जा रे जमाना
[ भगत – बुतरू संवाद.1.0 ]
बुतरू -
ज़माना कहाँ से कहाँ जा रहा है ?
भगत जी - क्या हुआ ?
बुतरू -
कोई भी अखबार सही तस्वीर नहीं दिखाता ।
भगत जी - कैसे?
बुतरू -
तरक्की की खबरों से तो ऐसे पटे रहते हैं मेक इन इंडिया, स्टैंड अप इण्डिया जाने क्या क्या और रोज-रोज जघन्य
अपराधों की खबर होती है बच्चियों तक के साथ । सरकार भी कुछ करती नहीं ।
भगत जी -
सरकार कौन बनाता है ? सरकार किससे बनती है ?
बुतरू -
हम । हमसे ।
भगत जी - तो
किसको कुछ करना चाहिए ? किसको पहले सुधरना चाहिए ? एक कथा सुनाता हूँ, शायद थोड़ा स्पष्ट हो :-
जा रे जमाना
एक का नाम राम । एक का रमा । व्याकरण के स्तर पर तो मात्राओं का हेर -फेर
है पर एक महान देश में यह जमीन-आसमान का अंतर पैदा करता है । हालाँकि देश में कभी
कहा गया था " यत्र नार्यस्तु पूज्यते रमन्ते तत्र देवता "। लेकिन उसको
तौल भी दिया गया यह कहकर " त्रिया चरित्रं पुरुषस्य भाग्यम देवौ न जानाति
कुतो मनुष्यः " ।
बहरहाल ।
देश पुरातन । सोच नूतन । देश का टैगलाइन ।
एक घोषणा । राम और रमा को व्यक्तिवाचक न मानकर समूह /जातिवाचक समझा जाए ।
महान देश । महती सोच । पूरा देश चाहे राम ही राम । रमा को तो, पता चल जाए अगर, तो आने ही न दें दुनिया में । शायद अव्वल दर्जे की
दूरदर्शिता - आगे चलकर ‘निर्भया’ न बनना पड़ जाए !
रमा आ भी गई तो रहेगी तो पीछे- पीछे ही ।
क्या कहा, ज़माना बदल गया है? सच कहा । सर पर मैला ढोने की प्रथा ख़त्म हो गई हो, इज्जत की टोकरी तो रमा के माथे पर ही ढुलाएगी । दहलीज
से कदम निकालती और नज़रों की बर्छियों से बचाकर ले आती घर की इज्जत को अपने माथे ।
क्या कहा, देश में बराबरी बसर करती है ? सही कहा ! अभी एक क्रिकेटर महोदय ने पत्नी, बच्चे के साथ तस्वीर पोस्ट कर दी । दनादन मेसेज आने
लगे । नेशनल इश्यू बन गया । स्लीवलेस क्यों पहना ? तस्वीर क्यों पोस्ट की ? बीवी है कि नुमाइश ?
कितनी बराबरी का माहौल है !
और बराबरी सिर्फ पेपर, मैगज़ीन टीवी शो तक ही तो है ।और हो भी कहाँ सकती है ?
राम विरोध करता । नहीं ऐसा नहीं है । समझाता- कुछ लोगों के गलत होने से
दुनिया गलत नहीं हो जाती ।
रमा मानने की कोशिश करती । मानना रमा का धर्म है !
रमा को घर भी संभालना चाहिए । रमा को धीरज धरना चाहिए । रमा को सेवा करनी
चाहिए। और दफ्तर में है तो तरक्की तो करनी ही है । इसके दो प्रमुख कारण हैं । पहला
माल आएगा घर में । दूसरा महिला सशक्तिकरण का सेहरा भी सर बँध जाएगा ।
इसमें किसी को कोई दिक्कत भी नहीं । होनी भी नहीं । अव्वल रमा की तरक्की
होती नहीं , या यूँ कहें वो
तरक्की नहीं लेती । घर बचाने , घर सजाने-संभालने की जिम्मेदारी तो रमा की ही होती है । और अगर कभी तरक्की
हो भी गई तो प्रत्यक्षतः तो बधाइयों-मिठाइयों का दौर चलता । पीठ पीछे में यह
विश्लेषण कि तरक्की तो ‘फेयर एन्ड लवली’ की वजह से मिलती है।
राम बॉस की इज़्ज़त करता है । भई ये तो न्यूनतम शिष्टाचार है । हालाँकि अँधा
भी देख लेगा कि मस्का है , क्लियरकट !
