मंगलवार, 15 अक्टूबर 2019
चाँद के बहाने
चाँद
दरिया में
उतर आया है
वही
छत पे भी
चढ़ आया है
दूर, दूर, दूर तक
फैली है चाँदनी
दरिया में आके
जैसे, पिघल
रही है चाँदनी
पारे-सी
जैसे पानी पे
छिहल रही है चाँदनी
आकंठ डूब जाएँ
कि
भर लें नज़र में हम
इतनी हसीन रात है
करें तो क्या करें
आओ,
चलो बैठे रहें
देखते रहें
जागते रहें
साथ चाँद के
और
हो सके तो हो
साथ में , कॉफ़ी
तुम्हारे हाथ की....!
चाँद के बहाने
छत पर चलो
आसमान
देखेंगे बैठ के
बातें करेंगे चाँद से
चौकी पे लेट के
रात की रानी को
लिवा लाएगी हवा
पत्तियाँ चुपचाप से
देंगी कोई सदा
कुछ दूर तक
कुछ देर तक
फिर देखते रहेंगे
बैठे रहेंगे
बस,
यूँही बैठे रहेंगे
ना करेंगे कुछ
ना कुछ कहेंगे
क़ायनात
कहती रहेगी
सुनते रहेंगे हम
कुछ देर
अपने आप से
मिल लेंगे
हम ज़रा...
मंगलवार, 10 सितंबर 2019
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