शनिवार, 3 मई 2025

आज का यक्ष प्रश्न [ भगत – बुतरू संवाद.1.0 ]

 

आज का यक्ष प्रश्न

[ भगत – बुतरू संवाद.1.0 ]

 

 भगत जी                 - महाभारत के यक्ष- प्रश्न बारे में तो जानते ही हो । उसमें एक प्रश्न है “ राष्ट्र कैसे मर जाता है?” तुम क्या समझते हो इससे ?

 बुतरू                      - युधिष्ठिर ने तो जवाब दिया था कि शासक के बिना राज्य नष्ट हो जाता है। मैं भी समझता हूँ कि योग्य शासक हो तभी राज्य बचता है ।

 भगत जी                   - अगर शासक होंतो राज्य अखंड रहता है ?

 बुतरू                      - हाँशासक राज्य की हर व्यवस्था को सुचारु रूप से लागू करता है , जिससे कि राज्य में खुशहाली बनी रहती है । शासक न हो तो व्यवस्थाएँ चरमराने लगती हैं ।

 भगत जी                 - व्यवस्था से तुम्हारा क्या तात्पर्य है ?

 बुतरू                      - व्यवस्था यानी कि हर बात के लिए नियमकायदे-कानूनउनकी देख-रेख करने का इंतजाम ।

 भगत जी                 - तो अगर शासक होंनियम कानून होंउनकी देख-रेख करने के लिए भी व्यवस्था हो तो राज्य की हानि नहीं होती है ? और भी कुछ ?

 बुतरू                      - जी । कुछ नियम कायदे तो लिखित होते हैं , कुछ समाज के अनुसार भी व्यवहार की अपेक्षा की जाती हैजिसका लोग अनुपालन करते हैं ।

 भगत जी                 - यानी कि अलिखित अनुशासन ।   यानी कि शासक होनियम कानून होंउनकी देख-रेख का इंतजाम होसमाज के कुछ अनुशासन हों तो राष्ट्र जीवित रहता हैमरता नहीं । यानी कि दूध होचाय-पत्ती होपानी होचूल्हा होबर्तन हों तो चाय अच्छी बनेगी ?

 बुतरू                      - तो आप ही बताइए । वैसे सबसे प्रसिद्ध प्रश्न तो यह है “ सबसे बड़ा आश्चर्य क्या है?”

भगत जी                 - अच्छा एक कथा सुनो , फिर बताओ :-

 

आज का यक्ष प्रश्न

 

एक राष्ट्र था । था क्या , है भी ।

 विनम्र राष्ट्र था । इतना कि महादेश जितना बड़ा होने के बावजूद देश कहला कर ही संतुष्ट था।

 देश बहुत ही पुराना था । इतना प्राचीन कि उसे अजर-अमर माना जा सकता है । देश जितना पुरानाउसकी सभ्यता और सँस्कृति उतनी ही पुरानी। पुराना देशी घी - शुद्ध ! न जाने कितनी सभ्यताओंसँस्कृतियों का समागम !

 देश में एक से बढ़कर एक शासक हुए । राजेमहाराजेचक्रवर्तीविश्वविजेता – कौन था जो यहाँ नहीं हुआइसकी प्रसिद्धि से अभिभूत नहीं हुआ ।

 तो एक समय की बात है ।

 देश में सब कुछ बढ़िया चल रहा था । बढ़िया चलना , समग्रता में देखने पर दिखता है । करोड़ों बातों में कुछ सैकड़ेहजार की गिनती नहीं की जाती है । वैसे भी हंड्रेड पर्सेंट तो कुछ भी नहीं होता है । हंड्रेड पर्सेंट तो बस कम्पनियों के लक्ष्य पूरे होते हैंभले ही कागज़ पर हों केवल या फिर बच्चों की मार्क-शीट मेंजो भले ही सिर्फ अभिभावकों की महत्वाकांक्षाओं में हो !!

