सब कुछ कितना असहज है
सबकुछ कितना सहज रूप से असहज है!
मिलते अब भी हैं, मगर डरते-डरते
बात अब भी होती है, पर दायरों में बँध के
रिश्ते के नाम पर तकल्लुफ महज है
सब कुछ कितना असहज है!
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