मंगलवार, 22 सितंबर 2020

राज शेखर होने के मायने

  
(चित्र : सौजन्य - गिरींद्रनाथ झा )







   

राज शेखर होने के मायने

  

बरसों पहले कोसी की एक कथा पर एक फिल्म बनी थी । नाम तो आप जानते ही होंगे – तीसरी कसम । इस फिल्म में एक गीत था –पान खाए सैंया हमारो। इस गाने में दो लाइनें कुछ ऐसी थीं –

 

      हमने मँगाई सुरमेदानी , ले आया ज़ालिम बनारस का ज़र्दा

      अपनी ही दुनिया में खोया रहे वो, हमरे दिल की न पूछे बेदरदा

 

आज एक गीत सुन रहा था तो बरबस यह गीत याद आ गया । गाना है 2019 में आई फिल्म साँड की आँखका । झुन्ना, झुन्ना, झुन्ना । इस गाने की एक लाइन है सैंया बेदरदा फूँके है ज़र्दा । आप बताइए कि बेदरदा और ज़र्दा शब्द हिंदी फिल्म के किस गाने में आपने सुना है, कम से कम इधर के 20-25 बरसों में ? आप सवाल पूछ सकते हैं कि ये शब्द क्यों याद रखे जाने चाहिए ? वाजिब सवाल है । अच्छा यह बताइए कि कातिक, अगहन, फागुन जेठ, काँसा, पीतल, सिलवट, रूई, रेशा, अरदास, मच्छरदानी, गाँव-जवारी, सदाबहार, चमकदार, उजला, हुक्का, गुड़गुड़, बुलबुला, माथापच्ची,जुगनू, रफ़ा-दफ़ा, बवंडर, गँड़ासा, टिमटिम – ऐसे शब्द याद रखे जाने चाहिए या नहीं ? जब सारी दुनिया ओ या’, ‘ आइ नो’, ‘यू नोमें लगी हुई है तब ऐसे शब्द क्यों याद रखे जाने चाहिए ?

 

      हम देखें तो सँस्कृति के निर्वहन और निरंतरता में हमारी भाषा का बहुत बड़ा योगदान होता है । और सरकारी या किताबी भाषा नहीं बल्कि लोक की भाषा । ऊपर जो शब्द उदाहरण के तौर पर रखे गए हैं, आप ग़ौर करेंगे तो पाएँगे कि ये लोक से उठाए हुए शब्द हैं । हम अगर अपनी भाषा, अपने शब्दों से दूर होते जाएँगे तो हम धीरे-धीरे अपनी सँस्कृति से भी दूर होते जाएँगे । हमें अपनी भाषा का सम्मान करना ही होगा, उसे बचा कर रखना ही होगा ।  तीसरी कसमके गीत को लिखा था शैलेन्‍द्र ने और साँड की आँखके गीत को लिखा है राज शेखर ने । वही राज शेखर जो कोसी के हैं, मधेपुरा के हैं । वही राज शेखर जिनका आज जन्मदिन है । 

 

