नए समय में
मगध में नए सम्राट का उदय हुआ है आर्य !
तुम्हारी सूचना अपूर्ण है वत्स
फ़िलवक़्त कई सारे सम्राट हैं मगध में
सुब्हो-शाम जाने कितने तैयार भी हो रहे हैं
ये कैसी अनार्य भाषा का प्रयोग कर रहे हैं आप?
और एक ही साथ कई सम्राट कैसे संभव हैं आर्य?
सम्राट होने की अर्हता बदल चुकी है वत्स
यह समय राज का नहीं जन का है
जहाँ भी जन है, सम्राट निकल सकता है
दिशानुकूल, भावानुकूल
यानी किसी भी दिशा से सम्राट आ सकते हैं आर्य?
प्राच्य पश्च दक्षिण वाम?
दिशाएँ दस होती हैं वत्स
और फिर कई सारे
परम्युटेशन कॉम्बिनेशन भी तो बनते हैं!
इस नए समय में
सम्राट की पहचान क्या है आर्य?
जिसके कुछ भी अनुयायी हों, वही सम्राट है
अनुयायी अर्थात् भीड़?
वह तो किसी प्रमाण-पत्र,
किसी पुरस्कार-वितरण समारोह से भी संभव है आर्य !
संभव तो रात्रिभोज से भी है !
आप भी तो सम्राट हैं आर्य?
नहीं, मैं सम्राट के अतिरिक्त प्रभार में हूँ
दरअसल मैं एक चाणक्य हूँ वत्स !
कभी मेरे आवास पर आओ तो पता चले...
(२)
इस अजूबे समय में
मगध का हर व्यक्ति सम्राट हो जाना चाहता है
अचरज इस बात पर उतना नहीं
जितना कि इस बात पर
कि हर व्यक्ति, सामर्थ्यवान से सामर्थ्यवान व्यक्ति भी,
सिर्फ अपनी सामर्थ्य के भरोसे
आगे नहीं बढ़ना चाहता
उसकी सफलता के उपादान बदल चुके हैं आर्य !
वत्स, जब समय का ही धीरज चुक गया हो
मनुष्य में कहाँ बचेगा धैर्य ?
सफलता के मापदंड जब बदल गए हों
पीछे छूट जाने का जोखिम कोई कैसे उठाए ?
आज व्यक्ति कोई कसर नहीं उठा रखता
वह जानता है पीछे छूट गए लोगों का हश्र
स-फल होना सु-फल होना नहीं है
कोई इन्हें समझाता क्यों नहीं आर्य?
बहुत लोगों की दुकान बंद हो जाएगी वत्स
समझा करो !
जीवन की क्षणभंगुरता में विश्वास करो
और अपनी अमरता में...
(३)
बड़ा विचित्र समय हो गया है आर्य
अमात्य सारे चाटुकार हो गए हैं
सचिव, गुरु, वैद्य अमात्यों के अधीन
कुलपति पथभ्रष्ट होने लगे हैं
आचार्यगण व्यवसायी
अब तो न्यायाधीशों की साख पर भी
बट्टा लगने लगा है
अंतिम सिरे पर खड़ा व्यक्ति किस ओर देखे?
वत्स, पीछे देखे और आगे बढ़े
औरों को पीछे छोड़े और आगे बढ़े
सबसे पहले स्वयं की सहायता का ध्यान रखे
जब ऑक्सीजन कम हो
मास्क पहले खुद को लगाएँ
पूरे वातावरण में ऑक्सीजन कम हो रहा है आर्य !
(४)
मगध में स्त्रियाँ सुरक्षित नहीं हैं आर्य !
उनका सम्मान नहीं हो रहा इन दिनों
ऐसा कब नहीं था वत्स?
अपवादों की बात छोड़ो
हाशिया हमेशा हाशिया ही रहता है
स्थितियों कभी तो बदलेंगी
हम कभी तो बदलेंगे आर्य ?
कोई भी दूरगामी परिवर्तन बहुत ही धीमी गति से होता है
अपनी आँखें खुली रखो, वत्स
परिवर्तन के चिह्न दिखेंगे
हाँ, हर समय में प्रतिगामी शक्तियाँ सक्रिय होती हैं
उन पर अपनी ताकत मत बर्बाद करो
हमारा तुम्हारा जीवन बहुत छोटा है
यथासंभव प्रयास करो...
