रहने नहीं देंगे
जाने नहीं देंगे
लेने नहीं देंगे
लाने नहीं देंगे
गुलामी किसको कहते हैं
भला कोई तो बतलाओ
कोई तो आईना लाओ
बड़े साहब को दिखलाओ
कि किसने दुख को बाँटा है
महीनों पेट काटा है
कि घर जाना जरूरी है
समय मुश्किल से काटा है
तुम खिचड़ी पकाते हो
जनता को छकाते हो
डराते हो, सताते हो
उम्मीदों को थकाते हो
चंद जेबें तुम्हारी हैं
दिनो-दिन होनी भारी हैं
हमारे हाथ मुँह को हैं
दिन भी दिन पर भारी हैं
इन्सान नहीं सामान ही हैं
ज़िंदा एक फ़रमान ही हैं
जबड़े जो भींचे रहते हैं
दबे हुए अरमान ही हैं
अब कितना समझाओगे
बातें कितनी बनाओगे
समझा के भला क्या पाओगे
नजरों में गिरते जाओगे
"कोई तो आईना लाओ बड़े साहब को दिखलाओ"
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