शनिवार, 21 जून 2025

तुम्हारे लिए


 

तुम्हारे लिए

 

सँभालता हूँ चीजों को 

सजाता हूँ घर को भी 

खींचता हूँ

उतरती हुई शाम की तस्वीरें 

बाँधता हूँ मंसूबे 

यहाँ-वहाँ जाने के 

बनाता हूँ फेहरिस्त 

कि क्या-क्या लेना है सामान.... 

गैरहाजिरी में तुम्हारी 

करता हूँ वो सब 

जो करना था तुम्हारे साथ 

तुम्हारे लिए ।


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