प्रतिबिंब
हम चुप रहते हैं,
हम सब
सहते हैं --
हम शरीफ
लोग हैं।
हमने
जीवन-दर्शन आसान कर लिया है --
अपनी
रोटी, अपना पैसा, अपनी कुर्सी
ताक पर
रहे मान-सम्मान ।
अब धुरी भी हम हैं, परिधि भी
हमें आज
को बचाना है,
कल को
सँवारना है, अपने लिए
ब-ज़रिये
तरफदारी, मौकापरस्ती, जी-हुजूरी
हमने
वैयाकरणों, इतिहासकारों का
काम भी
आसान कर दिया है,
बस एक
शब्द दे दिया है
संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण की जगह --
नपुंसक !
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