गुरुवार, 10 अप्रैल 2025

जी हाँ ! यह बिहार है !

 


जी हाँ ! यह बिहार है  ! 


हर हाथ में अखबार है

जिहाँ! जिहाँ! बिहार है !! 


जो उड़ा रहा है गरदा

छुड़ा रहा बुखार है

जिहाँ जिहाँ बिहार है


लोग-लोग के बीच यहाँ

जात की दीवार है

जिहाँ जिहाँ बिहार है


सबकुछ सहता जाता है

पूरा निर्विकार है 

जिहाँ जिहाँ बिहार है


फुसलाते जो कहते हैं

नाम नहीं विचार है

जिहाँ जिहाँ बिहार है


लिट्टी-चोखा कह कह के

ठग रहा संसार है

जिहाँ जिहाँ बिहार है


सुन रहे हैं सभी कब से

हो रहा तैयार है

जिहाँ जिहाँ बिहार है


या फिर चलिए, यों कहिए

ज़िंदा इंतज़ार है

जिहाँ जिहाँ बिहार है


गरमी में कम्बल बाँटे

चुनाव की बयार है

जिहाँ जिहाँ बिहार है


अल्लर बल्लर बोले है

क्या अजब सरकार है

जिहाँ जिहाँ बिहार है


जिसे जो भी गद्दी मिली

जमा पाँव पसार है

जिहाँ जिहाँ बिहार है


किस्मत को कितना रोएँ

खुद फोड़ा लिलार है

जिहाँ जिहाँ बिहार है


जाने सदी कौन-सी है

कितना अंधकार है  ! 

जिहाँ जिहाँ बिहार है


जैसे बंदर-घाव एक

नुचता बार-बार है

जिहाँ जिहाँ बिहार है


नेता साहब जो चाहें

सब यहाँ तैयार है

जिहाँ जिहाँ बिहार है


'सेवा-शुल्क' काम का है

आपसी व्यवहार है 

जिहाँ जिहाँ बिहार है


धंधा इक चौपट होता

चढ़ा हुआ उधार है

बेबस क्यों बिहार है?


इतना गींजा जाता है

क्या महज बेकार है? 

यही सहज बिहार है? 


जो बाहर धूम मचाए

घर वही बेकार है

ऐसा क्यों बिहार है ?


धातु बाकी सबकी, और

इसे केवल धार है !

मुँह ताके बिहार है !! 


एक बिहारी भारी, अब

यह उक्ति बेकार है 

नकारता बिहार है


कुछ ना कुछ तो बदला है

क्या भला आधार है? 

दिखाइए बिहार है! 


ज़ाती  मसले छोड़ें  सब

सब हाथों को जोड़ें अब

जग को पीछे  छोड़ें अब

और क्या दरकार है

जी हाँ, 

यही चाहता बिहार है  !

1 टिप्पणी:

  1. बहुत बढ़िया, कुछ कुछ त्रिवेणी जैसा लगा, अपनी कलम की धार बढ़ाते रहिये

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