[१]
ऋतु वसंत
उल्लसित
हर्षित मन
शिराओं में
रक्त
उछलने को उद्यत
प्रकट-अप्रकट
मिजाज को
बदल देती हुई
ताजा- ताजा हवा
मन की
खिड़कियाँ
खुली तो रक्खी हैं न ?
फिर न कहना
सूचना नहीं थी !
[२]
बुला रही है
बता रही है
जला रही है
या फिर
सिर्फ
अपनी
ड्यूटी बजा रही है !
आप
किस मन से
सुन रहे हैं
साहब-मेमसाहब ?
एक कोयल
आपके मन में भी है
वसंत है
गाने दीजिए उसे !
[३]
डाल दूँ
एक अर्जी
राजा वसंत के यहाँ –
फागुन में
परदेस-गमन-निषेध हेतु
राजा तो
मान भी जाए शायद
हाकिम ??
[४]
वसंत की प्रतीक्षा में
______________
अमुक दिन
अमुक घड़ी
आ जाता है
नया साल
कैलेंडर का
सिर्फ़
पन्ना ही तो पलटा
अभी तो
कोंपलें फूटेंगी
पत्तियों से खेलेगी हवा
कोयल लगेगी गाने
यहाँ-वहाँ से
फुरफुरी
जाएगी जाग
फाग
लगाने लगेगा आग
नहाना
ठंढे-ठंढे पानी से
भाने लगेगा
तब जाकर
आएगा नया साल
पलट जाएगा
पन्ना एक और
संवत्सर का !
2.
जाड़े की
खिली हुई धूप
दुपहर की
खुली छत पर
मुंडेर के करीब
किसी गाल को
छुआ
किन्हीं उँगलियों ने
हवा हो गई
वासंती
आँखों में
तैर गए
रंग फाग के
3.
कोपलें फूटीं
नीम की
अंगुल भर की
एक चिड़िया नीली
एक
हरी नाज़ुक डाल पर
धूप
अभरक की तरह
चकमकाती
हवा
दिल लगाती
पत्तियों से
पड़ने ही वाले हैं
पैर
वसंत के !
4.
पूरी बाँह के
स्वेटर में
कसमसाने लगी है देह
धूप
हो चली है तीखी
दिन की
माघ शुक्ल पंचमी को
जब
उड़ेगा गुलालो-अबीर
ख़त्म हो जाएगा
मौसम अमीरों का
खिल जाएगा मन
फूलगेंदे -सा
5.
गेंदे ही गेंदे
लगे हैं दिखने
हर तरफ़
एक तो
हो चला है
मौसम
फूलों वाला
दूजे
यह मन वसंती !
[५]
आओ
कि चलो प्यार करें
बाहें खोलें
गले मिलें
सूर्य तपे
धरती गरमाए
पत्ते झरें, निकलें
फूल खिलें
नीम के गाल
सहलाए हवा
हौले
पत्तियाँ हिलें
ताले वाले बक्सों में
पुरानी चिट्ठियाँ मिलें
प्रेम
अपनी राह चले
कार्ड
छापती रहें मिलें
वसंत आया
अब
गाया करेंगी
रोज़ कोयलें
मौसम है
धड़क जाता है दिल
आँखें मिलें,
न मिलें
छलक ही जाता है
कुछ न कुछ
जाम
हिलें, न हिलें
[६]
आगमन वसंत
का
खिले फूल
खिली धूप
मन नया खिला-खुला
आदि, मध्य, अंत क्या
क्षण-क्षण
में जीवन
और सत्य –
क्षण-भं-गुर-ता
उत्सुकता
रात की
सुबह का
इंतज़ार-सा
करने को बात
नई
रँगने को
रँग नया
चल रे मन
चल पहन
चोला वासंती
तू भी तो
आखिर
दूत है वसंत
का
[७]
धूप
ने दर्शन दिये हैं
खूब
हमने छ्क पिये हैं
धूप
के प्याले सुबह में
जम-
सी गईं थीं हड्डियाँ
और
जैसे प्राण अपने
कम
गई थी लौ दिये में
लेके
आएगा वसंत
शीत
मारे दिन का अंत
और
गरमाहट हिये में
मानिए
जो दिन गये हैं
सब
कि पीछे गिन गये हैं
हिसाब
के लिये- दिये में
फिर
मच रहेगा फाग अब
फिर
से छिड़ेगा राग अब
और
सब अपने किये में
[८]
ऋतुओं
का राजा है
उठो, वसंत आया है !
सरसों
फूले,
मंजर
आए
मदमाने
लगी हवा
भरने
लगा
मन
स्फुरण से
मौसम
गरमाया है !
रगों
में हरारत
दिलों
में शरारत
फागुन
की आहट
क्या
माहौल जमाया है !
बैठे-बैठे
थक-थक के
उकताए
मन पक-पक के
करिए,कुछ करिए
कुछ
कर ही लीजै
विश्व
कर्मप्रधान,
बाकी
सब
खाली,खाली माया है !
जो
करम करे,
वही
राजा होए
कितना
हमको समझाया है
कुछ
करो,
वसंत
आया है
उठो, वसंत आया है !
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