(५)
मगध में ऐसा कोई घर नहीं बचा है आर्य
जहाँ कोई बिना बताए, बिना पूछे जा सके
हर चीज बढ़ी है, लेकिन फुर्सत कम हो गई है
लोगों को दम लेने की भी फुर्सत नहीं
व्यर्थ व्यथित मत हो वत्स
जीवन में बातें घटित होती हैं
व्यक्ति की प्राथमिकताओं के आधार पर
जो चाहोगे, सो पाओगे
कुछ नहीं चाहोगे, कुछ नहीं पाओगे
आप तो निश्चिंत दिखते हैं आर्य !
आपके दरवाजे तो सदा खुले रहते हैं
आगंतुकों के लिए
यह तो प्रेरणादायी है
हर बात के निहितार्थ होते हैं वत्स...
(६)
मगध में वृद्ध बहुत अकेले हो गए हैं आर्य !
यह आधुनिक समाज की निशानी है वत्स !
वृद्ध जब युवा होते हैं, अंधाधुंध दौड़ रहे होते हैं
जबतक ठहरने का समय आता है
पिछली पीढ़ी जा चुकी होती है
अगली पीढ़ी बहुत आगे निकल चुकी होती है
अकेलापन तो अवश्यंभावी है
पुत्र-पुत्रियों बंधु-बांधवों से आगे देख
समाज में निवेश करें, डिविडेंड जरूर मिलेगा
आप क्या और कैसे कर रहे हैं आर्य ?
फिलहाल तो एक कमरा बुक कर लिया है हरिद्वार में
अभी से आर्य ?
उम्र का क्या ठिकाना, कब ढल जाए
लोगों का मन कब बदल जाए
आजकल किसी के लिए कुछ भी कर दो
समय पर कोई काम नहीं आता
यह एक अलग समस्या है...
(७)
शिक्षा और स्वास्थ्य-व्यवस्थाओं का बहुत बुरा हाल है आर्य
इसलिए कि सरकारें डरती हैं वत्स
वे शिक्षित और स्वस्थ जनता नहीं चाहतीं
उन्हें बर्दाश्त नहीं होता
असहज करने वाले प्रश्नों का पूछा जाना
सरकारें यथास्थिति बनाए रखना चाहती हैं
यथास्थिति उनकी ढाल है, जिसके सहारे
वे रोके और दबाए रखती हैं जनता को
हमें और तुम्हें
आप तो दबाए गए नहीं लगते आर्य
क्योंकि मैंने भी अपने हाथों में
एक छोटी ढाल उठा ली है
मेरे पीछे लेकिन एक बड़ी ढाल लगी है
मुझे रोकती, मुझे दबाती
(८)
मगध में अब कोई किसी को
अपनी तरफ से कुछ नहीं बताता है आर्य, मित्र भी नहीं
सब हाल सरकारी दफ्तरों-सा हो गया है
जरूरत हो तो पूछ लो
उनकी सुविधा और समय से जवाब मिलेगा
अगर मिला तो
दुनिया की संस्कृति आगे बढ़ चुकी है वत्स !
लोगों की निजता का प्रश्न है !
बताने वाला निजता को क्यों उजागर करे
पूछने वाला खलल क्यों डाले उसमें
फिर आभासी दुनिया का इतना बड़ा संसार जो है
संवाद और घोषणा के लिए
सब को सब पता है
और कोई कुछ जानता भी नहीं
बहुत मायावी संसार है यह
वत्स, तुम तीसरी दुनिया के नागरिक कब तक बने रहोगे?
(९)
मगध में नागरिकों से ज्यादा कवि हो गए हैं आर्य!
तुम्हारा क्या तात्पर्य है वत्स?
बांग्लादेशी?
कविता में 'वसुधैव कुटुंबकम्' होता है, इतना नहीं जानते?
कविता में बांग्लादेश ही नहीं फिलीस्तीन भी होता है
रूस भी होता है, चीन भी होता है
इंग्लैण्ड अमेरिका तो हैं ही
नहीं होता है कविता में चर्चा
तो उज्जैन अवध मगध अवंतिका
अंग कोशल चेर चोल पल्लव का
इतिहास से ज्यादा निष्ठुर इतिहासकार होता है
खैर, कवि को क्या !