      बकौल राज शेखर वो एक एक्सीडेंटलगीतकार हैं । उस एक्सीडेंटके भी दस वर्ष पूरे हो चले हैं । उनके लिखे गीतों की सूची देखें तो कुल जमा चालीस- इकतालीस गीत हैं , यानी कि साल के तकरीबन चार गीत । आज के इस जो दिखता है वो बिकता हैके दौर में यह सूची काफी छोटी लगती है । लेकिन बावजूद इसके वे बराबर फिल्मों में बने हुए हैं । उनके गीत पसंद किए जा रहे हैं – जनता के द्वारा भी और फिल्म-वाले लोगों के द्वारा भी । उनके द्वारा लिखे गए पहले गीत ऐ रंगरेज़ मेरेने ही अपार सफलता का स्वाद चखा दिया । अमूमन ऐसा होता नहीं है । फिल्म थी तनु वेड्‍स मनु। इस फिल्म में उनके लिखे सारे गीत एक से बढ़कर एक । साल था 2011 । एक इंटरव्यू में उन्होंने बताया है कि ऐ रंगरेज़ मेरेऔर मन्नू भैया का करिहैंएक ही दिन बल्कि एक ही बैठक में लिखे गए गीत हैं । अगर आपने दोनों गाने सुने हैं तो राज शेखर की रेंजपर विस्मित हुए बिना नहीं रह पाए होंगे ।  उसके बाद 2013 में एक गाना आता है फिल्म इसक़में – एन्ने-ओन्ने। होली का मस्ती भरा गाना । इस गाने को देखें तो इसमें गीतकार द्वारा होली के नाम पर छूट लेने की पूरी संभावना थी , पर उसको जिस नज़ाकत से वो संभाल ले गए हैं वह देखिए – तुझे सिलवट-सिलवट चख लें /हम पारा- पारा पिघलें । गुलज़ार राज शेखर के पसंदीदा गीतकार हैं, मालूम नहीं उन्होंने यह गीत सुना है कि नहीं ? ‘इसकके बाद 2105 में तनु वेड्‍स मनु रिटर्न्‍स। इस फिल्म का एक गीत, जो शायद उतना चर्चित नहीं हुआ, - हो गया है प्यार तुमसे / तुम्हीं से एक बार फिर से । प्यार की एक नई व्याख्या । और इतनी मखमली! 2016 में आई क्यूट कमीना। इसके गानों की भी चर्चा उतनी नहीं हुई । भोपाल शहर पर लिखी गई कव्वाली भोपाल शहर के किरदार को आँखों के सामने रख देती है । सिंगल चल रिया हूँगीत में एक पंक्ति है मालवा के आसमाँ पे / किसने की फुलकारियाँ ये। किसी जगह , किसी प्रदेश को इतने रोमांटिक रूप में गाने में शामिल कर लेना गाने में एक अलग कशिश पैदा कर देता है । कशिश तो इसी फिल्म के एक और गीत शाम होते हीमें यह लाइन भी पैदा करती है – नीले सैटिन में लिपटा ये शहर / चमके जुगनू-सा‘  तनु वेड्‍स मनु रिटर्न्‍सका एक गीत ओ साथी मेरे’ , उसके गायक सोनू निगम को हद से ज्यादा पसंद है । 2017 में एक फिल्म आई थी फ्रेंडशिप अनलिमिटेडइसमें भी सोनू निगम का गाया , राज शेखर का लिखा एक गीत है – तेरे बिन ओ यारा। यह गीत भी ओ साथी मेरेकी टक्कर का ही है । इसी साल एक फिल्म आई करीब करीब सिंगल। इसमें राज शेखर के दो गीत थे । जाने देजो लोगों की ज़ुबान पर चढ़ गया, और उतरा ही नहीं । पर इसी फिल्म का एक दूसरा गीत खतम कहानीएक अलग ही चोखे रंग का गीत है ।  2018 में एक छोटी-सी फिल्म आई मेरी निम्मो। यह उस समय भी ओ.टी.टी पर ही रिलीज़ हुई थी । इस फिल्म में तीन गीत । एक गीत की कुछ लाइनें देखिए – आते-जाते पल से न जी लगाओ...क्या ये भी बीत जाएगा / हाँ ये भी बीत जाएगा । यह गीत अंग्रेज़ी की एक कविता This, too, shall pass away”  ( Paul Hamilton Hayne) की बरबस ही याद दिलाता है जैसे शैलेन्‍द्र का लिखा गीत हैं सबसे मधुर वो गीत जिन्हें हम दर्द के सुर में गाते हैं , Our sweetest songs are those that tell of saddest thought” ( P.B. Shelley)  कविता की  । शैलेन्‍द्र भी राज शेखर के पसंदीदा गीतकार हैं ।

  

