शनिवार, 3 मई 2025

जा रे जमाना [ भगत – बुतरू संवाद.1.0 ]

 

जा रे जमाना

[ भगत – बुतरू संवाद.1.0 ]

 

 बुतरू                      - ज़माना कहाँ से कहाँ जा रहा है ?

 भगत जी                 - क्या हुआ ?

 बुतरू                      - कोई भी अखबार सही तस्वीर नहीं दिखाता ।

 भगत जी                  - कैसे?

 बुतरू                      - तरक्की की खबरों से तो ऐसे पटे रहते हैं मेक इन इंडिया, स्टैंड अप इण्डिया जाने क्या क्या और रोज-रोज जघन्य अपराधों की खबर होती है बच्चियों तक के साथ । सरकार भी कुछ करती नहीं ।

 भगत जी  - सरकार कौन बनाता है ? सरकार किससे बनती है ?

 बुतरू                      - हम । हमसे ।

 भगत जी  - तो किसको कुछ करना चाहिए ? किसको पहले सुधरना चाहिए ? एक कथा सुनाता हूँ, शायद थोड़ा स्पष्ट हो :-

 

जा रे जमाना

 

 एक का नाम राम । एक का रमा । व्याकरण के स्तर पर तो मात्राओं का हेर -फेर है पर एक महान देश में यह जमीन-आसमान का अंतर पैदा करता है । हालाँकि देश में कभी कहा गया था " यत्र नार्यस्तु पूज्यते रमन्ते तत्र देवता "। लेकिन उसको तौल भी दिया गया यह कहकर " त्रिया चरित्रं पुरुषस्य भाग्यम देवौ न जानाति कुतो मनुष्यः " ।

 बहरहाल ।

 देश पुरातन । सोच नूतन । देश का टैगलाइन ।

 एक घोषणा । राम और रमा को व्यक्तिवाचक न मानकर समूह /जातिवाचक समझा जाए ।

 महान देश । महती सोच । पूरा देश चाहे राम ही राम । रमा को तो, पता चल जाए अगर, तो आने ही न दें दुनिया में । शायद अव्वल दर्जे की दूरदर्शिता - आगे चलकर निर्भया न बनना पड़ जाए !

 रमा आ भी गई तो रहेगी तो पीछे- पीछे ही ।

 क्या कहा, ज़माना बदल गया है? सच कहा । सर पर मैला ढोने की प्रथा ख़त्म हो गई हो, इज्जत की टोकरी तो रमा के माथे पर ही ढुलाएगी । दहलीज से कदम निकालती और नज़रों की बर्छियों से बचाकर ले आती घर की इज्जत को अपने माथे ।

 क्या कहा, देश में बराबरी बसर करती है ? सही कहा ! अभी एक क्रिकेटर महोदय ने पत्नी, बच्चे के साथ तस्वीर पोस्ट कर दी । दनादन मेसेज आने लगे । नेशनल इश्यू बन गया । स्लीवलेस क्यों पहना ? तस्वीर क्यों पोस्ट की ? बीवी है कि नुमाइश ?

 कितनी बराबरी का माहौल है !

 और बराबरी सिर्फ पेपर, मैगज़ीन टीवी शो तक ही तो है ।और हो भी कहाँ सकती है ?

 राम विरोध करता । नहीं ऐसा नहीं है । समझाता- कुछ लोगों के गलत होने से दुनिया गलत नहीं हो जाती ।

 रमा मानने की कोशिश करती । मानना रमा का धर्म है !