बांग्लादेश, फिलीस्तीन, रूस, चीन
इस समय के सच हैं
कवि सच से मुँह नहीं मोड़ सकता
पीछे देखना तो वैसे भी ठीक नहीं
पुरातन पंथी होना कवि को शोभा नहीं देता आर्य!
अंधा हो जाना भी ठीक नहीं
काल से या अन्यथा बॅंध कर कवि नहीं रहता
निबद्ध कवि, कवि नहीं रहता ...
रही बात नागरिकों से ज्यादा कवि होने की, तो
व्यंजना को समझा करो...
(१०)
कवि सारे श्रेष्ठ हो गए हैं
और जिन्हें लगता है कि वे श्रेष्ठ हैं,वे कवि
प्रशंसक सारे और कुछ निंदक
आलोचक हो गए हैं
संपादक प्रबंधक,प्रकाशक व्यवसायी
पाठक सारे लेखक हो गए हैं
पाठक कोई नहीं
सुना है हिन्दी भी अँग्रेजी हुई जाती है आर्य !
अब विलोम ही पर्यायवाची हैं वत्स !
शक्ति ही सामर्थ्य है
हर किसी के हाथ में
चढ़ते हुए सूरज के लिए
अर्घ्य है !
मगध में तो डूबते सूर्य को भी अर्घ्य देते हैं आर्य !
वत्स,यह नया समय है...
सुना ही होगा तुमने !
(११)
नए समय में
लोग याद कर रहे हैं मगध में
विभीषिकाओं को, हत्याओं को
इतनी तिक्त तो हवा नहीं थी !
हिंसा
प्रतिहिंसा
व्यक्ति बीच में फॅंसा
मिथ्याचार ही लोकाचार
कवियों के अतीतोन्मुखी नहीं
भविष्योन्मुखी होने की जरूरत है, आर्य !
समय का चक्र है वत्स !
समय का चक्का
तनी हुई रस्सी पर रक्खा है
जिसे भी चलाना हो
पैडल मारना ही होगा
पैडल वही दो हैं, जिनके रँग-रूप
रुचि और मत के अनुसार होते हैं, बस !
कवि द्रष्टा है, स्रष्टा नहीं !!
( १२ )
मगध में इतना अँधेरा क्यों है आर्य ?
यह कालिमा है वत्स !
कुछ व्यक्तियों की कलुषता से जन्मी हुई
फिर कोई कुछ
करता क्यों नहीं है आर्य ?
यह कैसा समाज है ?
जिनकी वजह से मगध का सिर
झुक गया है,उन्हें
दण्ड तो मिलना चाहिए न ?
अपराध और दण्ड का निर्धारण
मामला पेचीदा होता है
किसी की जुबान पर ताला,तो
किसी का ऊँचा ओहदा होता है
जिस पर बीती है, उसी को
देना पड़े जवाब अगर
उसी के बारे में हों कई-कई
अगर-मगर,तो न्याय की बात कैसे हो?
पानी जब सर से गुजर जाता है
जब आपद् काल आता है
तब जाकर चेतते हैं सब,मगर
फिर से भूल जाने को...!
सिर्फ एक घटना और एक ही
व्यक्ति तक सीमित नहीं है यह बात
एक लंबी परंपरा है दूषित मानसिकता
दुश्चेष्टाओं और व्यभिचार की
बहुत-सी खंडित मूर्तियों को
पूजते आ रहे हैं हम
हमें बात की तह तक पहुँचना होगा
दोष को जड़ से उखाड़ना होगा
सारे पूर्वाग्रहों से हटकर परे
उस हिचक को दूर करना होगा
जो सच को सच, और
अपराध को अपराध कहने से रोके
जब तक शराफत और महानता का मुखौटा पहने
घूमते हैं लोग,
जब तक खैरख्वाह बनकर
घूमते हैं लुटेरे
जब तक लीडर बन-बनकर
किसी की निजता का उड़ाते हैं मजाक
तब तक मगध का सिर झुका है
शर्म से, और
शोक में ...!
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