शनिवार, 3 अक्टूबर 2020

द्वारा / विविध भारती

 द्वारा / विविध भारती 



आवाज़ की

दुनिया के

दो दीवाने

जिनकी आवाज़ के

हैं दीवाने कितने

न जाने

 

ये

शोरोगुल

भागमभाग

गलाकाट की दुनिया

दस बजे रात के

जैसे, ख़ासकर,

स्थिर हो जाती है

सफ़े खुल जाते हैं

ज़िन्दगी के...

 

खिल उठती हैं

हसरतें कितनी

जाग उठते हैं

फ़साने कितने

न जाने

 

गो

सामने नहीं

न आसपास

मगर

समाई है

ज़िन्दगी में छाई है

उपस्थिति

जैसे

जल उठे

अगरबत्ती कहीं

किसी मोड़ पर

महक उठे

रात की रानी जैसे !

 

एक सखी - एक दोस्त

कितनों के लिए

माने कितने

न जाने !   

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