शनिवार, 3 मई 2025

चार कुर्सियों का वार्तालाप [ भगत – बुतरू संवाद.1.0 ]

 

चार कुर्सियों का वार्तालाप

[ भगत – बुतरू संवाद.1.0 ]

 

 बुतरू                      - एक बात इधर लग रही है कि कुछ भी काम करना मुश्किल हो गया है ।

 भगत जी  - समझा नहीं । थोड़ा साफ करो ।

 बुतरू                      - कुछ भी काम करने चलिए , तो इतने न जोड़-तोड़ की बात होती है कि छक्के छूटने लगते हैं । खास तौर पर नए लोगों केथोड़े कमजोर लोगों के ।

 भगत जी  - देखो ऐसा है , कुछ लोग ज़माने की व्यवहारिकता को समझ लेते हैं । वे सुखी रहते हैं । दिक्कत होती है अधकचरे लोगों को । जो पूरे अव्यवहारिक हैं वे भी सुखी हैं ।

 बुतरू                      - ठीक है । पर कोई तो हौसला बढ़ाए । थोड़ा भी । सब के सब लगे हैं “ अपनी-अपनी दे- ले में” ।

 भगत जी  - देखो भाईनया ज़माना यह मान कर चलता है कि “ यात्री अपने सामान की रक्षा स्वयं करें” !! थोड़ा-बहुत जेनेरेशन गैप है । फिर आदमी- आदमी पर भी निर्भर करता है। फिर देश के हवा-पानी का भी असर होता है .... थोड़ा रुक कर ... ये कहानी , देखो काम की लगती है कि नहीं :-

 

चार कुर्सियों का वार्तालाप

 

एक ज़माना था ।

एक कमरा था । चार कुर्सियाँ थीं । एक मेज़ थी ।

 देश में स्त्रियों का बहुत सम्मान था । कुर्सियाँ शक्ति का केंद्र थीं । उनकी बहुत महत्ता थी । इसीलिए कुर्सियों को स्त्रीलिंग घोषित कर रखा था । स्त्रियों का सम्मान जरूरी चीज है । आप प्रतिकूल लिंगानुपातजघन्य अपराध आदि भूल जाएँ । प्रतीकों का महत्त्व होता है । कुर्सी शब्द स्त्रीलिंग था ।

 तो चार कुर्सियाँ थीं । एकबड़ी भारी-भरकम ,ऊँची – मेज की एक तरफ । बाकी तीन अपेक्षाकृत छोटीहल्कीनीची – मेज की दूसरी तरफ ।

 मेज पर कुछ प्लेटें थीं । कुछ में फल थे । कुछ में मिठाईयाँ थीं । गिलासों में पेय पदार्थ थे। चर्चा चल रही थी ।

ऐसी चर्चाओं में यह पहले से तय होता है कि बड़ी कुर्सी ही सही होती है सदैव । बाकी कुर्सियों को चर्चा के दौरान इसे सिद्ध करना होता है , बस ।

 छोटी कुर्सियों में एक नौसिखुआ थी । बाकी दोनों नियमित दरबारी थीं । दरबार हर बड़ी कुर्सी का विशेषाधिकार होता है । यह रोग भी हैईलाज भी । खुराक नियमित होनी चाहिए ।

 बड़ी कुर्सी चिंतामग्न-सी थी । बरफी के टुकड़े को मुँह में डालते हुए कहा – किसी की भी हिम्मत नहीं हुई कुछ बोलने की भरी सभा में । एक-से-एक खयाली पुलाव परोसे जाते रहे । और उनको पकाने की हामी भरवाई जाती रही ।

 नौसिखुआ टपक पड़ी – बात उठानी तो चाहिए थी । अगर ग्राउंड लेवल की समस्याओं पर विचार नहीं किया जाएगा तो बात बिगड़ ही जाएगी ।

 दूसरी छोटी कुर्सी ने काटते हुए कहा – भाईपहले तो सभापति न बिगड़ें उसका इंतजाम करना जरूरी है । रही बात नीचे कीतो कुछ भी कर लो बात वैसी ही रहेगी ।

 तीसरी कुर्सी ने कहा – और सुनोजो करने वाले होते हैं न , वो करते ही हैं । बाधाएँ तो निगेटिव लोग ही गिनाया करते हैं ।

 नौसिखुआ ऐसे ही सकुचाई हुई थी । थोड़ा और सकुचा गई । उसे भी होश आया , फरियादी को ज़बानदराज़ नहीं होना चाहिए ।

 तीसरी कुर्सी ने बात घुमाई । बात सँभाली और पूछा बड़ी कुर्सी से – सुनासभा में सबों को फटकार मिली,सिर्फ आपको छोड़ कर ।

बड़ी कुर्सी कुप्पा !

बोली- अरेसब आपलोगों का ही काम है भई । आपने तैयारी ही इतनी अच्छी करके दी थी कि कौन टिक पाता !

