टोनी डायस के संबंध में मेरे साथ हुई हैं। ... जिंदगी देती है मौके, मौत नहीं! ब्रदर टोनी डायस ( उनके नाम का यही हिज्जे आजतक समझता आया हूँ, आज भी यही रखूँगा) ने सत्तर साल से कम की उम्र पाई। अंत के कुछ सालों में वे ब्लड कैंसर से पीड़ित रहे । वे स्कूल के दिनों में हमारे शिक्षक रहे।
बिहार के पश्चिमी चंपारण जिले के मुख्यालय बेतिया में एक नामी स्कूल है, के. आर. हाई स्कूल। मेरे जीवन के कुछ बहुत अच्छे वर्ष यहाँ गुजरे। मेरे जीवन को सबसे ज्यादा प्रभावित करने वाले वर्ष।
ब्रदर से पहली मुलाकात यहीं हुई। उस समय में वे युवा थे। जहाँ बाकी शिक्षकों के साथ एक भय और आदर का संबंध रहा करता था, ब्रदर ने भय की जगह मित्रवत व्यवहार और प्रेम को जगह दे दी। वरना क्या यह संभव था कि हम छात्रों में से कुछ लोग उस समय शहर में चल रही फिल्म ' हम नौजवान' के एक खलनायक से उनकी शक्ल मिलाते, और उन्हें यह बता भी देते। गुस्सा होने की बजाय वे इस बात का मजा लेते।
मँझोले कद और साँवले रँग के हँसी मजाक करते हमारे ब्रदर टोनी डायस। मूल रूप से तमिलनाडु के रहने वाले थे। उन्नीस वर्ष की अवस्था में मिशनरी में शामिल हुए। लगभग चालीस साल वे बिहार में विभिन्न जगहों पर मिशनरी का काम करते रहे। जब भी मिलते या फोन पर बात होती तो मेरे प्रणाम करने या " प्रणाम ब्रदर " कहने पर गर्मजोशी भरा उनका जवाब होता --" और चेतन, कैसे हो?" उनकी आवाज में हमेशा ऊर्जा भरी होती थी और चेहरे पर मुस्कुराहट तैरती रहती थी , भले ही आखिरी के कुछ साल वे गंभीर बीमारी से जूझ रहे थे। ' ज़िंदगी ज़िंदादिली का नाम है...।" उनकी वही ज़िंदादिली याद आए जा रही है। मैं समझता हूँ मेरे जैसे उनके बहुत से छात्र उनको इसी रूप में याद कर रहे होंगे -- खुशनुमा और मित्रवत् व्यवहार रखने वाले।
के. आर स्कूल को मेरे भीतर जिंदा बचाए रखने में उनकी यादों का भी बड़ा हाथ है।
1988 में स्कूल से निकलने के बाद भी उनसे संपर्क बना रहा। जब भी मिलते गर्मजोशी से मिलते। कॉफी और बिस्कुट खिलाते। हाँ, बाद के दिनों में मिलना कम जरूर हो गया था। ब्रदर पटना में रहे और हम बाहर- बाहर। हाँ, प्रवीण झा लगातार उनसे संपर्क में रहा। प्रवीण ही वह दोस्त है जो ब्रदर को देखने अस्पताल गया था। प्रवीण ने ही उनके निधन की खबर दी।
जिस दिन ब्रदर टोनी से मिलने हम ( मैं और प्रवीण) गए थे, उस दिन फादर स्कारिया को भी देखने गए। फादर सो रहे थे। उम्र ने उन्हें बहुत कमजोर कर दिया है। फादर स्कारिया हमारे समय में स्कूल के प्रिंसिपल थे। उनका नाम अभी भी अनुशासन, लिहाज और भय का मिश्रित भाव मन में भर देता है । उनसे भी मिलने की बात हुई तो यह सुनिश्चित किया कि कपड़े ढंग के हों और ढंग से पहने भी हों। पचास पार की उम्र में भी स्कूल हावी हो ही जाता है!
आज ब्रदर टोनी डायस के जाने पर, इन सालों में दिवंगत हुए और भी शिक्षकों को बहुत आदर के साथ याद कर रहा हूँ -- केरविन जॉन सर, ब्रदर बर्रोज़, चार्ली सर। समस्तीपुर के संत मेरीज़ की ओस्टा टीचर। सत्येन्द्र जी सर।
हमारे व्यक्तित्व और चरित्र की जो मिट्टी बनती है उसमें हमारे शिक्षकों का कितना बड़ा योगदान होता है, इसे कभी भी पूरा-पूरा आँका नहीं जा सकता।
निधन के दो दिन पहले की तस्वीरों में ब्रदर बहुत ही दुबले दिखे। हालाँकि दो तस्वीरें हँसती हुई हैं, लेकिन एक-दो तस्वीरों में एक उदासी भरी है। शायद उनके कुछ काम अधूरे रह गए , जिसका उन्हें पूरा अहसास हो गया था। शायद उनका अकेलापन उन्हें साल रहा था। जीवन एक मिशन के रूप में जीने के बाद अंतिम घड़ियों में महसूस किया गया अकेलापन। जिनको आपने हमेशा ऊर्जा से भरा, बुलंद देखा हो उनको अशक्त, असहाय और उदास- निराश - सा देखना मन को उदासी से और एक बेबसी से भर देता है। आप सिवा दर्शक बने रहने और दिलासा भरे शब्द कहने के कुछ और कर नहीं पाते। और फिर एक खयाल दिल से गुज़र जाता है -- जिससे जब मिलने-बतियाने का मौका मिले, कर लिया करें। क्या मालूम कौन सी बातचीत आखिरी हो? जीवन का लक्ष्य सिर्फ कामयाबी के पीछे भागना नहीं, जीवन में बिखरे पड़े अनगिनत छोटी-छोटी खुशियों के लम्हों को समेटते चलना भी है।
ब्रदर टोनी के निधन ने इस बात को फिर रेखांकित किया है कि जीवन में कुछ भी निश्चित नहीं। एक दिन पहले ही प्रवीण उनसे मिलकर आया था। उसके सामने उन्होंने खाना खाया था । और अगली सुबह ब्रदर नहीं थे! हम सबके जीवन का भी यही होना है। हमें ठहर कर समय- समय पर जीवन की समीक्षा करते रहनी चाहिए। और जरूरत हो, तो कोर्स करेक्शन भी करते चलना चाहिए। याद रहे ' सब ठाठ धरा रह जाएगा, जब लाद चलेगा बंजारा'।
अब न फिर मुझे उनसे मिलकर उनका आशीर्वाद लेने का मौका मिलेगा, ना ही उन्हें फोन पर ' प्रणाम ब्रदर' कहने का मौका मिलेगा और ना ही कभी उनकी गर्मजोशी से भरी आवाज में सुनने को मिलेगा " और चेतन कैसे हो?"
मैं जानता हूँ जीवन चलता रहेगा। और यह भी जानता हूँ कि यादें भी साथ रहेंगी, गाहे ब गाहे पास आकर बैठती, बतियाती, तरोताजा करती।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें