सज़ा दी गई उन्हें ?
क्या उनका कसूर ये था
कि वो घरों से दूर थे
क्या उनका कसूर ये था
कि वो लौटने को मजबूर थे
या उनका कसूर ये था
कि वो मजदूर थे ??
ये किन गुनाहों की
सज़ा दी गई उन्हें ?!!
रोटी-रोज़ी के मसले हैं
ये मसले कोई कम तो नहीं
ये मसले कोई क्या कम थे
जो हालात बिगड़ते जाते हैं ?
सवाल करे भी तो क्या ?
सवाल करे भी तो किससे ?
सवाल करे भी तो कौन ?
एक ढोल उठाया जाता है
और खूब पीटा जाता है
कुछ नाम उठाए जाते हैं
और खूब घसीटा जाता है
दिशा-दिशा से जैसे फिर
बंदूक निकाली जाती है
इसके-उसके-सबके
सर पे तानी जाती है
कहने-सुनने-समझने वाले
फिर सबको समझाने वाले
हालात पे काबू पाने वाले
अंधेरे में हैं सब के सब, बस
तुक्कों के तीर चलाए जाते हैं
मैं सोचने बैठा हूँ देखो
मैं कितना ऐंठा हूँ देखो
घर में आटा- चावल है
लौकी भिंडी परवल है
बिजली-बत्ती-पानी है
मैं न्यूज़ चलाए बैठा हूँ
जीना मरना दोनों मुश्किल
बढ़ना रुकना दोनों मुश्किल
बर्दाश्त की कोई हद होगी
उस हद से गुजरना अब मुश्किल
मरने से अच्छा जीना है
रुकने से अच्छा चलना है
सब जानते हैं सबकी खातिर
कुछ करते रहना अच्छा है
जो जैसा है उससे बेहतर
थोड़ा चाहे कम कर कर
तुम भी जी लो
हम भी जी लें
वो भी जी लें
हम सब जी लें...
प्लीज़ !
प्लीज़!
प्लीज़ !!
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