यादों के नशेमन में
यादों के नशेमन में ख्वाबों का कोई पंछी
पंख अपने फड़फड़ाता है
जाने किस दिशा में जाएगा
क्या चुग कर आएगा
कुछ भी तो नहीं बताता है
बस पंख फड़फड़ाता है!
परों को तोलता है
कुछ खुद ही से बोलता है
और थक के बैठ जाता है
बस पंख फड़फड़ाता है!
जाने कोई संदेह है
या भय कोई सदेह है
क्यों रह-रह के डर जाता है
बस पंख फड़फड़ाता है!
बोले तो मिले आवाज़
उड़े तो हो परवाज़
ये तो बस सोचता जाता है
बस पंख फड़फड़ाता है!
कौन मानेगा नहीं
कौन जानेगा नहीं
किसका भय खाता है
बस पंख फड़फड़ाता है!
उड़ता वही जो हवा से लड़ता जाता है
वो नहीं जो बस पंख फड़फड़ाता है!
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