शुक्रवार, 20 जून 2025

यादों के नशेमन में


 

यादों के नशेमन में

 

यादों के नशेमन में ख्वाबों का कोई पंछी 

पंख अपने फड़फड़ाता है

 

जाने किस दिशा में जाएगा 

क्या चुग कर आएगा 

कुछ भी तो नहीं बताता है 

बस पंख फड़फड़ाता है!

 

परों को तोलता है 

कुछ खुद ही से बोलता है 

और थक के बैठ जाता है 

बस पंख फड़फड़ाता है!

 

जाने कोई संदेह है 

या भय कोई सदेह है 

क्यों रह-रह के डर जाता है 

बस पंख फड़फड़ाता है!

 

बोले तो मिले आवाज़ 

उड़े तो हो परवाज़ 

ये तो बस सोचता जाता है 

बस पंख फड़फड़ाता है!

 

कौन मानेगा नहीं 

कौन जानेगा नहीं 

किसका भय खाता है 

बस पंख फड़फड़ाता है!

 

उड़ता वही जो हवा से लड़ता जाता है 

वो नहीं जो बस पंख फड़फड़ाता है!


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