ज़िंदगी चलती रही
ग़म की लौ जलती रही
आह मचलती रही
कोई कमी खलती रही
ये जिंदगी चलती रही
रोज़ खुशी टलती रही
गो' उम्मीद पलती रही
उम्र निकलती रही
ये जिंदगी चलती रही
राह बदलती रही
बच के निकलती रही
बा-मौके फिसलती रही
ये जिंदगी चलती रही
खुद को भी छलती रही
हाथों को मलती रही
फिर भी बहलती रही
ये जिंदगी चलती रही
काँटे निगलती रही
फूल मसलती रही
हर सही गल्ती रही
ये जिंदगी चलती रही ।
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