मोड़ पर खड़े लोग
[ भगत – बुतरू संवाद.1.0 ]
बुतरू - अपने यहाँ तर्क-वितर्क , वाद-विवाद का इतना चलन क्यों है ?
भगत जी - यह संभवत:
अपनी सुदीर्घ परंपरा का ही परिणाम है । तुमने देखा ही है कि हमारे प्राचीन ग्रंथों
में भी इसके अनेक उदहरण हैं ।
बुतरू - लेकिन वो तो अर्थवान होते हैं। अभी तो लगता है बस किए
चलो ...।
भगत जी
- एक तो यह कुछ हमारी मानसिक जड़ता के कारण है । दूसरे
यह कि
कभी कभी कोई परंपरा या रिवाज रूढ़ हो जाते हैं तो दिक्कत हो जाती है ।
बुतरू - मैं ठीक से समझा नहीं ।
भगत जी - मैं तुम्हें एकदम
प्रैक्टिकल कहानी से समझाता हूँ । तुमने क्या पता कभी ध्यान दिया है
कि नहीं कि हमारे यहाँ सबसे ज्यादा विचार- विमर्श कहाँ होता है ?
बुतरू
- संसद ।
भगत जी - नहीं । मोड़ों पर । चलो यह कथा सुनाता हूँ , बातचीत की शक्ल में है-
मोड़ पर खड़े लोग
दो जन मोड़ पर खड़े थे । खड़े-खड़े बातें हो रही थीं ।
एक कुत्ता सड़क की दूसरी तरफ अलसाया हुआ आराम फरमा रहा था । इन तीन
प्राणियों ने सड़क की सीमा तय कर दी थी ।
एक कार उधर से निकलने की कोशिश में थी । अंदाज़ा था कुत्ता आवाज़ सुन कर भाग
खड़ा होगा , पर वह तो
हिला तक नहीं । था तो आखिर इसी देश का । जहाँ हो, जैसे हो पड़े रहो । जिसको ज़रूरत होगी , रास्ता खुद निकाल लेगा । फिर
बच-बचा कर , कतरा कर निकल
जाना सीखा-सिखाया भी तो है । गलती पर सज़ा की तो छोड़िए , सही करने को भी कौन कहे? बवाल मच जाता है ।
कार स्टीयरिंग काट कर, कुत्ते को बचाते हुए आगे बढ़ी । बढ़ते ही नजरें दोनों में से एक जन से मिल
गईं । उसने हाथ से इशारा कर के दिखाया – इतना तो रास्ता है , निकल लो । जब कार बहुत नजदीक आ
गई और सटने को हुई , तब कमर को लचकाते हुए देह को धनुष बनाते हुए जगह दी गई । कार किसी तरह निकल
गई राम-राम करते हुए ।
तो खड़े-खड़े बातें हो रही थीं । ऐसा नहीं था कि दोनों मोड़ पर ही मिले थे ।
बल्कि घर से ही निकल कर आए थे साथ । शायद मोड़ पर की तरंगें , मोड़ पर का गुरुत्वाकर्षण कुछ
विशिष्ट होता हो । कुछ तो साइंटिफिक है, वरना मोड़ पर की बातें इस कदर ज़्यादा प्रचलन में नहीं होतीं । या तो हो सकता
है कि मोड़ पर ऊपर सीधा आसमान ही होता है ; कुछ खगोलीय शक्तियों का संचरण संभव है । आप पाएँगे कि मोड़ पर होने वाली
बातों का विस्तार भी बड़ा व्यापक है ।
तो दोनों जन बात कर रहे हैं ।
एक ने कहा – हालात तो बद से बदतर होते जा रहे हैं ।
दूसरे ने कहा – एकदम ठीक । अरे, सरकारें बदल रही हैं, व्यवस्था नहीं । बहुत हुआ तो व्यवस्था की सजावट में थोड़ी हेर-फेर हो जाती
है ।
उसी समय एक लड़का और लड़की पास से गुजरे । दोनों ने लक्षित किया । और दोनों
ने अपनी लड़की को न देखकर राहत की साँस ली । वरना पहले तो यहाँ सफाई दो , बाद में घर जा कर खबर भी लो ।
