शुक्रवार, 20 जून 2025

मिलना


 

मिलना

 

अब कितना मिलना हो पाएगा 

उनसे 

जिनकी बदौलत हूँ 

उनसे 

जिनकी खातिर हूँ मैं

 

उम्र का एक बड़ा हिस्सा तो निकल चुका 

और बाकी बचे हुए में 

जाने कहाँ-कहाँ बँटना है 

कहाँ-कहाँ अँटना है 

हिसाब लगा कर भी देखा है 

और जब भी किया है हिसाब 

तो यही पाया है 

कि वक्त बहुत कम, मौके बहुत कम हैं अपने पास

पूरे जीवन का सोच कर देखें तो भी 

बात दिनों और महीनों तक ही पहुँच पाती है 

तो अब 

बरसों लंबी जिंदगी में 

गिने-चुने दिन 

गिने-चुने महीने हैं 

जब पास होंगे मेरे अपने

जब साथ होगा उनका 

जब मेरी नज़रों के सामने होंगे वो 

उनके बीच हूँगा मैं 

अब तो

हर एक लम्हे को भरपूर भरना होगा 

एहसास से

अनुभूति को अपनी तेज से तेजतर करना होगा 

कुछ इस तरह

कि जब भी मिलें, जितना भी मिलें 

पूरे वजूद के साथ मिलें 

समय की कमी कभी आड़े न आ पाए

भले ही

सूई की नोक भर समय हो अपने पास 

मगर वह सूई की नोक भर मुलाकात भी ऐसी हो 

कि

अपने पूरे वजूद, पूरे व्यक्तित्व को बींध जाए -- 

यहाँ से वहाँ तक 

हर एक लम्हा मुलाकात का 

एक बूँद हो रँग का जो

आए जीवन के पानी में 

तो फैल जाए पूरी सतह पर 

रच-बस जाए टुकड़े-टुकड़े में 

घुल-मिल जाए कतरे-कतरे में

कि

पूरी जिंदगी 

सिमट कर आ जाए उस एक लम्हे में 

वो एक लम्हा

फैलकर

बन जाए पूरी जिंदगी।


कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें