शनिवार, 3 मई 2025

मोड़ पर खड़े लोग [ भगत – बुतरू संवाद.1.0 ]

 

मोड़ पर खड़े लोग

[ भगत – बुतरू संवाद.1.0 ]

                                                                


बुतरू                      - अपने  यहाँ तर्क-वितर्क , वाद-विवाद का इतना चलन क्यों है ?

 

भगत जी  - यह  संभवत: अपनी सुदीर्घ परंपरा का ही परिणाम है । तुमने देखा ही है कि हमारे प्राचीन ग्रंथों में भी इसके अनेक उदहरण हैं ।

 

बुतरू                      - लेकिन वो तो अर्थवान होते हैं। अभी तो लगता है बस किए चलो ...।

 

भगत जी             - एक तो यह कुछ हमारी मानसिक जड़ता के कारण है । दूसरे यह कि

कभी कभी कोई परंपरा या रिवाज रूढ़ हो जाते हैं तो दिक्कत हो जाती  है ।

 

बुतरू                      - मैं ठीक से समझा नहीं ।

 

भगत जी  - मैं तुम्हें एकदम प्रैक्टिकल कहानी से समझाता हूँ । तुमने क्या पता    कभी ध्यान दिया है कि नहीं कि हमारे यहाँ सबसे ज्यादा विचार- विमर्श कहाँ होता है ?

 

बुतरू                - संसद ।

 

भगत जी  - नहीं । मोड़ों पर । चलो यह कथा सुनाता हूँ , बातचीत की शक्ल में है-

 

 

मोड़ पर खड़े लोग

 

दो जन मोड़ पर खड़े थे । खड़े-खड़े बातें हो रही थीं ।

 

एक कुत्ता सड़क की दूसरी तरफ अलसाया हुआ आराम फरमा रहा था । इन तीन प्राणियों ने सड़क की सीमा तय कर दी थी ।

 

एक कार उधर से निकलने की कोशिश में थी । अंदाज़ा था कुत्ता आवाज़ सुन कर भाग खड़ा होगा , पर वह तो हिला तक नहीं । था तो आखिर इसी देश का । जहाँ होजैसे हो पड़े रहो । जिसको ज़रूरत होगी , रास्ता खुद निकाल लेगा । फिर बच-बचा कर , कतरा कर निकल जाना सीखा-सिखाया भी तो है । गलती पर सज़ा की तो छोड़िए , सही करने को भी कौन कहेबवाल मच जाता है ।

कार स्टीयरिंग काट करकुत्ते को बचाते हुए आगे बढ़ी । बढ़ते ही नजरें दोनों में से एक जन से मिल गईं । उसने हाथ से इशारा कर के दिखाया – इतना तो रास्ता है , निकल लो । जब कार बहुत नजदीक आ गई और सटने को हुई , तब कमर को लचकाते हुए देह को धनुष बनाते हुए जगह दी गई । कार किसी तरह निकल गई राम-राम करते हुए ।

 

तो खड़े-खड़े बातें हो रही थीं । ऐसा नहीं था कि दोनों मोड़ पर ही मिले थे । बल्कि घर से ही निकल कर आए थे साथ । शायद मोड़ पर की तरंगें , मोड़ पर का गुरुत्वाकर्षण कुछ विशिष्ट होता हो । कुछ तो साइंटिफिक हैवरना मोड़ पर की बातें इस कदर ज़्यादा प्रचलन में नहीं होतीं । या तो हो सकता है कि मोड़ पर ऊपर सीधा आसमान ही होता है ; कुछ खगोलीय शक्तियों का संचरण संभव है । आप पाएँगे कि मोड़ पर होने वाली बातों का विस्तार भी बड़ा व्यापक है ।

 

तो दोनों जन बात कर रहे हैं ।

 

एक ने कहा – हालात तो बद से बदतर होते जा रहे हैं ।

 

दूसरे ने कहा – एकदम ठीक । अरेसरकारें बदल रही हैंव्यवस्था नहीं । बहुत हुआ तो व्यवस्था की सजावट में थोड़ी हेर-फेर हो जाती है ।

 

उसी समय एक लड़का और लड़की पास से गुजरे । दोनों ने लक्षित किया । और दोनों ने अपनी लड़की को न देखकर राहत की साँस ली । वरना पहले तो यहाँ सफाई दो , बाद में घर जा कर खबर भी लो ।

