दूसरा पक्ष :
(सही,गलत या अच्छा,बुरा ठहराने को नहीं, सिर्फ एक दूसरा पक्ष)
अरुण कमल की कविता ‘ धार’
क्या करूँगा भला
लेकर इतनी धार ?
सान पर चढ़ा
फलक चमका
किसका गला रेतूँगा
काटूँगा किसकी बात ?
चाहता हूँ लोहा
रहे बना लहू में
लेने को लोहा, कदम-कदम
पर
जीवन आसान नहीं है
क्या करूँगा आखिर
लेकर ऐसी धार ?
संग जिसके लगा उधार !
कौन सुने ताने-तगादे, मुझसे
तो
सही नहीं जाती हैं बातें भी
तीखी तेज-तर्रार !
सुनिए,
धार से लोहा नहीं बनता
लोहे में दे सकते धार !!
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