चाँद
दरिया में
उतर आया है
वही
छत पे भी
चढ़ आया है
दूर, दूर, दूर तक
फैली है चाँदनी
दरिया में आके
जैसे, पिघल
रही है चाँदनी
पारे-सी
जैसे पानी पे
छिहल रही है चाँदनी
आकंठ डूब जाएँ
कि
भर लें नज़र में हम
इतनी हसीन रात है
करें तो क्या करें
आओ,
चलो बैठे रहें
देखते रहें
जागते रहें
साथ चाँद के
और
हो सके तो हो
साथ में , कॉफ़ी
तुम्हारे हाथ की....!
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