शनिवार, 19 अप्रैल 2025

चाँद कितना हसीन है !



    चाँद कितना हसीन है  ! 



     1


आधा मुँह ढके

मुरझाया पड़ा 

चाँद


हवा 

गुमसुम

उदास


रात 

परेशान

जगी-जगी


बेटे चाँद को

बुखार आया है

माँ रात क्या करे !  


      2


कटोरी भर ठंढी खीर - सा

चाँद

शरद पूर्णिमा का


दलपूड़ी आसमान


रात ने भोज दिया है

न्योता है


समय निकालिए

अनुगृहीत कीजिए

आनंद उठाइए


पक्का !


     3


पेड़ों के झुरमुट से

झाँकता

चाँद पूनम का

बिल्डिंगों की ओट में

चलता है साथ-साथ

भर रास्ते


पहुँचा के घर

सुस्ताता है

टँग जाता है

बाहर खिड़की के

आसमान में


हौले से

खिसक लेता है

बत्तियों के

गुल होने

और

नींद के पसर जाने के बाद


जैसे

किसी बच्चे को

थपकी दे-दे

सुला देना

और

बना कर तकियों की बाड़

हौले से 

उठ जाना

करने को

छूटे काम


     4


चंद ख़्वाबों के मजमून

सरका गया

चाँद

तकिए के नीचे

आहिस्ता 


सर्द रातों की

बेख़बरी

लिहाफ़ की गरमाहट

सुबह

नीमबाज़ आँखों में

अक़्स

उम्मीदों  का

ख्वाबों के पैरहन में


हौले से

उतर आई

धूप

धुंध की चादर ओढ़े


सुबह की

चाय में

अदरक के साथ

तुम्हारी मौजूदगी


ज़िन्दगी

ज़्यादा तो कुछ नहीं माँगती !



    5 


पूस का

शुक्ल पक्ष

कल आएगी

चौदवीं की रात...


चाँद तो मगर

जाने कब से साथ है

चातक ही जाने

चातक ही बताए....


     6


रात अँधेरी 

चंद्रबिंदु – सा

चाँद 

धुँधला 


अधमुँदी 

आँखों में 

कोई याद धुँधली 

कोई ख़्वाब धुँधला 


     7


इतना चकमक 

चाँद पारे का हो गया है क्या ?

ठंढा 

तरल

या कि 

वही खीर है 

जो कल सुना था कहीं 

कि

जो खीर नहीं खाया 

उसने 

मनुष्य योनि में 

जन्म लेने का 

पूर्णतः फायदा नहीं उठाया ! 


( मसान फिल्म में पंकज त्रिपाठी के एक डॉयलॉग पर )


       8


कातिक का

चकाचक चाँद 

और 

उमस 

संगत नहीं बैठती 

जैसे ऐशो- आराम भरा मन 

और अस-बस ....! 


ख़ता किसकी 

किसी की भी तो नहीं !


ऐ ज़िंदगी .....!


      9


चन्द्र- ग्रहण 

आकाश नीला दाग

उदास मन


याद पुरानी 

अल्बम बने दिन

कैमरा मन 


     10


चाँद ने

चाँदनी डूबे

ब्रश से

लगा दिए हैं

कुछ स्ट्रोक्स

तैर गए हैं

कुछ बादल 

सफ़ेद

आसमान के नीले

कैनवास पर


हल्की, मंद हवा

बढ़ा देती है

चाँदनी का मज़ा


बस

जो

गुल हो जाएँ

सब बत्तियाँ

डूब जाए

पूरी तरह

शहर सारा 


नींद

आए, न आए

चैन तो आए


    11


इतना

चमका चाँद

नग हीरे का

बादल की अँगूठी में


किसी ने तो कहा है

क़बूल है

क़बूल है

क़बूल है !


    12


चमका चाँद

चमक गईं यादें

चमक गया मन

उड़ने लगा है

बादलों-सा 

हल्का !


