शनिवार, 3 मई 2025

सर्टिफिकेट वाला सत्य [ भगत – बुतरू संवाद.1.0 ]

 

सर्टिफिकेट वाला सत्य

[ भगत – बुतरू संवाद.1.0 ]


 

भगत जी                 - सत्य क्या होता है ?

 बुतरू                      - सत्य यानी सच । यथार्थ । यथातथ्य, ज्यों की त्यों ।

 भगत जी                  - यह तो शब्दकोश में दिए गए अर्थ हैं । क्या जो है, जैसा है, वही सच है ?

 बुतरू                      - हाँ । जो है, वही तो सच होगा ?

 भगत जी                  - अच्छा, अगर एक आदमी जेल में है तो क्या वह अपराधी है ?

 बुतरू                      - हो भी सकता है और नहीं भी ।

 भगत जी                  - फिर सच क्या हुआ ?

 बुतरू                      - आप ही बताइए फिर ।

 भगत जी                 - अच्छा एक कथा सुनो –

 

 

 

सर्टिफिकेट वाला सत्य

 

एक बार की बात है । एक देश था । देश हजारों वर्ष पुरानी सभ्यता वाला, यहाँ तक कि यह माना जाता था कि सभ्यता का जन्म ही इसी देश में हुआ । देश में सत्य का बहुत मान था। होठों पे सचाई और दिल में सफाई वाला देश ।

 उसी देश में दो युवक थे । उनकी जान- पहचान मित्रता से आगे बढ़ रही थी ।

 एक दिन एक मित्र ने दूसरे से पूछा – अच्छा, आपकी उम्र क्या होगी ?

 देश दिल में सफाई वाला देश था, होठों पे सचाई वाला, दूसरे ने जवाब दिया – ऐसे तो छब्बीस है लेकिन सर्टिफिकेट में चौबीस । और आपकी उम्र ?

 दूसरे ने जवाब दिया – ऐसे पच्चीस , सर्टिफिकेट में चौबीस ।

 

वे बखूबी जानते थे कि बात का असल में होना कुछ और है, सर्टिफिकेट में होना कुछ और । माना वही जाएगा जो सर्टिफिकेट पर लिखा है ।

 उन्हीं दिनों की बात है । दसवीं और बारहवीं कक्षाओं के परिणाम घोषित हुए थे । निनान्यबे, साढ़े निनान्यबे, निनान्यबे दशमलव सात, आठ, नौ ... । अंकों की जैसे बरसात हो रही हो ।  पच्चीस साल वाले ने कहा – हमारे समय में तो बहत्तर- तिहत्तर प्रतिशत पर  ही मिठाई मिल जाती थी ।

 चौबीस साल वाले ने कहा – मेरे पिता जी को तो सेकेन्ड क्लास के मार्क्स होने बावजूद विश्वविद्यालय में प्रथम स्थान प्राप्त हुआ था । हमलोगों के समय में भी तो, जब अखबारों में रिजल्ट प्रकाशित होते थे, फर्स्ट डिविज़न, सेकेंड डिविज़न, थर्ड डिविज़न की लिस्ट निकलती थी ।

 पहले ने कहा – हाँ । मगर आज के बच्चे हैं भी बहुत तेज़ । हमलोग सपने में भी नहीं सोच सकते थे कि अंग्रेजी और हिन्‍दी में सौ में सौ आ जाएँ। और तो और गणित में भी साफ- सफाई के अंक कट जाते थे ।

 दूसरे ने कहा – सो तो है । लेकिन मार्क्स तो यही कहते हैं कि आज के बच्चे ज्यादा तेज़ हैं । मार्कशीट से ज्यादा भला चाहिए भी क्या ? !

 पहले ने कहा – हाँ, जो  मार्कशीट में छप गया वही काम आएगा । वही माना जाएगा । आप भी वही मानेंगे और बच्चे को भी वही मानने पर मजबूर कर देंगे । बुद्धिमत्ता और काबिलियत तो अंकों का परम्यूटेशन- कॉम्बिनेशन है !

 सर्टिफिकेट और दस्तखत का वैसे भी बड़ा महत्त्व होता है । ये न हों तो देश में एक काम न हो ।

 देश में सच का राज था । चहुँ ओर विकास की धारा बहती थी । प्रगति सरपट दौड़ती थी । कितने महकमे, कितने दफ्तर , कितने लोग देश को आगे बढ़ाने में लगे हुए थे । कभी- कभी लोग आस- पास देखते तो उनको लगता कि जो बताया जा रहा है स्थिति वैसी तो है नहीं । फिर वे आँकड़ों को देखने लग जाते । मन को तसल्ली हो जाती । इतनी सारी रिपोर्टें विकास और विकास के अनुमान को सिद्ध कर रही थीं । रिपोर्ट आधिकारिक और सरकारी हो तब तो कुछ भी संशय की गुंजाइश नहीं बचती । रिपोर्टें, प्रशस्ति- पत्र, विज्ञापन – सब प्रमाणित कर तो रहे कि हालचाल ठीक-ठाक है ।

