शुक्रवार, 20 जून 2025

ख्वाब की जरूरत


 

ख्वाब की जरूरत

 

दिले-बेताब में 

एक नामुमकिन-सा ख्वाब 

कुछ शक्लें इख्तियार कर रहा है 

और ख्वाब कुछ ऐसा कि 

एकबारगी हकीकत का गुमां हो जाए... 

धड़कनें फिर कोई नाजुक-सा गीत गुन रहीं हैं

कोई और न सुन सके

बस खुद ही सुन रहीं हैं

               एक गीत गुन रहीं हैं।

 

ख्वाबों से परे जो दुनिया है 

उसकी तो कुछ खबर ही नहीं 

जिंदगी जो हक़ीक़त है 

उसका कुछ असर ही नहीं 

बस सुब्हो-शाम ख्वाब है 

ये जिंदगी है कि सराब है?

 

मगर

ये ख्वाब ही तो है शायद 

कि जिसकी ताबीर हुई 

तो हम चाँद के दर

उसके आँगन तक जा पहुँचे 

और ख्वाब ही तो है कि जिसके दम पर

हम सभी जिंदा हैं, वरना

इस जिंदगी का क्या, इससे 

कहीं-न-कहीं

हम सभी शर्मिंदा हैं!

तो दिले-बेताब

तू देखता जा ख्वाब

ताबीर की कर कोशिशें पुरज़ोर, क्योंकि 

ताबीर जितनी जल्दी होगी 

उतने ही नए ख्वाब 

दिल में शक्लें इख्तियार कर पायेंगे

और हर बार 

नई जिंदगी दे जायेंगे ।


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