शुक्रवार, 20 जून 2025

प्रतिबिंब


 

प्रतिबिंब


हम चुप रहते हैं

हम सब सहते हैं -- 

हम शरीफ लोग हैं।

हमने जीवन-दर्शन आसान कर लिया है --

अपनी रोटी, अपना पैसा, अपनी कुर्सी 

ताक पर रहे मान-सम्मान । 


अब धुरी भी हम हैं, परिधि भी 

हमें आज को बचाना है

कल को सँवारना है, अपने लिए 

ब-ज़रिये

तरफदारी, मौकापरस्ती, जी-हुजूरी 

हमने वैयाकरणों, इतिहासकारों का 

काम भी आसान कर दिया है

बस एक शब्द दे दिया है 

संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण की जगह --

नपुंसक !


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