मंगलवार, 25 फ़रवरी 2025

शिव-शम्भो



 

उच्छ्‍वास :देवघर से लौटते हुए

 

 

बाबा

तुमको देख नहीं पाया

कहाँ रहा ओझराया

तुमको देख नहीं पाया

 

देखी कितनी भीड़-भाड़

देखे मंदिर सुंदर

किंतु हुआ जब दाखिल अंदर

ऐसा धक्का खाया

तुमको देख नहीं पाया

 

धक्का जितना तन का था

उससे ज्यादा मन का था

बुद्धि ने भक्ति पर

ऐसा पर्दा गिराया

तुमको देख नहीं पाया

 

मुझको मंदिर में जाना था

लेकिन

साहबी ताना-बाना था

पुलिस सिपाही और पंडों ने

बेड़ा पार लगाया

संभवत: तभी तो

तुमको देख नहीं पाया

 

कोई कितना भी संकल्प कहे

जब तक कोई विकल्प रहे

मन फिरता है भरमाया

बाबा

तुमको देख नहीं पाया

 

अब आन बसो अंतर्मन में

चेतन में, अवचेतन में

कि जितना देखा जीवन में

तंग आया, मैं भर पाया

बाबा

तुमको देख नहीं पाया !!


बम शंकर

 

गौरी शंकर,     बम शंकर

बम शंकर, बम बम शंकर

पीड़ा   है  जो   मन-अंदर

कर   दे  वो  मन के बाहर

 

पुलक-पुलक जीवन भर दे

प्राणों   में   यौवन   भर  दे

मन   उद्यत    तत्पर-तत्पर

 

श्रम-साध्य सारे लक्ष्य करें

पक्ष में सब  उपलक्ष्य  करें

नभ  छू  लें  भूधर  हो कर

 

तप गौरी-सा प्राण बसे

कष्टों का जो बंध कसे

संग पार करें सब गिर-गह्वर

 

मन से बिल्कुल साध रहे

जो प्रेम रहे   अगाध  रहे

रहे भले बन कर औघड़

 

गौरी शंकर,     बम शंकर

बम शंकर, बम बम शंकर


 हे शिव-शम्भो !

 

दया करो अब शिव-शम्भो

भव पार करो अब शिव-शम्भो

बिन किए-धरे जो बैठे हैं

तैयार करो अब शिव-शम्भो

 

जलता चलता है देखो तो

दलता चलता है देखो तो

कुटिल-कुटिल दुखदायक मन

संहार करो अब शिव-शम्भो

 

सारे अपने बच्चे हैं

भीतर से बिल्कुल सच्चे हैं

कुछ कलुषित हैं, कुछ व्याधिग्रस्त

उपचार करो अब शिव-शम्भो

 

खाली कहने से होगा क्या

बैठे रहने से होगा क्या

इक अलख जगा दो अब मन में

उपकार करो अब शिव-शम्भो

 

या तो कष्टों को हर लो

या दृष्टि फिर अपनी दे दो

दुख की सीमा का भान तो हो

उद्धार करो अब शिव-शम्भो

 

इस जग के अवलंब हो तुम

हम जानें निर्द्वंद्व हो तुम

कुछ संबल मन को भी दे दो

बरियार करो अब शिव-शम्भो

 

जानते हैं सब जानते हो

हर किसी को मानते हो

अपनी कृपा की हम पर भी

झलकार करो हे शिव-शम्भो !


 हम पे किरपा थोड़ी 

हे भोले बाबा

हे माता गौरी

हम पे किरपा थोड़ी ...

 

सीमित अविरल हो जाए

सब सहज सरल हो जाए

जग जो भी राह चले

वो तुमने है मोड़ी

हे भोले बाबा ...

 

लय बची है, ताल भी

है जबकि जंजाल भी

दुनिया बाकी है फिर भी

ऐसी तुमने जोड़ी

हे भोले बाबा ...

 

सब भटकें जितना भी

सब अटकें जितना भी

सब शरण में तेरी हैं

तेरे मोढ़ा – मोढ़ी

हे भोले बाबा ...

 

गौरी हैं तो शिव भी

शिव हैं तो हैं गौरी

सृष्टि वही बाँधे हैं

हैं कसी हुई डोरी 

हे भोले बाबा ...



 हर हर बम बम

 

 

हर हर, बम बम

हर हर, बम बम

हर हर, हर हर

बम बम, बम बम

डमरू डम-डम

डम-डम, डम-डम

 

जीवन कुसुमित

कुसुमित जीवन

भर दम, हर दम

हरदम भर दम

 

हो नया-नया

हो शुद्ध हवा

हो धूप प्रखर

पानी चमचम

 

हर घर-आँगन

हर पल, हर क्षण

सुंदर से भी

हो सुंदरतम

 

छूटे ना पन

टूटे ना मन

कम ज्यादा हो

ज्यादा हो कम

 

सुंदर-सुंदर

अग जग सुंदर

जीवन कण-कण

तद् भव, तत् सम


कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

कवि की क्लास

  कवि की क्लास [ एक सर्वथा काल्पनिक घटना से प्रेरित ]         ( एक)  हरेक  माल   सात  सौ  पचास वे  कवि   बनाते   खासमखास कवि बनो, छपाओ,  बँट...