    13


बर्फ़ के 

चकचक 

पूरे गोले जैसा चाँद  

हँस रहा, बरस रहा

अपने

मुँहबोले जैसा चाँद 


     14 


छत पर चलो 

आसमान 

देखेंगे बैठ के 

बातें करेंगे चाँद से

चौकी पर लेट के 

रात की रानी को 

लिवा लाएगी हवा 

पत्तियाँ चुपचाप से 

देंगी कोई सदा 

कुछ दूर तक 

कुछ देर तक 

फिर देखते रहेंगे 

बैठे रहेंगे 

बस,

यूँही बैठे रहेंगे 

ना करेंगे कुछ

ना कुछ कहेंगे 

कायनात 

कहती रहेगी 

सुनते रहेंगे हम 

कुछ देर 

अपने आप से 

मिल लेंगे 

हम ज़रा ...


    15


शरद पूर्णिमा है

बरसती हुई 

चाँदनी है

जहाँ 

आँगन नहीं है 

खीर 

छत पे रखी है 


खीर के 

भगोने में 

चलनी से 

छन के 

घुल जाएगा 

लग जाएगा 

अनगिनत शरीरों को 

थोड़ा-थोड़ा - सा 

चाँद

शरद पूर्णिमा का


   16 


रात के

आँचल से

ज़रा-सा

झाँकता हुआ

डिम लाइट चाँद

औंट दिए गए दूध-सा पीला


ज़मीनो-आसमान को

सहलाती हुई

शीतल, मंद हवा


बालकनी से

कपड़े उठाता हुआ

मैं

सहसा उदास हो जाता हूँ


ये

चाँद का पीलापन है

घर का खालीपन है

या

उलझा हुआ  मन है –

असर किसका है ?


      17 


इंस्ट्रूमेंट बॉक्स के

चाँद जैसा चाँद

सफ़र भर

रहा साथ 

आँख लगी नहीं

अच्छा हुआ

दिल लगा रहा


चाँदनी घुलती रही

नीले आसमान में

झरती रही

हल्के...हल्के...हल्के...


घर के आँगन में

बिछी  खाट 

इंतज़ार में होगी शायद... 

 

नींद भी तो

नींद जैसी

आई नहीं है बरसों से


खानाबदोशी में भी

घर

पीछे नहीं छूटता

रहता है आगे

आँखों के

हमेशा !


     18


मलिन-मुख चंद्र

चतुर्दशी का

हुआ अस्त

ब्रह्म मुहूर्त में इधर

उधर

पौ फटेगी

प्राची के पट खोल

झाँकेगा दिन

सूर्य उदित होगा


जुड़वाँ ये भ्रात

शीतल चंद्र

सूर्य प्रबल


शिथिल हो सूर्य

विश्राम को जाएगा

गिरा कर

साँझ का परदा

वही पट खोल प्राची के

निकलेगा

नहाया-धोया , तरोताज़ा

चाँद पूनम का

हँसता-विहँसता

बाँटता-बरसाता

पंचामृत जैसे

शुभ्र-शीतल ।


चाँदनी की चादर ओढ़े रात

कुनमुनाएगी

बगल की चारपाई पर

सुबह

जब दिन को

पैर छू

फिर जगाएगी ।


      19


चाँद नुमायाँ होता है

इक तारे की निगरानी में

जैसे ज़िक्र किसी लड़के का

इक लड़की की कहानी में


हरारत भरा दिन थम जाए

जैसे शाम पैर दबाए

पैर डाल के बैठे थोड़ा

गर्म एक बाल्टी पानी में


जब तक हसरत दिल में थी

शमाँ उसी महफ़िल में थी

कहा नहीं कि निकल गए

बल पड़ गए पेशानी में


पतला- सा एक चाँद दिखा

और जो वो तारा चमका

किलक पड़े, बैठे, खो गए

बच्चों - सी नादानी में


      20


थोड़ा-सा 

घूँघट किए 

चाँद 

थोड़ा ज़्यादा ही 

चमक उठा है 


देख आओ 

किससे मिल गईं हैं नज़रें 

ये बरस रही है 

चाँदनी कैसे ....


