रविवार, 5 अप्रैल 2020




आनंद विहार, दिल्ली
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जो उन पे गुज़री है
वो तुम क्या समझोगे
वो हम क्या समझेंगे

चीखेंगे चिल्लाएँगे
तस्वीरें दिखलाएँगे
दो दिन का शोर शराबा
फिर भूल भुला जाएँगे

पढ़ -पढ़ कर सीखा है
जो जाना -समझा है
उनको जाकर  देखो
जीना क्या जीना है

रोटी के लाले हैं
पैरों में छाले हैं
तिस पर दुनिया समझे
जैसे मतवाले हैं

जीना भी, मरना भी
अब जो भी करना भी
तो खुद ही कर लेंगे
जो खुद ही करना ही

जो भय है, संशय है
वो सबको है, तय है
खाली हाथ लड़ेंगे
वो, उतना ही तय है

हारेंगे जीतेंगे
दिन कैसे बीतेंगे
वो तुम क्या समझोगे
वो हम क्या समझेंगे

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