फिर भी एक ने कह दिया – मेरी बेटी के भी ट्यूशन का समय हो गया है । क्या
करें, ट्यूशन जरूरी है , आगे अच्छा करना है तो । और कहाँ-
कहाँ साथ जाओगे । अकले निकलने- करने की आदत डालनी ही होगी । आगे नौकरी भी करनी है, क्या पता कहाँ जाना पड़े ? लेकिन फिर भी समझा रखा है कि
ज्यादा फालतू समय बर्बाद न किया करे बाहर ।
दूसरे ने कहा – वो तो ठीक है । फिर आगे की चिंता जताते हुए बोला – इतना
पढ़ा-लिखा कर भी यार बेटी का बाप तो बेटी का ही बाप रहेगा । अभी से ही जोड़ना शुरू
कर दिया है ।
उसी समय दो-चार बाइक सरसराते हुए गुजर गईं ।
एक ने कहा – ये आजकल के लड़के भी । धीरज तो है ही नहीं । शऊर भी । माँ-बाप
ने बाइक खरीद कर दे दी है और ।
दूसरे ने कहा – बाइक अब जरूरत की चीज़ हो गई है भाई । प्रेशर बहुत बढ़ गया है
बच्चों पर। समय की बड़ी किल्लत हो गई है । लेकिन शऊर तो होना ही चाहिए ।
बात घूमती-घामती मौसम पर चली गई । किसानों की दुर्दशा पर चली गई । मौसम
विभाग की गलत भविष्यवाणियों पर चली गई ।
एक ने कहा – आपने भी सुनी होगी यह कहावत
उत्तम खेती, मद्धम बान
निरघिन सेवा, भीख निदान
दूसरे ने कहा – हाँ,हाँ क्यों नही ? अरे भाई हमारा देश किसानों का देश तभी तो कहा जाता है न ।लेकिन देखिए आज
क्या स्थिति हो गई है ?
पहले ने कहा – किसानी आज करना कौन चाह रहा है साहब ? सबको तो एसी ऑफिस चाहिए , एसी कार चाहिए । देखिए न पिछले
सोलह साल से तो मैं ही अपने गाँव नहीं गया हूँ। खेतों को पहचानता नहीं हूँ, फसल क्या होती है जानता नहीं हूँ । अगली जेनेरेशन तो
और भी जाने से रही । अव्वल तो वो जाएगी नहीं । और फिर मैं जाने दूंगा भी नहीं ।
प्रॉस्पेक्ट्स कहाँ हैं कुछ वहाँ?
दूसरा – लेकिन किसानों के लिए कुछ ठोस तो किया ही जाना चाहिए ।
पहला – सो तो है । सो तो है ।
इसी बीच बूंदा-बांदी शुरू हो गई । दोनों अपने-अपने रस्ते हो लिए ।
बुतरू
- यह मोड़ पर खड़ा होना तो जैसे संस्कृति ही हो गया है ।
हमेशा विकल्प खोल कर रखो । जिधर जरूरत पड़े, निकल लो । और इस कथा में नाले का ज़िक्र नहीं आया है ।
पर होगा जरूर । मोड़ पर खड़े होने वाले उसे और उसमें बहने वाले कचरे को देखते भी
होंगे। उस पर चर्चा भी करते होंगे । पर होता कुछ नहीं होगा । और देखिए न रास्ता
घेर कर सोए हुए कुत्ते को या रास्ता घेर कर खड़े आदमी को आप कुछ कह भी नहीं सकते ।
बस चुपचाप सरक लेने का तरीका आना चाहिए । यह मध्य वर्ग है ही ऐसा । हमेशा कतरा के
निकल जाने वाला । मुझको तो लगता है पूरा देश ही मोड़ पर खड़ा है सदियों सदियों से ।
किंकर्त्तव्यविमूढ़।
भगत जी
- क्या बात है भाई? इतना गुस्सा अच्छा नहीं । अरे आदमी तो केवल निमित्त
मात्र है ...
भगत जी ने बुतरू को मुस्कुराते हुए देखा और चुप हो गए ।
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