 शासक स्थापित थे । नियम-कानून पुराने थेमगर टाइम-टेस्टेड । हाँ जो ज्यादा ही पुराने हो गए थे और राष्ट्र की संप्रभुता पर ही प्रश्न-चिन्ह थे उनको बदलने की कवायद की जा रही थी । नियम-कानून की व्यवस्था बनाए रखने के लिए पूरा तंत्र विकसित था । उस तंत्र को मालूम था किसकी कब और कितनी सुरक्षा की जानी है । जिनकी सुरक्षा की जानी हैनियमानुसारउनकी सुरक्षा कर देने से पूरा राष्ट्र सुरक्षित महसूस करता था । कम-से-कम सुरक्षित महसूस कराया जाता था ।

 देश तो वैसे भी स्वतंत्र था । वहाँ के लोग उससे भी ज्यादा स्वतंत्र होना चाह रहे थे । आजादी के गाने गाने की भी स्वतंत्रता थीऔर ऐसा गाने वालों को पीटने की भी । नए-नए दंड लागू करने की भी स्वतंत्रता थीउस दंड से बच निकलने की तरकीबों को आज़माने की भी । दोषी समझे जाने वाले को सरे आम मार डालने की भी स्वतंत्रता थीसज़ायाफ़्ता लोगों को अपना नेता चुन लेने की भी । पर्व-त्योहारोंसभाओं-मीटिगों में गले लग-लग के मिलने की भी स्वतंत्रता थीमिलने-जुलने के कारण बच्चों के ऑनर किलिंग की भी ।

 तो सबकुछ बढ़िया चल रहा था । कुछ सुधि जनों का ध्यान इस तरफ गया कि महिलाओंस्त्रियों की इज्जत करने की स्वतंत्रता तो बड़ी बात है । लेकिन जिस तरह अदालत में पक्ष के साथ साथ प्रतिपक्ष को भी मौका दिया जाता हैस्त्रियों के सम्मान का प्रतिपक्ष तो होना ही चाहिए । देश के सदन को छोड़ हर जगह प्रतिपक्षबल्कि बलशाली प्रतिपक्ष का होना बहुत जरूरी है ।

 फिर सिलसिला चल निकला ।

 स्त्रियों की इज्जत न करने काउन पर ज्यादतियाँ करने का ।

 चूँकि स्वतंत्रता की देश में बहुत ही ज्यादा कद्र थी , स्वतंत्रता का पूरा खयाल रखा जाता था ।

 घर में बे-इज्ज्त करने की स्वतंत्रताबाहर पूजने की स्वतंत्रता ।

 लेकिन दुनिया बढ़ रही थी । देश भी बढ़ रहा था । दुनिया और भी स्वतंत्र हो रही थीदेश भी और भी ज्यादा स्वतंत्र हो रहा था ।

 स्त्रियाँ बाहर निकलने लगीं । उनको उसकी स्वतंत्रता । साथ ही उनकी राह में रोड़े अटकाने की स्वतंत्रता । स्त्रियाँ शायद बहुत -बहुत दिनों बाद आज़ाद महसूस करने लगीं थींसो अप्रत्याशित और आशातीत सफलता प्राप्त करने लगीं ।

 इस बात का विरोध करने के लिए भी लोग स्वतंत्र थे ।

 स्त्रियों पर हमले होने लगे । मानसिकवाचिक और फिर दैहिक ।

 स्त्रियाँ एक से बढ़कर एक सफलताएँ प्राप्त करने को स्वतंत्र थीं । दूसरी तरफ उनके विरुद्ध एक से बढ़कर एक ज्यादतियाँ करने की स्वतंत्रता लोगों ने स्वयंभू तरीके से ले ली । कई बार चीज़ें एक हद से निकल जाती हैं , फिर अपनी ही गति से चलने लग पड़ती हैं । कुछ ऐसा ही हो चला । ज्यादतियों की खबरें बढ़ने लगीं । एक के बाद एक । हर तरफ से । हर दिन ।

 

