एक आदर्श मातहत
[ भगत – बुतरू संवाद.1.0 ]
भगत जी - एक अच्छे मातहत की क्या निशानी होती है ?
बुतरू - आज्ञाकारिता, सद्चरित्रता, ईमानदारी, स्वामीभक्ति.....
भगत जी - फिर थ्योरी ! ये तो सैद्धांतिक हैं । व्यवहारिक स्तर पर कैसे जानेंगे ?
बुतरू - ऊपर के आदेश को कितनी तत्परता से निभाया । साहबों के प्रति कितना आस्थावान है , सारे कार्यों को नियमानुसार कितनी दक्षता से कर पाता है- यही ।
भगत जी - अभी भी स्पष्ट नहीं हुआ । भाई कलयुग है....। अच्छा चलो एक कथा ही सुनाता हूँ -
एक आदर्श मातहत
एक बहुत ही प्यारा मातहत था । बहुत अच्छा । अच्छा मातहत होने के लिए प्यारा
होना क्वालीफाईंग है । प्यारा अपने साहब का ।
किसी मीटिंग में साहब बैठे हैं ।बगल वाली कुर्सी पर वो बैठेगा । ध्यान रखेगा उसकी कुर्सी ज्यादा ऊँची न हो । साहब की कुर्सी से इतनी दूर कि साहब की कुर्सी की विशिष्टता बनी रहे । इतना नजदीक की साहब धीमे से भी कुछ कहें तो सुना-समझा जा सके ।
साहब ने कुछ ऐसी बात कही है जो आमतौर पर बड़ी सूखी-सड़ी मानी जा सकती है पर साहब की आँखों का अति-आत्मविश्वास उसे आला दर्जे का व्यंग्य कह रहा है । मातहत आँखों को देखेगा । अपने होठों को हँसने के लिए फैला देगा । और इतनी देर तक फैलाए रखेगा कि कोई चित्रकार चाहे तो चित्र बना ले ।
साहब की बातों के लिए वह एक प्रतिध्वनि है । वह बोले न बोले, आप महसूस कर सकते हैं । साहब ने कहा हाँ । उसके पूरे व्यक्तित्व से बात दुहराई जाएगी - हाँ ,हाँ ।
साहब मूर्खतापूर्ण बातों को विद्वतापूर्ण तरीके से कहते रहेंगे । वह बहुत धीरता पूर्वक अनुमोदन करता रहेगा । करवाता रहेगा ।
साहब किसी को डाँटेंगे । वह एक-दो अपनी ओर से जोड़ेगा । किसी ने सही बात उठाने की कोशिश की । वह आँखों से, हाथों से उसे बरज देगा।
चाय आएगी । वह इन्तजार करेगा । साहब पिएँ तो वह पिए । किसी ने गलती से प्याली उठा भी ली तो उसे खा जाने वाली नजरों से देखेगा । पीना गरगट !
साहब किसी काम को करने का आह्वान करेंगे । किसी ने शंका जाहिर की नियमविरुद्ध और अव्यवहारिक होने की । साहब कोई वाकया सुनाएंगे कि कैसे उन्होंने अपने समय में किया था । दो वाकये वो अपनी भी सुना देगा । एकाध लोगों से पूछ, उन्हें याद भी दिला देगा कि उन्होंने भी तो किया था ही ! सामने वाले के कुछ पूछने के पहले ही सभा में घोषणा कर देगा कि बिलकुल ही संभव काम है । सिर्फ attitude होना चाहिए । attitude को जोड़-जाड़ कर 100 बनाकर भी बता देगा ।
साहब के मूड के हिसाब से सभा में उपस्थित दो-चार लोगों की तारीफ़ करेगा । तालियाँ बजवाएगा । दो-चार लोगों की कमियाँ गिनवाएगा । डाँट खिलवाने का माहौल बनाएगा । हर बार इस बात का ध्यान रखेगा - साहब एक तो मैं कम से कम आध !
शिष्टाचार और चापलूसी में बड़ा बारीक फर्क होता है । वह एक कदम आगे ही रहेगा । चापलूसी टपकने देगा - टप् टप् । साहब की नज़रें अक्सर इस तरह की चीज़ों को समझती नहीं । जब दिल माँगे मोर तो करो इग्नोर ! सेवा किसको भली नहीं लगती । शिष्टाचार की दुशाला बहुत काम आती है साहबों के ।
दूसरे लोग देखते हैं टपकना । देखें । उसको फर्क नहीं पड़ना । नहीं पड़ता । वह जो करेगा ख़म ठोक के करेगा । कुर्सियां खींचेगा। दरवाजा खोलेगा। फाइलें ढोएगा । जरुरत पड़ी तो सब्जी के थैले भी । मक्खन पर मक्खन । तेल पर तेल ।
उसने एक कहावत पढ़ी हुई है - हाथी चले बाजार, कुत्ता भूँके हजार ।
वह आत्मविश्वास से भरपूर होगा । आत्म मुग्ध । आत्ममुग्धता ही उसका कछुआ-कवच होता है ।
वह खुद ऐसे सारे काम करेगा जिसके करने पर दूसरों को हिकारत की नजरों से देखता है ।
वह पैरवी करवाएगा - पर वह तो प्रतिभा के साथ इन्साफ के लिए होगा । दूसरे करें तो स्तर से समझौता ।प्रतिभा का हनन ।
वह सेवा- टहल करेगा - सही आदमी का आदर होना चाहिए । सही की परिभाषा उसकी
खुद की होगी । दूसरे तो न तो सही के अर्थ जानते हैं ,न आदमी को पहचान सकते हैं ।
वह कहता हुआ पाया जाएगा - बड़ा उड़ रहा था । आज जम कर दिया है । जमकर सुनाया है । कोई बहुत हल्की ही बात होगी । बहुत ही हल्के चरित्र वाली । और जमकर कहने से तात्पर्य महज एक प्रश्नवाचक चिह्न ही हो सकता है ।
वह आमतौर पर टेढ़ा आदमी होने की छवि बनाकर रखेगा । बस उन जगहों के सिवा जहाँ उसे भीगी बिल्ली बने।रहना है । एकदम गऊ ।
वह पेशेगत कहासुनी को व्यक्तिगत स्तर पर सलटाएगा ।
साहब देंगे । वह सुपारी लेता रहेगा किसी न किसी की । साहब के सारे दो नंबर के
कामों का एक नंबर राजदार बनने को तत्पर रहेगा । साहब की इच्छाओं के आगे उसके लिए
कोई नैतिकता नहीं होगी ।
साहब की रूटीन के अनुसार अपनी रूटीन एडजस्ट करेगा । और यह तो सर्वविदित है कि प्रोग्राम तो साहब का होता है । मातहत की तो सिर्फ हामी होती है ।
साहब और मातहत का सम्बन्ध प्याज के छिलकों जैसा है । हर निचला छिलका मातहत । ऊपरी, साहब ।
बुतरू - माने कि HMV
भगत जी - हूँ !
बुतरू - His or Her Master's Voice
भगत जी (हँसते- हँसते) - हाँ, हाँ, वही....
बुतरू - मुझको उसका फोटो भी याद आ रहा है
भगत जी - किसका
बुतरू - H M V
भगत जी थोड़ी देर तक हँसते रहे ।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें