शनिवार, 3 मई 2025

आत्म-ग्लानि की खुराक [ भगत – बुतरू संवाद.1.0 ]



आत्म-ग्लानि की खुराक

[ भगत – बुतरू संवाद.1.0 ]

भगत जी – आदर्श व्यवहार किसे कहते हैं ?

बुतरू – जब कोई बात सही-सही, नियमों के अनुसार और स्वेच्छा से की जाए तो उसे आदर्श व्यवहार कहते हैं ।

भगत जी – फिर क्या है जो आदर्श नहीं है?

बुतरू – जो सही हो उसे न करना, नियमों का पालन न करना और इच्छा के विरुद्ध करना ।

भगत जी ‌- और अगर सब सही की परिभाषा के अंतर्गत हो, बने हुए नियमों के अनुसार हो, स्वेच्छा से हो तो ?

बुतरू – आप ही प्रकाश डालें महाराज ।

भगत जी – अच्छा , भ्रष्टाचार क्या है ?

बुतरू – भ्रष्ट आचरण ; लोक मर्यादा के विपरीत काम ।

भगत जी – यह तय कैसे हो कि आचरण भ्रष्ट है ?

बुतरू – इससे करने वाले का प्रत्यक्ष स्वार्थ सिद्ध होता हुआ दिखे ।

भगत जी – और अगर ऐसा न हो तो !

बुतरू— मैं समर्पण करता हूँ, आप ही बताएँ ।

भगत जी – अच्छायह कथा सुनो पहले  :-

 

आत्म-ग्लानि की ख़ुराक

 

एक समय एक देश में ।

             वो उपस्थित हुआ था अपनी आत्म-ग्लानि की खुराक लेने । मस्तक नत । नत मस्तक यानी विनम्रता । और फिर निरीहता के रास्ते आत्म-ग्लानि तक। आत्म-ग्लानि की खुराक हर व्यक्‍ति के लिए अनिवार्य कर दी गई थीजैसे पोलियो की खुराक । एक बार खुराक ले लेने के बाद कुछ समय तक आदमी बिल्कुल लीक पर चलता हैअसेम्बली लाईन की तरह । और भय का साया ओढ़े रहता है, जो कि शासन के निरंकुश बने रहने के लिए मुफ़ीद है । शासन का निरंकुश होना ज़रूरी होता है । नियमों का निर्धारण एवं उनका त्रुटि-रहित अनुपालन शासन की रीढ़ को मजबूत रखता है । यह बात दीगर है कि उससे भले कितनों की रीढ़ झुक जाएटूट जाए । टूटी रीढ़ों का अपने आप में भले ही महत्व न होसमग्र रूप में ऐसी ही रीढ़ें शासन को मजबूती प्रदान करती हैं ।

इस बार खुराक लेने में उसे थोड़ी देर हो गई थी । उसकी रीढ़ थोड़ी सीधी होने लगी थी । उसे लीक के बाहर भी दिखने लगा था । उसे पर्दे के पीछे की बातें और दस्तखत के आगे के परिणाम समझ आने लगे थे । वो तो संयोगवश खुराक देने वाले को उसके चाल-चलन पर संदेह हुआ और उसने खुराक देने के लिए उसे बुला लिया । डिस्पेंसरी में बैठे‌- बैठे अपनी बारी का इंतज़ार करते हुए वह कुछ अनर्गल एकालाप करने लग पड़ा था :-

  “बताइए साहब ! यह भी कोई बात हुई । कहते हैंझुके रहो । क्यों भाईहम सब अपनी-अपनी क्षमता और अवसर के हिसाब से काम करते हैं तो फिर क्या झुकना और क्यों ? कहते हैं शिष्टाचार बरतोहाल पूछो,दुआ-सलाम करते रहो । और एकतरफा करते रहो । कहते हैं सही बात भी मौका देख करमिजाज भाँप कर सामने रखो ।कहते हैं आम जन की चीजें खासमखास लोगों तक पहुँच कर कृतकार्य होतीं हैं । कहते हैं सदाचार हाकिमों को प्रसन्न करने के लिए किया गया व्यवहार-व्यापार है|

 डिस्पेंसरी के लोगों को कुछ भय हुआ । उन्होंने आपस में मशविरा किया और उसको खुराक लाईन तोड़ कर पहले दे दी गई ।

जब वो खुराक ले कर ‘कूलिंग पीरियड’ के बाद निकला तो वो एकदम सामान्य खुराकज़दा आदमी था और उसके विचार ‘कस्टमाइज़्ड’ हो चुके थे :-

  “झुके रहना ही तो असली फितरत है । झुके अगर नहीं रहोगे तो बड़ा कौन हैकैसे पता चलेगा ? बड़ा लगने देना बहुत बड़ी बात है । दुआ-सलाम नहीं करोगे तो आशीर्वाद कैसे मिलेगाकृपापात्र कैसे बनोगे ? और सच क्या है – विशेष परिस्थिति मेंविशेष लोगों द्वाराकार्य-विशेष के लिए प्रस्तुत तथ्य-विशेष ; और इसके लिए मिजाज भाँपा नहीं तो ‘विशेष’ क्या बचा ? और खासमखास क्या होता है ? अरे जो प्रस्तुत किया जा रहा है उसको चख कर देखेगा तो कोई ! शबरी को भूल गएसदाचार क्या हैआदर्श परिस्थितियों में आदर्श जन द्वारा किया गया आदर्श व्यवहार । और सबसे बड़ा आदर्श – हाकिम !”

 बुतरू – अच्छा , यह तो बताएँ कि यह देश कौन और यह समय कबका है?

 भगत जी – यह तो तुम बताओ !


कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें