शनिवार, 5 सितंबर 2020

हिरना भागल जा ता हो
कस्तूरी मिलते नइखे

केतनो जोर लगाव हो
बोझवा त हिलते नइखे

कइसन तोर निसाना हो
गोटिया त पिलते नइखे

खाली सुतले-सुतला हो
घसवो ले छिलते नइखे

पनिया केतना डलब हो
फुलवा सन खिलते नइखे

घाव दरद बड़ देता हो
कोनो ऊ सिलते नइखे

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

कवि की क्लास

  कवि की क्लास [ एक सर्वथा काल्पनिक घटना से प्रेरित ]         ( एक)  हरेक  माल   सात  सौ  पचास वे  कवि   बनाते   खासमखास कवि बनो, छपाओ,  बँट...