नानी की याद
अदहन
चढ़ा
खदका
पानी
चावल
डला
भात
पसा
ऊँचे कोर की थाली में
दाल-भात, थोड़ा-सा निमकी
भुजिया
पतले-चौड़े आलू की
और
थोड़ा-सा
रवादार
घी !
गर्म
भाप से उठती
भूख
जगाती खुशबू हो
नानी,
जिससे
अब भी बचपन जीवित है
तुम
वो बचपन का जादू हो !
हारी-बीमारी
में नानी
तुम
देवी बन जाती थी
पीड़ा
पराजित हो जाती
जो
तुम से ठन जाती थी
माथे
पर हाथ लगा तुम
जैसे
सब हर लेती थी...
नानी
फिर तुम चली गईं
बहुत
दिनों तस्वीर तुम्हारी
दिख
जाती थी, फ्रेम लगी
फिर
हम भी जैसे भूल गए...
जाने कैसे
मुँह
अँधेरे
आज
तुम्हारी सुध आई है
फूट
पड़ी, जाने कब की
दबी
हुई रुलाई है
तुम
तारों में बसती हो
नानी
जहाँ कहीं हो
फिर
हाथ रखो माथे पर, सहला दो
पीड़ा
हर लो...
बहुत
प्रपंच है इस जीवन में
हर
क्षण मन है उलझन में
उलझन-उलझन
सुलझा दो
मन
को मेरे अच्छा कर दो
मुझको
पूरा बच्चा कर दो !
नानी ! इतना तो देखो !!
बड़ों की दुनिया बड़े जानें
बड़े-बड़े ताने-बाने
मुझको इतना छोटा कर दो
कि फिर से तुम मेरे पास रहो !!
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