त्रिशूल,1978 निर्देशन: यश चोपड़ा छायांकन: के जी
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बारूद
किए फिरते हैं
ज़ख्म-आलूद* लिए फिरते हैं
दरका हुआ मन
सूखा पड़ा हुआ
इस शोर-शराबे में
इस ‘मैं’ के भुलावे में
एक
दूसरे से बेख़बर
एक
दूसरे के ख़िलाफ़
फिर
रहे हैं लोग सब
भटक
रहे हैं
दर-ब-दर
*ज़ख्म-आलूद
-- ज़ख्म से भरा/ सना हुआ
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