 देश में व्यवस्थाएँ एकदम सुचारु थीं । सत्य के प्रति निष्ठा चरम पर थी । अब जैसे बहुजन हिताय कोई योजना बनाई गई । योजना को लागू करने के आदेश पारित हो गए । योजना की प्रगति पर नजर रखने के लिए लोगों की नियुक्ति हो गई । किसी भी योजना की सफलता तो तब है जब वह तय समय-सीमा में लागू हो जाए । इसीलिए एक लागू करने की और उसे पूरा करने की तिथि घोषित हो गई । लेकिन जैसी कि आदमी की फितरत होती है , काम में देर- सबेर तो हुआ ही करती है । काम होने में देर सबेर होना अलग बात है, काम पूरा होने की घोषणा होना अलग बात । तो हर ईकाई से एक प्रमाण-पत्र ले लीजिए कि काम पूर्ण हुआ । घोषणा कर दीजिए, विज्ञापन दे दीजिए । सत्य के प्रति निष्ठा देखिए कि प्रमाण-पत्र लेना और देना धर्म की तरह निभाया जाता था । प्रमाण पत्रों की एक बानगी देखिए – चरित्र प्रमाण- पत्र, जाति प्रमाण- पत्र, आवासीय प्रमाण-पत्र,जन्म प्रमाण- पत्र, मृत्यु प्रमाण- पत्र , जीवन प्रमाण- पत्र, परीक्षा में सफल होने का प्रमाण- पत्र, किसी प्रतियोगिता में भाग लेने का, सफल होने के प्रमाण-पत्र, किसी कार्यक्रम में शिरकत का प्रमाण- पत्र आदि- इत्यादि । यानी कि जिधर देखूँ सर्टिफिकेट की नज़र आए । इन सबसे भी पहले व्यक्ति का पहचान- पत्र । कोई पहचान- पत्र नहीं तो आपका अस्तित्व ही नहीं । 

 देश की न्याय- व्यवस्था भी चाक- चौबंद थी । कई बार तो न्यायालय स्वत:- संज्ञान लेकर स्थिति को ठीक कर देता था । न्यायालय ने स्वत: संज्ञान ले लिया । हाकिमों को तलब कर लिया । वस्तुस्थिति स्पष्‍ट करने के लिए हलफ़नामा प्रस्तुत करने का आदेश दिया । अब हाकिम स्वयं में तो कोई व्यवस्था होते नहीं, खासकर जब जिम्मेदारियों को निभाना हो । तो आदेश निर्गत होते मातहतों के लिए - वस्तुस्थिति और उसमें वांछित सुधारों पर प्रमाण-पत्र प्रस्तुत करने के । फिर प्रमाण -पत्र बनाए जाते । चिड़िया बैठाने की प्रक्रिया शुरू होती । सबसे निचले कर्मचारी, जिसने प्रमाण- पत्र बनाया, से लेकर सबसे ऊपर तक चिड़िया बैठाई जाती और अंतत: प्रमाण- पत्र हस्ताक्षरित होकर बड़े हाकिम के पास पहुँच जाता । उसके आधार पर हलफ़नामा प्रस्तुत कर दिया जाता । सबों की जिम्मेदारियाँ निभ जातीं । और अगर संयोगवश प्रमाण- पत्र में कोई त्रुटि उजागर हो जाती तो जिसने सबसे पहले चिड़िया बिठाई, उस पर कठोर कार्र्वाई कर दी जाती । सत्य के लिए आहुति दी ही जाती है ।  वस्तुस्थिति देखने-समझने की चीज़ नहीं, प्रमाण- पत्रों में घोषित करने की चीज़ है ।

 देश बहुत विशाल देश था । न्यायपालिका, कार्यपालिका , विधायिका – किसी के लिए भी संभव नहीं था, स्थिति पर नज़र बनाए रखना और उसमें सुधार करना । हर बात के लिए प्रमाण- पत्र की व्यवस्था कर दी गई थी । अपराधी प्रमाण- पत्र दे रहे थे, बरी हो रहे थे । नेता प्रमाण- पत्र दे रहे थे, चुने जा रहे थे । जन्म से लेकर मृत्यु तक, हर घटना, मौके को प्रमाण- पत्रों की सहायता से सिद्ध किया जा रहा था, साधा जा रहा था ।  फिर लिखित बातों का महत्त्व ज्यादा होता है, उनमें वज़न ज्यादा होता है , वे , शाश्‍वत अगर न भी कहें, तो दीर्घायु तो होती ही  हैं । सत्य वही जो प्रमाणित किया जा सकेजो प्रमाणित किया जा सके सत्य वही । तो सत्य दीर्घायु हो रहा था । यह अलग बात है कि कोई भी उच्च पदस्थ व्यक्ति लिख कर देने में हिचकता है ।

 

 बुतरू                      - तब तो सत्य क्या है , यह तो पता ही नहीं चलेगा ।

 भगत जी  - क्यों ?

 बुतरू                      - क्योंकि जो महसूस किया जा रहा है, जो दिख रहा है और जो दर्ज़ किया जा रहा है, वो तो अलग- अलग बातें हैं । मुद्रा-स्फीति की तरह हर बात में ही स्फीति हो रही है। सबसे ज्यादा सत्य में ।

 भगत जी  - तुम व्यथित न हो । वर्तमान में जियो । यह देश सिद्ध पुरुषों का देश है । तुम भी स्थित-प्रज्ञ हो जाओ । अपने वर्तमान के अलावा तुम्हारी कहीं कोई जगह नहीं है । और देश, काल के चक्र में अपनी गति को स्वत: प्राप्त होता है , चिंता न करो ।

 बुतरू                      - मैं लिख के देता हूँ इस देश का कुछ नहीं हो सकता !!

 भगत जी  - लिख के देते हो .... !!

 भगत जी हँसते हुए उठ खड़े हुए ।


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