बुधवार, 12 फ़रवरी 2025

पिता


पिता

      1

 

पिता के हिस्से

आती है अक्सर

सारी कड़ाई


कचकड़े-से कड़े

पिता


साथ-साथ चलते हैं पिता


धातुओं-से गलते हैं

बच्चों में

ढलते हैं पिता

 

बदलते हैं पिता...

 

            2

 

पिता की छाया

बेटी-बेटे में

पिता की छाँव                                                                                       

बेटी-बेटे पर


महसूस कर सकते हैं

पकड़ नहीं सकते !

 

           3

 

रबर हैं

पिता

कटर हैं

पिता

छीली हुई ताज़ा,

पेंसिल की नोक

उस नोक का

लिखा गहरा, सुंदर

और और बेहतर

असर हैं पिता


किसी को

पता भी चलता नहीं

उसमें कहाँ,

किस क़दर हैं पिता...

 

            4

 

पिता का

विरोध

पिता से

विद्रोह...


पता कीजिए

स्वभाव से

विद्रोही रहे होंगे पिता

अपने समय में...

 

        5

 

पिता

हममें होते हैं

हममें रहते हैं

 

कहीं

किसी बात

भाव, भंगिमा में

झलक जाते हैं


कोई आ कर

टोक देता है

"अरे, आप 'उनके' लड़के हैं" !

 

थोड़े ज्यादा मन से

जुट जाते हैं आप

अपने काम में

उस समय !!          

 

       6

 

रँग-रोगन जो भी हो

मिट्टी मेरी वही है

यानि कि

मेरे पिता की


समझेंगे

मेरे बेटे भी

ये

आज नहीं तो कल ...! 

 

               7

 

पिता

क्या सिखाते हैं ?

"कुछ भी तो नहीं"

 

यही

'कुछ भी नहीं' हो जाना

सिखाते हैं पिता ... !! 

 

         8

 

ज़िंदगी के

हर फ़्रेम में

पिता होते हैं

 

ज़िंदगी का

हर फ़्रेम ही

पिता होते हैं   

 

        9

 

बेटे गिरते हैं

आहत पिता होते हैं

बेटों को मिली सज़ा, दरअसल

पिता की सज़ा है...

यही तो मज़ा है  !       

 

 

          10

 

बच्चों के हवाले

पिता के सपने

 

पिता को याद आते

पिता अपने

 

आधे अधूरे

जाने कितने सपने

 

कहाँ याद आता

कुछ कहा हो पिता ने

 

सपने धीमे धीमे

बिना कुछ कहे

बन जाते हैं डी एन ए...     

 

         11

 

बेटा नहीं चाहता

बाप-सा होना

चाहता तो बाप भी यही है

 

चाहता है

एक दिन हो जाए वह

अपने बेटे-सा

कि लोग उसे जानें

उसके बेटे के नाम से...!!  

        

         12

 

छुपा गए भीगी बोली

कर के हँसी ठिठोली

बेटा जब अच्छा करता है

तब भीतर से मन भरता है

तब उठ जाती है अपनी दीठ

तब तन जाती है अपनी पीठ

मन देख जवां हो जाता है

क्या देख रवां हो जाता है  !

इतिहास बदल जाए अब तो

कुछ और सँभल जाए, तब तो !     

माँ तो फिर भी कह जाती है

बाप तो चुप ही रहता है    

 

 


कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

कवि की क्लास

  कवि की क्लास [ एक सर्वथा काल्पनिक घटना से प्रेरित ]         ( एक)  हरेक  माल   सात  सौ  पचास वे  कवि   बनाते   खासमखास कवि बनो, छपाओ,  बँट...