कौन कमबख़्त था
जो जानता था
खेल को
बारीकियों को खेल की
जाना
तुम्हारा नाम
तो फिर जाना
है कोई एक खेल
कि
जिसको दुनिया देखती भी है
सराहती है
चाहती है
मरती है जिस पर
तुम पर
फ़िदा
कितने हुए
जो जानते थे
खेल को
जिन्होंने
समझा तुम्हारे खेल को
और
जाने
कितने-कितने
कि
जिनकी
हसरतों और हौसलों को
मिल गई जैसे
परवाज़
जो
बस थे
फ़िदा-ए-स्टेफ़ी ग्राफ़ !
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