 

फिर भी एक ने कह दिया – मेरी बेटी के भी ट्‍यूशन का समय हो गया है । क्या करेंट्‍यूशन जरूरी है , आगे अच्छा करना है तो । और कहाँ- कहाँ साथ जाओगे । अकले निकलने- करने की आदत डालनी ही होगी । आगे नौकरी भी करनी हैक्या पता कहाँ जाना पड़े ? लेकिन फिर भी समझा रखा है कि ज्यादा फालतू समय बर्बाद न किया करे  बाहर ।

 

दूसरे ने कहा – वो तो ठीक है । फिर आगे की चिंता जताते हुए बोला – इतना पढ़ा-लिखा कर भी यार बेटी का बाप तो बेटी का ही बाप रहेगा । अभी से ही जोड़ना शुरू कर दिया है ।

 

उसी समय दो-चार बाइक सरसराते हुए गुजर गईं ।

 

एक ने कहा – ये आजकल के लड़के भी । धीरज तो है ही नहीं । शऊर भी । माँ-बाप ने बाइक खरीद कर दे दी है और ।

दूसरे ने कहा – बाइक अब जरूरत की चीज़ हो गई है भाई । प्रेशर बहुत बढ़ गया है बच्चों पर। समय की बड़ी किल्लत हो गई है । लेकिन शऊर तो होना ही चाहिए ।

 

बात घूमती-घामती मौसम पर चली गई । किसानों की दुर्दशा पर चली गई । मौसम विभाग की गलत भविष्यवाणियों पर चली गई ।

 

एक ने कहा – आपने भी सुनी होगी यह कहावत

            उत्‍तम खेतीमद्धम बान

            निरघिन सेवाभीख निदान

 

दूसरे ने कहा – हाँ,हाँ क्यों नही ? अरे भाई हमारा देश किसानों का देश तभी तो कहा जाता है न ।लेकिन देखिए आज क्या स्थिति हो गई है ?

 

पहले ने कहा – किसानी आज करना कौन चाह रहा है साहब ? सबको तो एसी ऑफिस चाहिए , एसी कार चाहिए । देखिए न पिछले सोलह साल से तो मैं ही अपने गाँव नहीं गया हूँ। खेतों को पहचानता नहीं हूँफसल क्या होती है जानता नहीं हूँ । अगली जेनेरेशन तो और भी जाने से रही । अव्वल तो वो जाएगी नहीं । और फिर मैं जाने दूंगा भी नहीं । प्रॉस्पेक्‍ट्‍स कहाँ हैं कुछ वहाँ?

 

दूसरा – लेकिन किसानों के लिए  कुछ ठोस तो किया ही जाना चाहिए ।

 

पहला – सो तो है । सो तो है ।

 

इसी बीच बूंदा-बांदी शुरू हो गई । दोनों अपने-अपने रस्ते हो लिए ।

 

बुतरू                - यह मोड़ पर खड़ा होना तो जैसे संस्कृति ही हो गया है । हमेशा विकल्प खोल कर रखो । जिधर जरूरत पड़ेनिकल लो । और इस कथा में नाले का ज़िक्र नहीं आया है । पर होगा जरूर । मोड़ पर खड़े होने वाले उसे और उसमें बहने वाले कचरे को देखते भी होंगे। उस पर चर्चा भी करते होंगे । पर होता कुछ नहीं होगा । और देखिए न रास्ता घेर कर सोए हुए कुत्ते को या रास्ता घेर कर खड़े आदमी को आप कुछ कह भी नहीं सकते । बस चुपचाप सरक लेने का तरीका आना चाहिए । यह मध्य वर्ग है ही ऐसा । हमेशा कतरा के निकल जाने वाला । मुझको तो लगता है पूरा देश ही मोड़ पर खड़ा है सदियों सदियों से । किंकर्त्तव्यविमूढ़।

 

भगत जी             - क्या बात है भाईइतना गुस्सा अच्छा नहीं । अरे आदमी तो केवल निमित्त मात्र है ...

 बुतरू                - फिर वही मोड़ पर खड़े आदमी वाली बात ।

 

भगत जी ने बुतरू को मुस्कुराते हुए देखा और चुप हो गए ।


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