शनिवार, 31 मई 2025

बचपन का समीकरण


 बचपन का समीकरण 

[संग्रह ' एक क्लिक की बदौलत ' का एक खण्ड]


सूद

मूल से प्यारा बढ़कर

कहती है

माँ

पोते को अपने

हाथों में लेकर

 

मूल

सूद

मूल

जीवन का चक्र !


जीवन का गणित

अजूबा

एक और एक

दो नहीं

तीन भी

चार भी... !


मिचमिचाई आँखें

नन्हे-नन्हे हाथ-पाँव

कोंपल-सी देह

 

उसको क्या पता है

धुरी बदल गई है

जीवन की, जीवन बदल गया है

सबकुछ नया-नया है !


शुरु- शुरु में

बच्चे सारे

एक ही से

हैं लगते

 

फिर

हमारी नजरें

उन्हें

बदलने लग जाती हैं


उपस्थिति

घुल जाती है

छा जाता है

रँग

खिल उठता है

जीवन

यत्र-तत्र-सर्वत्र –

किलकारियाँ, किलकारियाँ !


मोह लेता है

मन

घर में

सोहता है

बचपन

 

घर घर हो जाता है

जीवन जीवन !

 

तुतलाता

चलता ठुमक

खुलता-खिलता है

जीवन...

 

मंगल भवन अमंगल हारी !


 

तोतली जबान

मन भाती मुस्कान

फैलता हुआ

जीवन का वितान

जैसे

फैल रहा

अंतरिक्ष...!


सोहे

मोहे

प्रतिदिन

प्रतिपल

घर-आँगन

मन प्रतिमन !


१०

भवें उचकाती

आँखें मटकाती

मुस्कुराती

बजा ताली

खिलखिलाती

बोलती टप्-टप्

ऊधम मचाती

फबती है

जिन्दगी

किसी बच्ची के रूप में ।

 

११

तश्तरी

हाथों में लिए

कौर तोड़े, कौर पकड़े

नन्हें, चपल पाँवों के पीछे

जिन्‍दगी

भागती है

गुनगुनाती है

मुस्कुराती है

आवाज देती है -

जीते रहो,जीते रहो !

 

१२

ठुमक चलत

गिरत-परत

उठत हँसत

देखत कोई तो

रोए रे... !


१३


किसी बच्चे का
नौटंकी वाला रोना है
पिता के हाथों में
फिर एक खिलौना है

रंगमंच है
जीवन
यह
एक
मधुरतम दृश्य

समाहित
जीवन इसमें
स्पंदित
कहता है
मुक़र्रर , मुक़र्रर !


१४

पी लो बेटा

पी लो बाबू

अरे, पी लीजिए भाई

पी लो, नहीं तो

गुस्सा हो जाएँगे

देखो, पिटाई खाओगे....

मान जाओ बाबू

अच्छा , क्या चाहिए

कार, खिलौने, ड्रेस

जो कहो....

ऐसे में

कभी लग जाता है

सब्र टूटने को है

हाथ छूटने को है

आँसू निकलने को हैं....

हर पैंतरा

बेकार जाता हुआ दिखता है

तब जाकर

कहीं हो पाता है...

जिसने

बच्चे को

मना लिया है

पिला दिया है

दूध

पूरा एक गिलास

उसने

जग जीत लिया है !

 

१५

ज़रा-सा

छुआ ही तो था

तुम

बिलख पड़े

और 

सो गए

सिसकियाँ लेते

 

आधी नींद में

जो पूछा

कि गुस्सा तो नहीं

उहूं s s s

कह

पलट कर

सो गए आराम से

 

मन की

कचोट

जाती रही ....

 

सहलाना

मुझको था

सहलाया तुमने !

 

कवि ने

कहा तो था

चाइल्ड इज़ फ़ादर ऑफ़ मैन

 

१६

सारी डाँट-बात को भुला

सट गया है

आकर

लिपट गया है

इक नई

फरमाइश के साथ

 

सारी कड़वाहट

काफूर

चश्‍मे-बद्‍-दूर !

 

१७

किसी ने

बनाया महल

किसी ने गज़ल कही

नज़र नज़र की बात है

कि बात

सबसे मीठी यह रही

एक बच्चे की

किताबें सारी

उसके पिता ने पढ़ीं

उसके लिए !


१८

पिता की छाया

बेटी-बेटे में

पिता की छाँव

बेटी-बेटे पर

 

महसूस कर सकते हैं

पकड़ नहीं सकते !!

