शनिवार, 23 नवंबर 2024

दूसरा पक्ष : अरुण कमल की कविता 'धार'

 

दूसरा पक्ष :

(सही,गलत या अच्छा,बुरा ठहराने को नहीं, सिर्फ एक दूसरा पक्ष)

अरुण कमल की कविता धार

 

 

क्या करूँगा भला

लेकर इतनी धार ?

सान पर चढ़ा

फलक चमका

किसका गला रेतूँगा

काटूँगा किसकी बात ?

 

चाहता हूँ लोहा

रहे बना लहू में

लेने को लोहा, कदम-कदम पर

 

जीवन आसान नहीं है

 

क्या करूँगा आखिर

लेकर ऐसी धार ?

संग जिसके लगा उधार !

कौन सुने ताने-तगादे, मुझसे तो

सही नहीं जाती हैं बातें भी

तीखी तेज-तर्रार !


सुनिए,

धार से लोहा नहीं बनता

लोहे में दे सकते धार !!

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