आज फागुन चढ़ गया है
आज फागुन चढ़ गया है!
कुछ उमंगें, कुछ उम्मीदें, कुछ तुम्हारे बिंब प्यारे
अंतःकरण में जैसे कोई आज आकर मढ़ गया है।
तन तरंगित, मन तरंगित, बदला हुआ वातावरण है
मन का मिलन है पूर्ण, अपितु उस
पर विरह का आवरण है
मूक हैं शब्द, मन मुखर है,
भाव सारे संचरित हैं
लगता है मनोभाव सारे ऋतुराज जैसे पढ़ गया है।
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