 

१९

पिता

बच्चों से

रखे उम्मीद

अच्छी बात है

 

बच्चे

पिता से रखें उम्मीद

और वो खरा उतरे उनपर

ये और भी अच्छी बात है !


२०

कितनी क़समें

खाते हैं

बच्चों की ख़ातिर

 

बच्चों के कहने पर

टूट जाती हैं

क़समें कितनी !!

 

२१

माँ-बाप

खुशी चाहें

बच्चों की,

मगर कैसी ?

 

बच्चों के

मन की

या

अपने जैसी ? !

 

२२

जैसे

आप चाहें

वैसे न करें

वैसे न रहें

वैसे न कहें

वैसे न बढ़ें

 

अपने तरीके से

जीवन को पढ़ें

सोचिए

आपने भी तो

किया था यही

देखें, झूठ ना कहें !


२३

सपनों की एफडी

ऑटो रिन्‍यू होती है

पिता से बेटे

फिर

उसके बेटे तक पहुँचती है

 

पिता हो जाना चाहता है

अपने बच्चों जैसा

 

सच कहा है कवि ने

दुनिया रोज़ बनती है !


२४

बच्चों के हवाले

पिता के सपने

 

पिता को याद आते

पिता अपने

 

आधे अधूरे

जाने कितने सपने

कहाँ याद आता

कुछ कहा हो पिता ने

 

सपने धीमे धीमे

बिना कुछ कहे

बन जाते हैं डी एन ए...


२५

बच्चों की ज़िद को बड़े

तोड़ नहीं सकते अपनी ज़िद से

उनके मन की धारा को

मोड़ नहीं सकते जबरन

 

घी टेढ़ी उँगली से नहीं,

प्यार की गर्मी से पिघलता है,

तब निकलता है

 

बच्चे पाठ पढ़ाते हैं

अपने ही अंदाज़ से...

 

 २६

बच्चे

जीवन की

धुरी बन जाते हैं

धीरे-धीरे

 

फिर कालक्रम में

धुरी के झुकाव का

अंश बदल जाता है

जीवन से

नया जीवन निकल आता है

 

फिर धुरी बनती है

फिर झुकाव बनता है...


२७

बेटा पीठ थपथपाए

बेटी माथा सहलाए

थके-हारे को चाय पिलाए

कभी मिल के खाना बनाए

 

बाप बैठा मुस्कुराए

माँ अँसुअन धार बहाए

 

स्वर्ग की परिकल्पना

और क्या रही होगी भला ?

२८

एक ही साथ

नजर सब पर रखे है

दर्ज हो चुकी हैं बातें सबकी

मिलेगा जवाब सबको

इंतज़ार करें, निश्‍चिंत रहें !


 २९

पिता को

हारना होता है

बेटे की ज़िद से

 

बेटे की ज़िद से

पिता को

याद आते हैं

पिता अपने

अपना बचपन


 ३०

बच्चे ठगते हैं

माँ-बाप

ठगे जाते हैं

सब जानते हुए

सब देखते हुए

मुँदी रखते हैं आँखें अपनी

 

हम

ईश्‍वर के बच्चे हैं !

 

 ३१

माँ की

डाँट-मार के

बच्चे

हो चुके होते हैं

आदी

 

पिता

वही करे

तो बच्चे

हो जाते हैं बागी !

 

 ३२

एक दिन

पंछी

उड़ जाते हैं

 

घर खाली हो जाता है

भर जाता है

इंतजार से

सदा-सदा के लिए

 

चले जाते हैं

एक दिन

माता-पिता भी

ऐसे

 

कि रह नहीं जाती

कोई गुंजाइश

इन्तजार की भी !


 ३३

माँ

जब कर रही होती है

निमकी, ठेकुओं,पिड़कियों का हिसाब

पिता के

हिस्से आती है

पैकिंग

व्यवस्था

रख-रखाव

 

माँ की

कितनी बातें, कितने भाव

पिता का वही

संयत बर्ताव

 

 ३४ 

 एक पीढ़ी जाती है

एक पीढ़ी आती है

जिंदगी इस तरह

जगह बनाती है

 

जीवन-चक्र

चलता है

अनवरत 

 

३५

चर ही चर  

अचर नहीं कुछ

जीवन में

 

बदलती उम्र

बदलते मान

बना रहे यदि

बचपन का समीकरण

बना रहे

जीवन संतुलन में

 

चर होकर भी

अचर

सब जीवन में !