महीना 

कातिक का है 

और फिर भी 

दिल ढूँढने लग पड़े – 

*ठंढी सफ़ेद चादरों पर 

जागें देर तक ..... 


 (*गुलज़ार लिखित एक गीत की  

   पंक्ति) 


    21


चाँद हँस रहा है

जुगनू टिमक रहे हैं 

किसी पुरानी याद-से

बरसों बाद मिले हैं 


हवा खुशगवार 

लिपटती है

सिल्क की चादर-सी

हल्की


दिल का शहर 

आबाद है

दिनों बाद

बस

तुम नहीं हो

सो 

थोड़ा उदास है ! 


     22


दूध-दूध रोशनी

नील-नील गगन 

उदास रात 

चमक उट्ठी है 

तुम्हारी याद से !


     23


आँख मिचौली 


चौदवीं का चाँद

बादलों के

झीने पर्दे

खुनक भरी 

हवा


चल रही है

आँख मिचौली 


इधर

तुम्हारी याद

तन्हाई

खयाले- विसाल ....! 


      24


चाँद तो हमारा है

चाँदनी हमारी है

नीम की 

पत्तियों से

खेलती हुई

हवा भी हमारी है 


ख़्वाब भी हमारे हैं

नींद भी हमारी है 


आपके हैं हम

आप भी हमारी हैं


    25


एक चाँद

आसमाँ में है 

एक सबके पास है 

नज़र 

जिसने रखी चकोर की 

वो जानता है ये


चाँद कितना हसीन है ! 



     26


कोई

चाँद देखता रहा

कोई चला

सेंकने रोटियाँ


जीवन में

सुंदरता के

माने

अलग-अलग 

लेकिन

मिल कर 

एक !!



27 


चाँदनी

चाँद का

सम्मोहन है


कुछ देर और !

कुछ देर और !

छत पर

टहलता हुआ

मन है

इस घड़ी जो जीवन है

कितना अच्छा जीवन है !


घड़ी-घड़ी में जीवन है

हर घड़ी में जीवन है !!


