ऐसा कहते हैं
ऐसा कहते हैं
शहर छूटता है
तो लोग भी छूट जाते हैं
शहर की हदों के पीछे,
और गुजरते वक्त के साथ
यादें गर्द हो जाती हैं
ऐसा कहते हैं....
मगर कहाँ हो पाता है
अपनों से दूर हो पाना
बातों का छूट जाना
कि दिलों में आबाद हैं जो शहर
वो साथ-साथ चलते हैं
छूटते नहीं हैं लोग
जो दिलों में बसते हैं
तो फर्क क्या
कि हमको रहना कहाँ है
तो फिक्र क्या,
हमको बिछड़ना कहाँ है !
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