मेच्योर आदमी
[ भगत – बुतरू संवाद.1.0 ]
बुतरू - ऐसा आदमी किसकी
समझ विकसित हो चुकी हो ।
भगत
जी -
और कुछ ?
बुतरू - माने कि जो समझ सकता है
कि बुरा-भला क्या है ? किस समय पर कौन -सा काम किया जाना चाहिए । जिसमें स्थितियों
के आकलन करने क विवेक हो । जो धीर हो ।
भगत
जी -
भला-बुरा किसके नज़रिए से ? धीर कितना ?
बुतरू
के चेहेरे से असमंजस का भाव छ्लकने लगा ।
भगत
जी
- अच्छा , चलो एक कथा
सुनाता हूँ :-
मेच्योर आदमी
एक
समय था ।
एक
आदमी था । और भी बहुत सारे आदमी थे ।
जो
एक आदमी था,
उसे
एक दूसरा आदमी समझा रहा था –
भाई, बड़े हो गए हो, समझदार भी हो, मैच्योर बनो ।
परिपक्वता तो लाओ अपने व्यवहार में।
इसने
पूछा – परिपक्वता माने क्या ? ठीक ही तो कर रहा हूँ ।
उसने
कहा – भाई,
कॉमन
सेंस लगाओ । हर बात लिख के नहीं दी जाती । हर बात का सर्कुलर नहीं होता । सोचो । सोचो, समझो और सुधरो । कह
के वह निकल गया ।
इसने
सोचा “ कर तो ठीक ही रहा हूँ !”
फिर
उसने और सोचना शुरु किया । बचपन से ही वह सुनते आ रहा था कि जल्दी से बड़े हो जाओ, समझदार हो जाओ
। कभी वह किसी के बारे में सुनता “ कितना मेच्योर निर्णय लिया है उन्होंने इन
परिस्थितियों में !”
उसने
और सोचा । सारे बड़े, समझदार और मेच्योर लोगों के बारे में । और तब बारीक बातों पर
भी उसका ध्यान गया । उसे समझदारी के सूत्र समझ में आने लगे । उसने नोट करना शुरु
किया :-
बातों
को जानने का
मतलब
उस पर अमल भी कर लेना नहीं होता । बात अगर सचमुच जरूरी होगी, कोई न कोई आपको
याद दिला देगा ।
भले
ही आप कितने समर्थ हों, भले ही आप पूरी तरह से वाकिफ़ हों अपनी सामर्थ्य
और सामने वाली की परेशानियों से, बिना मनुहार के कतई मदद न करें । सामने
वाला कितना भी करीबी क्यों न हो !
अपनी
योजनाओं,
कार्यक्रमों, या ऐसे भी किसी
भी बात के बारे में दूसरों से ज़िक्र न करें । हाँ, सामने वाले के
एक-एक ब्यौरे को जान लें । और जानकारी हासिल करते वक्त कतई
ज़ाहिर न करें कि आप क्यों जानना चाहते हैं ? आप बड़े हैं, समझदार हैं, आपका तो हक
बनता है । मेच्योर लोग तो वैसे भी सुपर कम्प्यूटर होते हैं , क्या जाने किस
“मूल्य” से कौन सा समीकरण बदल जाए !
दूसरे
की सफलताओं के “अन्य” कारणों पर विचार करें और जहाँ जरुरी समझें उद्घाटित करें।
अपने
अलावा हर किसी की मंशा पर शक करें। दूसरों के हर क्रिया-कलाप में “निहितार्थों” को
खोज कर ही मानें ।
सिर्फ
वर्तमान में न रहें । खास तौर पर किसी की बात मानते वक्त, किसी के सामने
अपनी बात रखते वक्त । भूत में किसी ने क्या नुकसान किया है और भविष्य में कोई क्या
नुकसान पहुँचा सकता है, इसका हमेशा खयाल करें ।
सामने
वाले की समस्याओं को स्थित-प्रज्ञ दॄष्टि से देखें । उससे भी ज्यादा , सामने वाले को
उसके स्वयं की समस्याओं को स्थित्- प्रज्ञ दॄष्टि से देखने की सीख दें ।
जहाँ
हितों का टकराव हो और किसी ज्यादा ताकतवर से साबका पड़ा हो, “ कॉमन सेंस” से
काम लें । सामने वाले की मर्ज़ी चलने दें । बात को नोट कर रख लें । समय का पहिया
घूमता है,
इस
उम्मीद पर ।
“कॉन्श्यंस”
की वजह से कभी तकलीफ होने लगे तो “ कॉमन सेंस” से उसका ईलाज करें ।
जो
बात आप जानते हैं, मन में रखें । यह मान कर चलें सब वह बात जानते हैं । चर्चा
तभी करें,
जब
चर्चा चले ।
काम
जब तक खास आपको न कहा जाए, न करें । काम जरूरी होगा तो आप काम तक पहुँच ही
जाएँगे ।
अपने
से ऊपर वालों का हर बात पर शुक्रिया अदा करें । अपने से नीचे वालों पर हर बात में
एहसान जताएँ ।
बात
करनी हो,
बात
सुननी हो,
बात
मनानी हो,
बात
माननी हो,
धीरज
धरें । अपनी बारी का इंतज़ार करें । बारी सबकी आती है, बारी सबकी आएगी
। आपकी भी आएगी । नहीं आती, तो कभी और कोशिश करें, कहीं और कोशिश
करें ।
“क्षमा
शोभती उस भुजंग को किसके पास गरल हो / उसको क्या जो दंतहीन , विषहीन , विनीत , सरल हो” – इसका
उलटा अमल में लाएँ । यानी कि गरल वालों को क्षमा, उनकी बातों को
अनदेखा करें । अन्य का शिकार !
व्यक्ति
समझने लगा था ।
वह
अपने दफ्तर में बैठा था । उसी दूसरे व्यक्ति ने उसके पास आ कर पूछा -
दूसरा
व्यक्ति – क्या हो रहा है ?
पहला
व्यक्ति – कुछ नहीं । तुम बताओ ? कैसे आना हुआ ? लैपटॉप पर ईमेल
चेक करते हुए उसने पूछा ।
दूसरा
व्यक्ति – नहीं,
वो
मीटिंग में जाना था । सोचा कहीं साथ चलोगे । फिर पहले व्यक्ति के चेहरे के भाव देख
कर उसने बताया कौन सी मीटींग, कहाँ और कितने बजे ।
पहला
व्यक्ति –
तुम
आगे बढो,
मैं
कुछ मेल चेक कर के आऊँगा । मेरे लिए सीट रोके रखना।
दूसरा
व्यक्ति “ ठीक है” बोलकर कुछ सोचता हुआ वहाँ से निकल गया ।
उसके
निकलने के बाद पहले व्यक्ति ने लैपटॉप बंद किया , घंटी बजाई और
एक चाय लाने का आदेश दिया ।
मेच्योरिटि
की ओर पहला कदम उठ गया था ।
बुतरू - दूसरा व्यक्ति
क्या सोचता हुआ वहाँ से निकला ?
भगत
जी - पहले यह बताओ
क्यों सोचता हुआ निकला ?
बुतरू - इसलिए कि ऐसा व्यवहार उसे
पहले व्यक्ति से अपेक्षित नहीं था ।
भगत
जी - क्यों नहीं था ? सोचो, सोचो ।
बुतरू - इसलिए कि आज तक पहले
व्यक्ति ने साथ जाने से मना नहीं किया होगा । आज तक दूसरे व्यक्ति को आगे बढ़ने के
लिए नहीं कहा होगा । सीट रोकने के लिए नहीं कहा होगा । और वो भी बिना किसी
प्रत्यक्ष कारण के ।
भगत
जी - वाह ! डिट्टो
!! यही तो सोच रहा था ।
बुतरू - तो यह है
मेच्योर होना ?
भगत
जी
- वो अब तुम जानो ।
बुतरू
- यानी हर पक्ष का
प्रति-पक्ष होता है ।
भगत
जी
- सो तो है । आदमी बहुत कॉम्प्लेक्स मशीन है !
बुतरू।
- लेकिन कभी – कभी सिम्पल होना ,मेच्योर नहीं
होना भी अच्छा होता है ।
भगत
जी
- अच्छा !!
और हँसते हुए बुतरू की पीठ पर एक धौल जमा दी ।
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