शुक्रवार, 20 जून 2025

एहसास


 

एहसास

 

ये डूबता लाल सूरज तो 

वहाँ भी ऐसा ही होगा 

जहाँ-जहाँ मेरे लोग रहते हैं

ये गहराती हुई शाम भी तो 

ऐसी ही होगी -- 

हल्की उदास-सी 

कुछ पंछी

ऐसे ही लौटते हुए होंगे अपने ठिकानों की तरफ 

चाँद इसी तरह 

धीमे से निकलता होगा वहाँ भी 

सप्तर्षि तारामण्डल 

उसी तरफ होगा, जिस तरफ यहाँ है 

सीसम के कुछ पेड़ ऐसे ही होंगे, मालती के फूलों की लतरें 

ऐसी ही होंगी 

'टाइम्स ऑफ इण्डिया' के 

एडिटोरियल पन्ने पर 

वही चीजें छपती होंगी, वैसे ही

वही 'थॉट फॉर टुडे', वही 'सेक्रेड स्पेस

जाने कितनी चीज़ों से जुड़ गया हूँ 

जब से छूटा हूँ अपनी जड़ों से

जब से 

एहसास बढ़ गया है 

अपनों से दूर होने का 

देखिए तो जरा !


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