ध्रुव-सत्य
माँ
कर लेती
है खुद को
नेपथ्य
में
धीरे-धीरे, चुपचाप
पिता भी
गैरजरूरी-सी
जरूरतों की आड़ में
छिपा ले
जाते हैं निराशा, पीड़ा अपनी
ध्रुव-सत्य
शायद यही है
एकाकीपन
-- नितांत !
शायद ये
अशक्त
सारे बंधन -- पूर्णरूपेण !
और शायद
ये
गैरजिम्मेदाराना
प्रवृत्ति की
काठ-हृदय
पीढ़ी -- हम !!
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