शुक्रवार, 20 जून 2025

आज फागुन चढ़ गया है


 

आज फागुन चढ़ गया है

 

आज फागुन चढ़ गया है! 

कुछ उमंगें, कुछ उम्मीदें, कुछ तुम्हारे बिंब प्यारे 

अंतःकरण में जैसे कोई आज आकर मढ़ गया है।

 

तन तरंगित, मन तरंगित, बदला हुआ वातावरण है 

मन का मिलन है पूर्ण, अपितु उस पर विरह का आवरण है 

मूक हैं शब्द, मन मुखर है, भाव सारे संचरित हैं 

लगता है मनोभाव सारे ऋतुराज जैसे पढ़ गया है।


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