      2018 में तीन फिल्में और चार गीत और आए । हिचकीमें खोल दे परऔर मैडम जी गो ईज़ी’, ‘वीरे दी वेडिंग में आ जाओ नाऔर तुम्बाडका टाइटिल सॉन्‍ग । तुम्बाडका गीत जरूर सुना जाना चाहिए । इसमें शब्दों से जो ध्वनियाँ उत्पन्न की गई हैं  वो एक दूसरे ही लोक में ले जाती हैं । ऐसा कर पाना भी संभवत: राज शेखर के बस का ही था । 2019 में तीन फिल्में । उरी’ , ‘जबरिया जोड़ीऔर साँड की आँखउरीके गीत बह चलाकी यह लाइन देखिए – छोटी-सी ज़िद होगी, लंबी-सी रातें /फिर भी प्यार रह जाएगा । यह पंक्ति चमत्कृत कर देती है । जबरिया जोड़ीके मच्छरदानीमें एक तरफ तो मच्छरदानी शब्द का इस्तेमाल होता है तो दूसरी तरफ क्वीन, स्वीटी, पासवर्डजैसे शब्द । यानी कि शब्द सहज रूप से ही चले आते हैं गीतों में बेखटके, बिना किसी को खटके । साँड की आँखपूरा एल्बम ही खास है । गीतों की विविधता के कारण और आशा भोंसले के गाए गीत आसमाँके कारण । इस गीत के बारे में आशा जी ने किसी साक्षात्कार में कहा है कि ऐसे गाने अब बनते नहीं हैं । 2020 में फिर से एक बार बम्फाड़सिनेमाघरों में न रिलीज़ हो कर ओ.टी.टी पर हुई , हालाँकि तब तक देश में लॉकडाउन भी लग गया था । मालूम नहीं इस फिल्म के गानों का एल्बम क्यों नहीं रिलीज़ किया गया है अब तक । यू ट्यूब पर बिखरे हुए इसके गानों को सुनिए , या फिर फिल्म देख कर सुनिए । बम्फाड़के गीतों की कुछ पंक्तियाँ – ऐसे तो कोई खास बात है नहीं / तू है तो ज़िंदगी ये कीमती लगे , ज़िक्र गुलाबी तेरा जितना है / उतना ही मैं भी गुलाबी अब हो रहा , मैं मुंतज़िर नहीं / पर इंतज़ार-सा या फिर जीभ है गँड़ासा इनकी । एक तरफ नर्मो-नाज़ुक इश्क की बातें तो दूसरी तरफ गँड़ासा – उतनी ही सहजता से । ओ.टी.टी पर ही रिलीज़ हुई रात अकेली हैमें राज शेखर का एक गीत है आधे-आधे-से हम। इस गीत को सुनिए और सोचिए कि कविता और क्या होती है ? राज शेखर ने एक शॉर्ट फिल्म’ ‘द गाइडके लिए भी एक गीत लिखा है , उसका भी उल्लेख जरुरी है । 2016 में आई इस शॉर्ट फिल्मके गीत की कुछ पंक्तियाँ – अगहन, फागुन , तुमसे ही जेठ , या फिर बँध गए हैं मौसमों के / सारे ही अब छोर तुमसे – क्या यह कविता नहीं है ?

 

      राज शेखर के गीतों में उनका लोक उनके साथ चलता है । लोक जहाँ पर वे रमते हैं, लोक जहाँ से वे आते हैं । बिहार के , खास कर मिथिला/कोसी क्षेत्र के शब्दों को वे अपने गीतों में बड़ी सहजता से ले आते हैं । खिसियाना, धकधकाना, हकबकाना जैसे शब्द मुख्य धारा की हिंदी फिल्मों में आ रहे हैं और स्वीकार किए जा रहे हैं । इसका कुछ श्रेय राज शेखर को भी जरूर जाता है । अंग्रेज़ी और पंजाबी शब्दों को हम पहले ही हिंदी फिल्मों के गीत में स्वीकार कर चुके हैं । राज शेखर ने संख्या की दृष्‍टि से कम ही गीत लिखे हैं । यह दो बातों को इंगित करता है – एक कि राज शेखर हड़बड़ी में नहीं हैं दूसरे उनके काम की गुणवत्ता लोगों को उनसे बाँधे रखी है । अब जबकि फिल्मों में एक तरह से गानों की जगह कम होती जा रही है, राज शेखर के गीतों का आते रहना और भी जरुरी है ।

 

शैलेन्‍द्र ने अपने आत्म-परिचय में लिखा था – फिल्म-गीत लिखना अधिकतर बहुत आसान समझा जाता है । सीधे-सादे शब्द , घिसी-पिटी तुकें, कहा जाता है कि फिल्म-गीत और है क्या ?  मेरा अनुभव कुछ और है । फिल्म-गीत-रचना मेरी समझ से एक विशेष कला है । शैलेन्‍द्र पर चर्चा करते हुए डॉ. बुद्धिनाथ मिश्र ने लिखा है – मेरी बड़ी इच्छा है कि शैलेन्‍द्र के गीतों की साहित्यिक व्याख्या की जाए । ... यदि शैलेन्‍द्र के गीतों को समुचित ढंग से व्याख्यायित किया जाता तो यह दुरवस्था फिल्मों भी नहीं आई होती

 

हालाँकि यह कहना अभी शायद जल्दी होगा, लेकिन जिस तरह से वे चल रहे हैं, शैलेन्‍द्र और डॉ, बुद्धिनाथ मिश्र , दोनों, की बात भविष्य में राज शेखर पर भी लागू होगी ।

 

राज शेखर खूब लिखें, खूब अच्छा लिखें ।   

 

2 टिप्‍पणियां:

  1. किन्ही पर टिपण्णी के लिये भी बहुत कुछ अनुभव करना होता है , आपने तो उनकी सारांश लिख डाली । शीर्षक के संज्ञा और लेखक दोनो अद्भुत।

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