हाँ, रमा करेगी तो फ्लर्ट
ही होगा न ? और फ्लर्ट ही क्यों , आगे भी ! तो रमा को मस्का नहीं मारना चाहिए । बुरी
बात बुरी लड़कियाँ करती हैं ।
बुरी बातें और भी हैं ।
रमा और पान ?रमा और गान ? रमा और डांस ? रमा और सिगरेट ? बीयर ? व्हिस्की ? और सरे आम ? ना, ना! ये शरीफ लड़कियों
वाले काम नहीं । वैसे भी ये सब मर्दों वाली आदतें हैं । है कि नहीं ?
राम के लिए पढ़ना, बढ़ना आम बात । अभिगृहित की तरह ।
रमा के लिए पढ़ जाना और फिर बढ़ भी जाना ख़ास बात । प्रमेय की तरह । सिद्ध
करते रहिए। यहाँ,वहाँ, जहाँ,तहाँ ।
रमा पढ़-लिख के करेगी क्या ? कवि रघुवीर सहाय ने कहा तो था -
पढ़िए गीता
बनिए सीता
फिर इन सब में लगा पलीता
किसी मूर्ख की हो परिणीता
निज घर-बार बसाइए
वैसे आजकल लड़कियाँ बाहर निकल रही हैं लड़कों की तरह ! ऊँचे- ऊँचे पदों पर
काम कर रहीं हैं । पर कहीं भी पहुँच जाएं, रहेंगी तो रमा ही । कितने भी बड़े पद पर पहुँच जाएँ, रूपन बजाज की तरह कोई भी हाथ फिरा जा सकता है ।
राम कहता लड़कियाँ भी काफी आगे बढ़ रही हैं । लड़को के कंधे से कंधा मिलाकर चल
रही हैं। हर क्षेत्र हर जगह दिख रही हैं ।
रमा ने पूछा - लड़के क्यों नहीं चलते लड़कियों जितना भार उठा कर ? हर जगह दिख रही हैं, सही कहा तुमने । शेविंग क्रीम के विज्ञापन तक में !
घर के पेंट के विज्ञापन तक में ! और वो भी इस तरह की मूल प्रोडक्ट की बजाय लड़की ही
रहे नुमाइश पर ।
अच्छा , एक बात और बताओ -
रमा को खाना बनाना नहीं आता? सिलाई- कढ़ाई नहीं आती? बटन टाँकना नहीं आता । साफ़- सफाई नहीं आती ।बताओ , रमा अच्छी लड़की है या बुरी ?
राम ने प्रतिवाद किया - पूर्वाग्रह को त्याग कर सोचो । देखो लड़कियों ने
कितना कमाल किया है, उनको कितना मान-सम्मान मिला है ।कल्पना चावला से पी वी सिंधु तक ।
रमा ने टोका - पूर्वाग्रह ? अभी एक टी वी रियलिटी शो में एक औरत ने बताया कि ससुराल वालों ने उसका
चेहरा जला दिया, उसे छोड़ दिया । इसके
बावजूद सिंदूर लगाना उसकी मज़बूरी है । अकेली लड़की सुरक्षित नहीं होती !
राम – इक्का- दुक्का उदाहरणों से बात मत बिगाड़ो ।
रमा - ठीक है, तुम ही एक शहर का नाम बता दो जहाँ लड़कियाँ सुरक्षित महसूस कर सकती हैं सौ
फीसदी - दिल्ली कि बंगलोर, पटना कि राँची? और उस पर नाम देकर छुट्टी पा ली है जैसे देश ने - निर्भया । मोमबत्तियाँ
जला दीं, चैनल -चैनल बहस कर
दी ।समाधान किधर है ?
