चित्र : साभार - चिन्मयानंद
सोना पिघला
नभ जल में घुला
धरा अपरा
।।।
सूरज डूबा
पिघल गया नभ
धरती स्तब्ध
।।।।
नभ का दुख
धरती स्याही-सोख
संध्या क्लान्त-सी
।।।
अस्त-व्यस्त-सा
आकाश, धरा चुप
मन उन्मन
।।।
बेचैन नभ
धरती स्थित-प्रज्ञ
मौन दर्शन
।।।
आकाश बेबस-बेचैन
धरती निश्चल-निष्चेष्ट
सूरज चला गया है, तो
उदास-सी है शाम...