     28 


चाँद चाँद-सा

रात साफ़ रात -सी 

ज़िन्‍दगी कैसी 


    29


चाँद ज़रा-सा

रात अँधेरी अभी 

कसक रही 


  30


चाँद उठा है

रात उठ बैठी है 

सपना जगा 


     31


न छत

न आँगन

न चौकी

न चादर

न छुट्टी

न फ़ुर्सत

मगर

चाँद तो वही है

वही चाँदनी भी

वही रस्मे-उल्फ़त

रँगे-आशिकी भी

ज़रा -सा

झाँक कर देखो

तुम भी वही हो

हम भी वही


    32


घुल गई चाँदनी

रात की ओस में

डूबे खेत सारे 

ख़ुमार, अहसास में 


दूर तक यह नज़र

पी रही चाँदनी

जाने क्या माल है

चाँद के गिलास में 


सो रहे पेड़ सब

जैसे खड़े-खड़े 

चाँदनी के रँग के

ओस के लिहाफ़ में


     33


देखते-देखते

चाँद गुम हो गया

वो जो कि दिख रहा 

था एक फाँक-सा


तारे रहे खड़े

टिमटिमाते रहे

सात तारे दिखे

वो देखते रहे


चुप पड़ीं पत्तियाँ

गुल हुई बत्तियाँ

छत पर मिली हवा

वो टहलती रही


रास्ते चुप हुए

पंछी सब सोए

आसमान उनको

चादर ओढ़ाए


तारों में खोए

मन जागे-सोए

सपनों में नक्शा

कोई तो आए


शाम फिर ढलेगी

चाँद फिर आएगा

और एक दिन फिर

दिन फिर जाएगा


      34


अरे भाई चाँद

गजब ढा रहे हो

कहाँ तो कहाँ, मन

लिए जा रहे हो


वही चाँद हो, जो

बहुत चाहता था

कि हर बात से ही

जिसे वास्ता था


चमकता था यूँ, कि

चमकता रहेगा

वही आज जैसे

कि चमका रहेगा


वही आज छत पे

चटाई बिछेगी

वही फिर हवा भी

कहानी कहेगी    


     35


चाँद मद्धम 

रात गहरी 

रोशनी के कुछ ठिकाने 

नज़रें हटा लें 

जी न माने 


चलो,

और थोड़ी देर टहलें 


      36


आसमान पर 

अँधेरे की रोशनाई 


बीचोबीच चमकता 

चाँद कार्तिक पूर्णिमा का 


चाँदनी छाई

रात मुस्कुराई 


     37


पूनम के चाँद की 

चादर चाँदनी की 


रात ओढ़ाती है

शहर को सुलाने को 


शहर अधमुँदी आँखों से 

देखते- देखते 

सो जाता है 


दिन अब भी ऐसा आता है 

हम अगर चाहें !  


      38


चाँद

वो भी कार्तिक पूर्णिमा का ! 


डूब गया है 

चाँदनी में शहर सारा 

चाँदनी है कि खुमारी है !! 


न देखें, काम नहीं चलता है 

छत पर बैठें, ठंढ उतरती है 

यही ज़रा- सी दुश्‍वारी है ! 


     39


चमका चाँद 

बिछ गई दूधिया चादर 

चाँदनी फैली

बनकर सुकून... 


चलो कुछ ख़्वाब जगाएँ !! 


     40


पूर्णिमा का चाँद 

दूधिया- दूधिया 


मन में, समंदर में 

मन के 

समंदर में क्या हुआ 

खिंचता ही जा रहा ! 


विज्ञान अपने कारण बताता है 

पर ये कारण कौन बनाता है ?! 


       41


पूर्णिमा कार्तिक की 

चाँद मलाई- सा

फैला हुआ- सा

रस चाँदनी का 


आँखें छक रही हैं 

मन सराबोर !! 


     42


पारभासक चाँद 

किसी की 

याद की तरह...


मन डूब जाना चाहे 

मन खूब गाना चाहे 

मन खिंच- खिंच जाए 

मन सिंच- सिंच जाए 

किसी की 

याद की बदौलत 

एक चाँद की बदौलत !! 


     43


नील गगन

चन्‍द्र धवल

मन कोमल

मन उज्ज्वल 


     44


चाँद बन कर 

आती है 

किसी की याद 

कभी ज़ाहिर 

कभी निहां ! 


     45


किसी की

याद में

बौखला गया गगन

चाँद को 

देख- देख कर !! 


    46


नज़रें 

मिलाए बैठे हैं 

आज 

चाँद से 


देखें, है ज़ोर कितना 

इंतज़ार में ! 


    47


चाँद खिला है 

कई दिनों बाद 


कई दिनों बाद 

चाँद हँसा है 


ढीला पड़ा कोई तार कसा है 

मन बज उठा है 

मन गा उठा है... 


    48


रात स्याह 

ख़याल स्याह 

उठ खड़े सवाल स्याह 


एक चाँद 

मन का 

देखें कब तक बचता है ! 


    49


स्याह काले बादल

चाँद अकेला चुपचाप


बादल को 

आना है

छा जाना है 


चाँद को 

छिपना है

निकल आना है 


*वही किस्सा पुराना है...!! 


(*शैलेन्‍द्र के लिखे एक गीत की पक्‍ति )



  50


बादलों के मगर

ग्रस लेते हैं 

चाँद को

स्याह- अँधेरी रातों में 

मगर फ़ितरतन 

चाँद 

निकल आता है 

फिर- फिर !!

 

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