मरा हुआ आदमी
सभ्य-सा आदमी
चेहरे पर
पदोचित गांभीर्य
आँखों
में
गांभीर्य-जनित
आभिजात्य
वाणी में
अधिकार
यही
चलाता है हुकूमत
दीन-हीन
पर, दीन-हीन के लिए
दीन वो
जो मान
ले, कर ले लिहाज
हीन वो
जो छोड़
दे, स्वत्व तक
वरना
जिसने
आस्तीन चढ़ा ली
जिसने
उँगलियाँ तान दीं
जिसने
आँखों से उगल दिया तिरस्कार
उसके लिए
गांभीर्य मुलायम
आभिजात्य
नत
वाणी
याचक
नियम-कानून उसी को दिए
जो मान
ले
भार
उन्हीं कंधों को
जो झटके
नहीं
वही कहीं
रहनुमा भी है --
भेजता है
संदेश
सुनाता
है उपदेश
देता है
चुनौती सत्ता को
सत्ता की
सहमति के साथ
टटोलता
है दिमागों को
जिनमें
बगावत का कीड़ा है,
दिलों को
जिनमें
शहादत का शौक है
फिर वहाँ
ढूँढता है संभावनाएँ
सत्ता की, साम्राज्य की -- खुद की
और यहाँ
भी
निशाने
पर है फिर दीन-हीन
दीन वो
जो घुलता
है अंदर-ही-अंदर
हीन वो
जो
ढूँढता है सामर्थ्य, समर्थन
पिछलग्गू
बन जाना विरोध में
अशक्त हो
सौंप देना बागडोर सत्ता-साधकों को
बगावत
यही, शहादत यही
और दीन-हीन भी आदमी
सुविधा
से है
अब दीनता
कवच है
हीनता
हथियार
उसे
उल्लू सीधा करना है, हर हाल में --
पौरुष को
तज के
हाकिम को
भज के
बिकने को
सज के
और यह सब
बिना
किसी अचरज के !
पासे वो भी फेंकता है
बातें भी
बड़ी बोलता है
पर
मोल-तोल
भाँप कर
अपने हित
को ढाँप कर
वही, उतना ही सत्य है
जो सुख
दे,
हक बस
उतना ही
जो
सहूलियत के साथ मिल जाए
सुना था
जड़ नहीं, चेतन है
मनुष्य
सभ्यता का अगला क्रम है...
यह आदमी बढ़ा हुआ तो है सही
पर है यह
मरा हुआ
आदमी !
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