शनिवार, 3 मई 2025

डॉन की मर्यादा [ भगत – बुतरू संवाद.1.0 ]

 

डॉन की मर्यादा

[ भगत – बुतरू संवाद.1.0 ]

                                                     

बुतरू                      - हमारे जीवन में असर का कितना महत्व है ?

भगत जी  - असर माने ?

बुतरू                      -  यानी कि प्रभाव , धाक । हमारा प्रभाव दूसरों पर पड़ना कितना जरूरी है ? 

भगत जी  - प्रभाव का तो ऐसा है कि अगर तुमने ऐसा कुछ किया कि औरों के लिए  प्रेरणा का कारण बने तो अपने आप तुम्हारा प्रभाव बढ़ने लगेगा ।

बुतरू                      - और अगर धाक जमा ली जाए तो प्रेरणा अपने आप जग जाएगीआजकल तो तरह- तरह के उसूलों की बात की जा रही है । हर जगह मैनेजमेंट के फंडे लगाए जा रहे हैं। उसी से सब ठीक करने की बात हो रही है ।

भगत जी  - देखो बाज़ार है तो उसूल हैं । बाज़ार के लिए उसूल हैंउसूलों का बाज़ार है । और सारे फंडे मालिक की सत्ता की स्थापना के लिए हैं । और मालिक का मालिक बाज़ार है ।

ऐसा करता हूँ एक कथा सुनाता हूँ – 

 

डॉन की मर्यादा

 

डॉन ने उसको गोली मार दी ।

खबर है , उसके जूते पसंद नहीं आए इसलिए ।

खबरें और भी हैं । खबरों का बाज़ार गर्म है ।

खबर है कि किसी को भी मारना थासो इसी को मार दिया । मकसद तो था सबों को चेता देना कि पूरे खेल का सूत्रधार कौन है !  और यह भी कि न चेते तो हश्र क्या होगा !

एक खबर यह भी आ रही है कि डॉन को उसके जूते की हील में कुछ खास जानकारियों वाले पुर्जे मिले जिन्हें वो दुश्मन खेमे को देने जा रहा था । दुश्मन खेमा उन्हीं पुर्जों के आधार पर बाज़ी मार लेता । मार्केट लीडर हो जाता । डॉन को यह जानकारी किसने दीयह एक राज़ है। यह भी कहा जा रहा है कि डॉन ने ही उसको खुफिया तरीके से काम करने की “मॉक ड्रिल” करने को कहा था और बाद में उसी आधार पर उसे सज़ा दे दी । आदेश मौखिक था , अनुपालन लिखित दस्तावेज के साथ हो रहा था । सबूत खिलाफ हो गए । जानलेवा । कहा यह भी जा रहा है कि डॉन ने ही पुर्जे प्लांटकरवाए थे ।

खबर यह भी है कि घर और दफ्तर दोनों को लेकर वह स्ट्रेस में था । डॉन के फोन घर तक आते थे ; घर के ताने दफ्तर तक । हार्ट फेल कर गया !

एक यह खबर थोड़ी दिलचस्प है । उसकी अंतरात्मा जाग गई थी । उसे ‘व्हिसल ब्लो’ करना था । उसे देश को बचाना था । उसे सत्य को बचाना थाजगाना था । इसीलिए वह गुप-चुप काम कर रहा था । अफसोसअंतरात्मा तो जाग गई , वो खुद सो गया ।

एक और दिलचस्प खबर है । बच्चों के कहे में आ गया था । बच्चों के मनोरंजन के लिए फैशनेबल जासूसी जूते बनवा लिए । और उसमें रख दिए थे कुछ पुर्जे जिन्हें खोजने पर मिलने वाला था ईनाम । पर कभी-कभी खिलौनों से भी लोग डर जाते हैं । शायद डॉन भी ।

खैर अभी तो उसे डॉन के कमरे से हटाए जाने का बदोबस्त हो रहा है । तफ्तीश जब होगी , तब होगी ।

डॉन ने वहाँ खड़े लोगों को देखा । गौर से देखा । फिर समझाते हुए कहा कि जान जाने का दुख तो है पर जान के जाने से समय नहीं रुकता , संस्था नहीं बैठती , व्यवस्था नहीं बदलती । सोकागज़ाती कार्यवाही दुरूस्त की जाए । “एण्ड बिज़नेस ऐज़ यूज़ुअल” ।


बुतरू       - क्या डॉन को कुछ महसूस नहीं होतावो भी तो इंसान है ।

 भगत जी  - तुमने शायद गौर नहीं किया , व्यवस्था नहीं बदलती । व्यवस्था है कुर्सी । दिलजान और मिजाज कुर्सी के होते हैं । डॉन तो पद्‍वी है। मर्जी तो कुर्सी की चलनी है । अगर खुद की चलने लगे तो डॉन भी ‘वो’ हो जाए ।

 बुतरू       - लेकिन इस पूरे मामले में सच क्या था ?

 भगत जी  - वो तो अब किसी को पता नहीं चल पाएगा । वैसे भी सच कैसाकहाँ और कितना निकलता है उस पर निर्भर करता है बहुत कुछ । फिर सबको अपनी  खाल भी बचानी होती हैजान तो बहुत आगे की चीज़ है । इसीलिए जो हुआ  सो हुआ । भूल जाओ । भूलो न भी तो ज़िक्र न करोकम-से-कम खुलेआम ।

 बुतरू       - ओ...। पर फिर आगे क्या हुआ ?

 भगत जी  - हुआ क्या । डॉन ने टाई की गाँठ ठीक की । हैंगर से कोट उठाया और निकल  गया एक बहुत ज़रूरी मीटिंग के लिए ।

 किस्सा खतम ।


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