अच्छा, तुम अपने घर से किसी
लड़की को अकेली कितने बजे रात तक मेरे यहाँ भेज सकते हो? जवाब मत दो, सिर्फ सोच लो । बहुत सारे जवाब मिल जाएंगे ।
राम ने थोड़ा और प्रतिवाद किया, ऑफेंस इज़ द बेस्ट दी डिफेन्स की तर्ज़ पर - तुम लोग भी तो कैसा- कैसा पहनती
हो ।तुम भी सोचो । और रात-बिरात कहीं आने- जाने की जरुरत क्या है ? और विज्ञापन में काम करने को डॉक्टर ने लिखा था ?
रमा ने कहा - ज़माना इतना ही बदला है कि 'अँधा क़ानून" से 'पिंक' पर आ गया है ।
राम ने काटी बात - सोच तो बदली है ही ।
रमा ने कहा - क्या सोच बदली है ? वो तो डॉक्टर लिख कर देगा तभी बदलेगी । ‘अँधा कानून’ हो कि ‘पिंक’ केस तो लड़कियाँ लड़ ही नहीं सकतीं अपना !
रमा ने पूछा - लाल किले की प्राचीर से प्रधान मंत्री को स्वीकार करना पड़े
समस्या को । कहना पड़े कि थोड़ा लड़कों से भी पूछें लोग, उनको भी समझाएं - कितने गौरव की बात है , नहीं? और उससे भी ज्यादा मज़ा तो ये कि कहीं कुछ रुक नहीं रहा । कोई फैसला, कोई सजा बता दो ।
राम ने फिर कोशिश की - लॉ विल टेक इट्स ओन कोर्स । भाई कानून कहता है सौ
गुनाहगार छूट जाएँ पर एक बेगुनाह को सजा न होने पाए । और फिर समय बड़ा बलवान ।
रमा - उत्तम विचार !
राम - समय सारे ज़ख्म भर देता है । सबको आगे देखना चाहिए । इक्कीसवीं से
बाईसवीं सदी की ओर । और फिर तुम तो दया की देवी हो । क्षमा तुम्हारा स्वभाव है ।
हो-हल्ला मचाना शोभा भी नहीं देता ।दुःख-तकलीफ दरअसल मानने की बात है । जीवन में
दुर्घटनाएं होती हैं तो क्या कोई वहीं पर रुक जाता है ?
रमा - सोच लो । अमल करने लगूँ ? फिर अग्नि-परीक्षा के लिए तो नहीं कहोगे ?
राम - नहीं , .....मतलब हाँ । ......मतलब थोड़ा देख सुन के । समझदारी से । अब पूरा सिस्टम तो
रातोंरात बदल नहीं सकता न ।
रमा गाते हुए निकल गई " जौदि तोर डाक शुने केउ ना आशै तोबे एकला चलो
रे...."।
बुतरू - इतना
पढ़ा-लिखा देश है हमारा । जिसको देखिए बीए, बीटेक, एमए ,पीएचडी। और करम
देखिए !
भगत जी - मानसिकता । जिस देश में
लोग अपना कचरा दूसरे के दरवाजे के पास फेंक कर सफाईपसंद बन जाते हों उस देश में
होगा क्या ? और मन के कचरे को तो
कोई म्युनिसिपल गाड़ी उठा भी नहीं सकती ।
बुतरू -
हाँ...इस देश में तो दर्शन भी चलता है "जीवन पानी का बुलबुला है "। पूरा
जीवन ही पानी का बुलबुला है तो कुछेक हजार घटनाओं की क्या औकात ? बस बुलबुला अपना नहीं फूटे ......।
जा रे जमाना....... चुल्लू भर में डूब जाना ।
भगत जी ने बुतरू के कंधे पर धीरे से हाथ रख दिया ।
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