प्रशंसाप्रशंसा को खींचती है । चापलूसी,चापलूसी को ।

 बड़ी कुर्सी ने आगे कहा – वो जो पीछे वाली इमारत की कुर्सी है नवो ही सबसे बड़ी प्रतिद्वंद्वी है अपनी । आप लोग भी ध्यान रखिएगा । उसका प्रचार-तंत्र भी तगड़ा है । फिर अचानक नौसिखुआ कुर्सी पर नजर गड़ाते हुए कहा – देखिएकाम तो करना ही पड़ता है । और जैसा आदेश हो वैसा ही । बल्कि उससे भी बढ़कर । आपको भी करना ही पड़ेगा । ‘करना ही’ को थोड़ा ज्यादा ज़ोर देकर कहा । और समझने वाले इस ‘करना ही’ का मतलब समझ जाते हैं । रास्ता एक ही है ।

 नौसिखुआ के चेहरे पर असहजता की छाया आकर चली गई ।

 दूसरी कुर्सी ने बात का सूत्र पकड़ कर बढ़ाते हुए कहा     – सभी लोग काम करने के लिए ही आते हैं । सभी ऐसे ही काम करते हैं । और कोई बुराई भी तो नहीं है । फिर कौन-सा घर से जा रहा है ।

 नौसिखुआ ने सहमति में सर हिलाया । हालाँकि आँखों में अविश्‍वास की झलक पूरी मिटी नहीं थी ।

 तीसरी ने असहजता को भाँपते हुए फिर बात बदली      – आज का अखबार देखा है ? देश को चलाने वाले लोग भी रिपोर्टोंनंबरों पर ही सारा ध्यान दिए हुए हैं । भला उनको किससे ईनाम लेना है ? अब और क्या बन जाएँगे ? काम से कोई मतलब ही नहीं रहा । बस नंबर पर नंबर गिनाए जाओ ।

 दूसरी कुर्सी ने बात लपकी         - लेकिन अपना तो बिना रिपोर्ट कार्ड के गुजारा नहीं । टॉप का मतलब टॉप । फर्स्ट का मतलब फर्स्ट । 

 नौसिखुआ ने भी शिरकत की कोशिश की         - नगर निगम का भी हाल देखिए न , बारिश शुरु हो जाती है तभी उनको शहर की सारी नालियों की सफाई का ध्यान आता है । सारे रास्ते को कचरा कर देते हैं ।

 बड़ी कुर्सी ने टेढ़ी मुस्कान के साथ कहा          - नगर निगम को छोड़िए भई । आप तो अपने काम की सोचिए । फिर महौल को थोड़ा सहज बनाने की गरज़ से कहा    - देखिए प्लेटें भी खाली होतीं रहनी चाहिए । काम तो चलते रहता है और काम तो हो ही जाता है । कोई करे न करे !


नौसिखुआ के चेहरे पर परेशानी की रेखाएँ थोड़ी और गहरी हो गईं । किसी ने शायद गौर नहीं किया ।

 

तीसरी कुर्सी ने कहा        - तो कौन सा हम पीछे हैं । पिछली इमारत वाले हमसे अभी कोसों दूर हैं । हाँएक दूसरे इलाके की कुर्सी बढ़ जरूर रही हैपर हमारे लोग भी और बढ़ जाएँगे तबतक ।

 बड़ी कुर्सी ने देशसमाज पर चिंता जाहिर करते हुए कहा       - देश तोलगता है डायनमिक इक्विलीब्रियम में है । एक भी पेंच इधर-उधर हुआ तो पूरा भरभरा कर गिर जाएगा । और देखिएगा ऐसा होगा । दिन बहुत दूर नहीं है ।

 दूसरी कुर्सी ने हाँ में हाँ मिलाई     - बिल्कुल । और हमलोग किसी तरह बच भी जाएँ ,अगली पीढ़ी तो बच नहीं ही पाएगी ।

 नौसिखुआ ने फिर रँग में भँग डाला - एकदम ग्रासरूट लेवल से ही शुरु करना होगा । सबों को। हमलोगों को भी अपना स्वार्थ छोड़ कर दूसरों के हितों की चिंता करनी चाहिएतभी कुछ हो सकता है । सबकुछ हम ही नहीं हथिया लें । बाँटना भी सीखें....

 तीसरी कुर्सी ने बीच में ही टोका    - ऐसा हैचैरिटी बिगिन्‍स ऐट होम । आप रहिएगा,तभी न कुछ करिएगा ।

 

बातें चलती रहीं । मुँह चलते रहे । प्लेटें साफ होती रहीं ।

 

समय काफी निकल चुका था ।

नौसिखुआ का धैर्य चुक गया ।

उसने अर्ज़ी दे ही डाली      - एक काम भी था छोटा सा । यह कह कर एक आवेदन निकाला । बड़ी कुर्सी ने सरसरी से भी कम निगाह डालते हुए कहा - इसको उधर डाक सेक्शन में देते हुए निकल जाईए ।

बड़े लोगों को काम की याद ऐसे ही अचानक नहीं दिलातेबिदक जाने का खतरा रहता है ।

नौसिखुआ निकल गई ।

 

नौसिखुआ के कान की हद दूर हो जाने पर दूसरी कुर्सी ने कहा   - देख लीजिएगा । काम तो ठीक ही है इसकाऔर शरीफ भी है ।

 बड़ी कुर्सी ने कहा    - ठीक है । पर ऊपर से भी कई आवेदन गिरे हुए हैं । फिर थोड़ा रुकते हुए कहा      - अरे हाँपिछली बार का हिसाब भी क्लियर नहीं हुआ है ।

 फिर तीसरी कुर्सी को कहा   - ज़रा किसी को बोल दीजिएगा प्लेटें हटा ले ।

 यह संकेत था       - तखलिया 

 

दोनों कुर्सियाँ बाहर निकल आईं । दोनों के चेहरे जो मातहती में डूबे थेअब सहज होने लगे थे। साँसें ताजा मालूम होने लगी थीं । और जो सबसे ज्यादा स्वाभाविक था , गलियारे में दोनों वही बातें करने लगीं –

दूसरी        - काम करना ही पड़ेगा । कभी खुद काम किया है कभी ! और प्रवचन तो देखिए !

तीसरी ने जोड़ा      - हाँकरते जाओ तो हीरो । जहाँ कुछ पूछ बैठे तो बागीनिगेटिव ।

 

 दरवाजे के अंदर बड़ी कुर्सी सोच रही थी    - कोई काम नहीं करना चाहता । और ऊपर से पैरवी करते हैं । ठीक से बात करा लो तो लोग हद से बढ़ने लगते हैं । और नई वाली को तो एकदम टाइट करके रखना होगा ।

 नौसिखुआ घूमती हुई उधर निकल आई थी । दोनों कुर्सियों को बात करता देख उधर चली गई । दूसरी कुर्सी ने कहा   - हमने कह तो दिया हैदेखो क्या होता है । किसी से कहवाने का उपाय हो तो कर लो ।

 नौसिखुआ ने कहा    - आप दोनों का ही सहारा है । भला और कौन जानता है ?

 दूसरी कुर्सी ने कहा   - थोड़ा पहले बताना था । मौका देखा कर ही बात की जा सकती है । अब देखो......।

 तीसरी ने कहा       - जाड़े में कभी नारियल तेल लगाया है ? तेल जम जाता है । कभी धूप में छोड़ते हैं । कभी आँच के पास रख देते हैं । कभी हथेलियों पर लेकर रगड़ लेते हैं । रिज़्ल्ट एक ही हैतरीके अलग ।

दूसरी ने फिर कहा   - वैसे ही आला कुर्सियों को मनाने का मौका ढूँढना पड़ता है । और हाँ,ध्यान रहे यह आपके खुद के काम के अलावा होता है। उनकी नज़रों में बने रहना चाहिए। हाँएकांतवास का शौक हो तो बात अलग है । फिर रोईए भी मत ।

दूसरी ने आगे जोड़ा - अपना काम ठीक से करते रहिए । मिलते रहिए । होगाकुछ न कुछ ।

 

कह कर दोनों कुर्सियाँ आगे बढ़ गईं ।

नौसिखुआ को बहुत ज्ञान मिल गया था ।

 

नौसिखुआ खड़ी रही । फिर धीरे- धीरे कदमों से वहाँ से चल पड़ी । उसके मन में एक पुराने मित्र से हुई बातचीत का वाकया याद आया –

 

मित्र सुना रहा था    - मेरे एक भाई साहब हैं । अजीब हैं भाई । दफ्तर जा रहे हों तो क्या मजाल किसी को अपनी गाड़ी में बिठा लें । गाड़ी दफ्तर ने सिर्फ उनकी सवारी के लिए दी है। दूसरा बैठेगा तो दुरूपयोग होगा । कोई व्यक्तिगत चिट्‍ठी लिखनी हो तो खुद की खरीदी हुई कलम निकालेंगे  ......। ऐसा आजकल होता तो नहीं है ।

नौसिखुआ ने तब सोचा था   - काश ! ऐसी लगन मुझमें भी आए । घड़ा भरने में मैं भी एक बूँद बनूँ ।

 बात याद आ गई तो नौसिखुआ ने सोचा   - यू टर्न मार लूँ क्या ?

फिर खुद ही को टोका       - यू टर्न मार लूँ ?मार लिया है भाईऑलरेडी !


 बुतरू                      - इस कहानी में तो वैसा कुछ खास है नहीं । वही रोजाना की बातें ।

 भगत जी  - तुमने सुजाता फिल्म देखी है ? उसमें एक डॉयलॉग है – “ तुम्हारा सबसे बड़ा गुण यही है कि तुममें कोई गुण नहीं है” । कभी-कभी एकदम आम-सी बात भी खास होती है। तुमने यू टर्न वाली बात पर ध्यान दिया ? सभी लोग यू टर्न लेने लगेंगे तो देश कहाँ पहुँचेगा ?

 बुतरू                      - सो तो है । वैसे क्या पता क्यों अकबर इलाहाबादी का एक शेर याद आ रहा है -           

       हर ज़र्रा चमकता है अनवारे- इलाही से

                   हर साँस ये कहती है हम हैं तो खुदा भी है

 

भगत जी ने प्रशंसा भरी नजरों से मुस्कुरा कर देखा । 


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