 रमा को घर भी संभालना चाहिए । रमा को धीरज धरना चाहिए । रमा को सेवा करनी चाहिए। और दफ्तर में है तो तरक्की तो करनी ही है । इसके दो प्रमुख कारण हैं । पहला माल आएगा घर में । दूसरा महिला सशक्तिकरण का सेहरा भी सर बँध जाएगा ।

 इसमें किसी को कोई दिक्कत भी नहीं । होनी भी नहीं । अव्वल रमा की तरक्की होती नहीं , या यूँ कहें वो तरक्की नहीं लेती । घर बचाने , घर सजाने-संभालने की जिम्मेदारी तो रमा की ही होती है । और अगर कभी तरक्की हो भी गई तो प्रत्यक्षतः तो बधाइयों-मिठाइयों का दौर चलता । पीठ पीछे में यह विश्लेषण कि तरक्की तो फेयर एन्ड लवली की वजह से मिलती है।

 राम बॉस की इज़्ज़त करता है । भई ये तो न्यूनतम शिष्टाचार है । हालाँकि अँधा भी देख लेगा कि मस्का है , क्लियरकट !

 हाँ, रमा करेगी तो फ्लर्ट ही होगा न ? और फ्लर्ट ही क्यों , आगे भी ! तो रमा को मस्का नहीं मारना चाहिए । बुरी बात बुरी लड़कियाँ करती हैं ।

 बुरी बातें और भी हैं ।

 रमा और पान ?रमा और गान ? रमा और डांस ? रमा और सिगरेट ? बीयर ? व्हिस्की ? और सरे आम ? ना, ना! ये शरीफ लड़कियों वाले काम नहीं । वैसे भी ये सब मर्दों वाली आदतें हैं । है कि नहीं ?

 राम के लिए पढ़ना, बढ़ना आम बात । अभिगृहित की तरह ।

 रमा के लिए पढ़ जाना और फिर बढ़ भी जाना ख़ास बात । प्रमेय की तरह । सिद्ध करते रहिए। यहाँ,वहाँ, जहाँ,तहाँ ।

 रमा पढ़-लिख के करेगी क्या ? कवि रघुवीर सहाय ने कहा तो था -

 पढ़िए गीता

 बनिए सीता

 फिर इन सब में लगा पलीता

 किसी मूर्ख की हो परिणीता

 निज घर-बार बसाइए

 

वैसे आजकल लड़कियाँ बाहर निकल रही हैं लड़कों की तरह ! ऊँचे- ऊँचे पदों पर काम कर रहीं हैं । पर कहीं भी पहुँच जाएं, रहेंगी तो रमा ही । कितने भी बड़े पद पर पहुँच जाएँ, रूपन बजाज की तरह कोई भी हाथ फिरा जा सकता है ।

 राम कहता लड़कियाँ भी काफी आगे बढ़ रही हैं । लड़को के कंधे से कंधा मिलाकर चल रही हैं। हर क्षेत्र हर जगह दिख रही हैं ।

 रमा ने पूछा - लड़के क्यों नहीं चलते लड़कियों जितना भार उठा कर ? हर जगह दिख रही हैं, सही कहा तुमने । शेविंग क्रीम के विज्ञापन तक में ! घर के पेंट के विज्ञापन तक में ! और वो भी इस तरह की मूल प्रोडक्ट की बजाय लड़की ही रहे नुमाइश पर ।

 अच्छा , एक बात और बताओ - रमा को खाना बनाना नहीं आता? सिलाई- कढ़ाई नहीं आती? बटन टाँकना नहीं आता । साफ़- सफाई नहीं आती ।बताओ , रमा अच्छी लड़की है या बुरी ?

 राम ने प्रतिवाद किया - पूर्वाग्रह को त्याग कर सोचो । देखो लड़कियों ने कितना कमाल किया है, उनको कितना मान-सम्मान मिला है ।कल्पना चावला से पी वी सिंधु तक ।

 रमा ने टोका - पूर्वाग्रह ? अभी एक टी वी रियलिटी शो में एक औरत ने बताया कि ससुराल वालों ने उसका चेहरा जला दिया, उसे छोड़ दिया । इसके बावजूद सिंदूर लगाना उसकी मज़बूरी है । अकेली लड़की सुरक्षित नहीं होती !

 राम – इक्का- दुक्का उदाहरणों से बात मत बिगाड़ो ।

 रमा - ठीक है, तुम ही एक शहर का नाम बता दो जहाँ लड़कियाँ सुरक्षित महसूस कर सकती हैं सौ फीसदी - दिल्ली कि बंगलोर, पटना कि राँची? और उस पर नाम देकर छुट्टी पा ली है जैसे देश ने - निर्भया । मोमबत्तियाँ जला दीं, चैनल -चैनल बहस कर दी ।समाधान किधर है ?

