करें कुछ बातें हल्की-फुल्की
आओ बैठें कुछ देर
करें कुछ बातें हल्की-फुल्की ।
यूँ तो ओढ़ लेता हूँ संजीदगी रोजाना
आदमी ही हूँ, सो
लाज़िम है परेशान हो जाना
दिलो-दिमाग को ज़रा राहत दे लूँ
कुछ पल बिना बँधे भी जी लूँ
दफ्तर-की-सी बातें भूल जाऊँ बिल्कुल ही
आओ, करें कुछ बातें हल्की-फुल्की ।
ये फ़िज़ा, ये हवा, ये चाँदनी
ये सुबह, ये सूरज, ये रोशनी
दुनिया में है यह सब भी
नज़र डालें ज़रा इन पर भी
लहरों की सुनें रागिनी, और
सुनें चहचहाहट बुलबुल की
करें कुछ बातें हल्की-फुल्की ।
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