कहीं एक सभा हुई –

 “नियंत्रण पाना जरूरी है ।

 लड़कियों से कहा जाए , देख-सुन के निकलें । देख-सुन के बात-व्यवहार करें । देख-सुन के मेल-मिलाप करें । हँसी-ठिठोली से दूर रहें । लोग गलत समझ सकते हैं । ज़माना खराब है । जो खराब हैउसको तो कुछ कह नहीं सकते । खराब लोगों के मुँह नहीं लगते । खुद ही समझदार बनें लड़कियाँ ।

 खबरों पर ज्यादा ध्यान न दें । कोशिश की जाए कि खबरों को जगह ही कम मिले । वैसे भी खबरें सच कहाँ होती हैं । सच का टेंडर तो कुछेक लोगों के ही पास होता है । वे काम की बातों पर ध्यान देते हैं । लड़कियों की सुरक्षा तो व्यक्तिगत तौर पर भी देखी जा सकती है । बल्कि देखी जानी चाहिए । समाज व्यक्तियों का ही समुच्चय तो होता है ।

 किसी भी रेखा को बिना मिटाए छोटा करना हो तो बगल में उससे बड़ी रेखा खींच दीजिए । घटनाओं और खबरों पर यह बात अक्षरश: लागू होती हैयह बात ज्ञानी लोग जानते ही हैं ।

 शासन की भी अपनी व्यवस्था थी । शासन की अपनी ही व्यवस्था होती है । सधे हुए पतंगबाज की तरह कहीं ढील देना और कहीं कस देना उसे अच्छी तरह आता है ।

 कानून भी चूँकि एक ही साथ कई-कई चीजों पर लागू होता हैवो भी कहीं ढीलाकहीं कसा हुआ रहता है । फिर कानून तो गांधारी है , उसे दु:शासनों के दोष क्यों दिखेंगे ?!

 ऐसे ही किसी समय में कोई दो व्यक्ति आपस में बात करते हुए पाए गए :-

 पहला        - स्त्रियों के लिए बहुत ही बुरा समय चल रहा है ।

 दूसरा        - किस लिहाज़ से भाई ? स्त्रियाँ प्लेन उड़ा रही हैंबैंकों-कंपनियों की अध्यक्ष बन रही हैंडॉक्टरइंजीनियर बन रही हैंसफल प्रशासक बन रही हैंमंत्री बन रही हैं , जिस भी क्षेत्र में देखिए कमाल कर रही हैं ।

 पहला        - ऐसी कितनी होंगी ? मुठ्ठी भरया उससे थोड़ा ज्यादा ।

 दूसरा        - नहीं भाईये गिनती रोज़ बढ़ती जा रही है ।

 पहला        - एक दूसरी मुठ्ठी भी है । उसके बारे में क्या खयाल है ?

 दूसरा        - देखिए समाचार पत्रों और अन्य साधनों पर बहुत ध्यान मत दीजिए । अपराध हर क्षेत्र में हो रहे हैं और हर आदमी ही पीड़ित है ।

 पहला        - इसका मतलब क्या है ? ऐसे ही छोड़ दिया जाए ?

 दूसरा        - कार्यवाही हुई तो है । कार्यवाही होती तो है । हाँन्यायिक प्रक्रिया हैहर पहलू पर विचार कर के चलती है , तो कभी-कभी देर भी हो जाती है । कभी-कभी तो बहुत जरूरी मुद्दों का निपटारा होने में पच्चीस-तीस वर्ष लग जाते हैं , आपने देखा ही है ।कभी-कभी कुछ मामलों में चट-पट भी हो जाता हैये अलग बात है ।

 पहला        - जो फैसले बहुत देर से लिए जाएँ या बहुत ही जल्दी ले लिए जाएँ उनमें निहित स्वार्थों की खोज की जानी चाहिए । और एक कहावत है , रोकथाम ईलाज से बेहतर है । आपका क्या खयाल है ?

दूसरा        - उसके लिए भी उपाय तो किए ही जा रहे हैं । बेटियों को पढ़ाने और पढ़ाने के लिए बचाने का आह्वान तो आधिकारिक तौर पर भी किया गया है ।

 पहला        - कोई कानून और उसको सख्ती से लागू करने के लिए कुछ ?

 दूसरा        - अरे भाईकानून तो हैं । लेकिन कार्यवाही तो सूचना के आधार पर ही की जा सकती है न ?

 पहला        - भले ही किसी की जान चली जाए ? जान ले ली जाए ?

 दूसरा        - मतलब ?

 पहला        - आप कोई गाड़ी चलाते हैं ? बाईक या कार ?

 दूसरा        - हाँदोनों ।

 पहला        - पुलिस आपके हेलमेट की जाँच क्यों करती है ? उनको सूचना कौन देता है?

 दूसरा        - ऐसा कानून है । और फिर मेरी ही सुरक्षा के लिए । और सूचना क्यों चाहिए भाईजाँच करने के लिए ।

 पहला        - आपको ही कुछ होगा न ? किसी और को तो नहींआपकी जान हैआप ले ही सकते हैं । पुलिस क्यों परेशान होती है ?

 दूसरा        - जिम्मेदार पुलिस का काम है सुरक्षा करना । दुर्घटनाओं की रोकथाम करना । कानून भी यही है । आपने भी तो इस संबंध में कितने विज्ञापन देखे होंगे ।

 पहला        - किसी बच्चीकिसी लड़कीकिसी महिला के साथ दुर्व्यवहारउनका बलात्कार और निर्मम हत्या – इस पर आप क्या बोलते हैं?  पुलिस कितनी मुस्तैद रहती है ? आपने कितने विज्ञापन इस अपराध के खिलाफ और उसके लिए होने वाली सजाओं के बारे में देखे हैं ? छोड़िए इन सब बातों कोआप बताइए आप क्या करते हैं व्यक्तिगत स्तर पर ?

 दूसरा        - मैं पूरा खयाल रखता हूँ अपने परिवार की सुरक्षा का । यह सुनिश्चित करता हूँ कि लोग समय से जाएँ और समय से आएँ । ठीक जगहों पर जाएँ । अच्छे लोगों से मिलें ।

 पहला        - आपको लगता है कि आप पूरी तरह सुनिश्चित कर सकते हैं ?

 दूसरा        - एकदम हंड्रेड परसेंट तो नहीं हो सकता हैलेकिन फिर भी जहाँ तक हो सकता है , करता हूँ ।

 पहला        - और उसके बाद?

 दूसरा        - कुछ भगवान पर भी छोड़ना पड़ता है । आप सबकुछ तो नहीं कर सकते ! आस्था में बल होता हैयह आप भी मानेंगे ही ।

 पहला        ‌‌- बस यही तो बात है । पूरा सिस्टम ही भगवान पर छोड़े हुए है । देश महादेश नहीं कहलाने की विनम्रता बरतता हैदरअसल यह देश भी ठीक-ठीक कहे जाने लायक है या नहीं,पता नहीं !! कितना  आश्चर्य है कि रोज़ खबरें देख-सुन रहे हैं , फिर भी सब निश्चिंत हैं कि अपने साथ नहीं होगा । आस्था में वाकई बहुत बल होता है !

 

बुतरू         - कुछ सोच रहा हूँ ।

 भगत जी  - क्या?

 बुतरू        - आश्चर्य तो है कि रोज़ खबरें देखने-सुनने के बाद भी लोग निश्चिंत हैं , मगर दूसरा प्रश्न भी उतना ही प्रासंगिक है ।

 भगत जी     - वो क्या ?

 बुतरू        - यही कि चाय हमेशा अच्छी नहीं भी बन सकती है । और राष्ट्र मरता ही नहीं , कभी-कभी उसकी हत्या भी कर दी जाती है । धीमे-धीमे ।

 

भगत जी ने बुतरू के कंधे पर हाथ रख दिया ।


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