 अच्छा, तुम अपने घर से किसी लड़की को अकेली कितने बजे रात तक मेरे यहाँ भेज सकते हो? जवाब मत दो, सिर्फ सोच लो । बहुत सारे जवाब मिल जाएंगे ।

 राम ने थोड़ा और प्रतिवाद किया, ऑफेंस इज़ द बेस्ट दी डिफेन्स की तर्ज़ पर - तुम लोग भी तो कैसा- कैसा पहनती हो ।तुम भी सोचो । और रात-बिरात कहीं आने- जाने की जरुरत क्या है ? और विज्ञापन में काम करने को डॉक्टर ने लिखा था ?

 रमा ने कहा - ज़माना इतना ही बदला है कि 'अँधा क़ानून" से 'पिंक' पर आ गया है ।

 राम ने काटी बात - सोच तो बदली है ही ।

 रमा ने कहा - क्या सोच बदली है ? वो तो डॉक्टर लिख कर देगा तभी बदलेगी । अँधा कानून हो कि पिंक केस तो लड़कियाँ लड़ ही नहीं सकतीं अपना !

 रमा ने पूछा - लाल किले की प्राचीर से प्रधान मंत्री को स्वीकार करना पड़े समस्या को । कहना पड़े कि थोड़ा लड़कों से भी पूछें लोग, उनको भी समझाएं - कितने गौरव की बात है , नहीं? और उससे भी ज्यादा मज़ा तो ये कि कहीं कुछ रुक नहीं रहा । कोई फैसला, कोई सजा बता दो ।

 राम ने फिर कोशिश की - लॉ विल टेक इट्स ओन कोर्स । भाई कानून कहता है सौ गुनाहगार छूट जाएँ पर एक बेगुनाह को सजा न होने पाए । और फिर समय बड़ा बलवान ।

 रमा - उत्तम विचार !

 राम - समय सारे ज़ख्म भर देता है । सबको आगे देखना चाहिए । इक्कीसवीं से बाईसवीं सदी की ओर । और फिर तुम तो दया की देवी हो । क्षमा तुम्हारा स्वभाव है । हो-हल्ला मचाना शोभा भी नहीं देता ।दुःख-तकलीफ दरअसल मानने की बात है । जीवन में दुर्घटनाएं होती हैं तो क्या कोई वहीं पर रुक जाता है ?

 रमा - सोच लो । अमल करने लगूँ ? फिर अग्नि-परीक्षा के लिए तो नहीं कहोगे ?

 राम - नहीं , .....मतलब हाँ । ......मतलब थोड़ा देख सुन के । समझदारी से । अब पूरा सिस्टम तो रातोंरात बदल नहीं सकता न ।

 रमा गाते हुए निकल गई " जौदि तोर डाक शुने केउ ना आशै तोबे एकला चलो रे...."।

 

बुतरू                      - इतना पढ़ा-लिखा देश है हमारा । जिसको देखिए बीए, बीटेक, एमए ,पीएचडी। और करम देखिए !

 भगत जी  - मानसिकता । जिस देश में लोग अपना कचरा दूसरे के दरवाजे के पास फेंक कर सफाईपसंद बन जाते हों उस देश में होगा क्या ? और मन के कचरे को तो कोई म्युनिसिपल गाड़ी उठा भी नहीं सकती ।

 बुतरू                      - हाँ...इस देश में तो दर्शन भी चलता है "जीवन पानी का बुलबुला है "। पूरा जीवन ही पानी का बुलबुला है तो कुछेक हजार घटनाओं की क्या औकात ? बस बुलबुला अपना नहीं फूटे ......।

 जा रे जमाना....... चुल्लू भर में डूब जाना ।

 भगत जी ने बुतरू के कंधे पर धीरे से हाथ रख दिया ।


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