रविवार, 10 सितंबर 2023

सच का एक क्षण


 सच का एक क्षण :

      पूर्वार्द्ध

(फिर से 'दिल चाहता है' देखते हुए ) 

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तुम

इतनी सुंदर

कैसे लग सकती हो

प्रीति ज़िंटा  ! 

इतनी सुंदर !! 


कि

अगस्त की बादलों भरी

एक सूनी दोपहर

जब मन यूँ ही उदास बैठे रहना चाहे

खिलखिला उठे

सूरजमुखी के फूलों की तरह

तुम्हारी तरह... 


दुनिया भर की

अच्छी बातें

एक के बाद एक

याद आती चली जाएँ

हर उस बात को 

रास्ते से अलग करते

जिनसे मन दुखता हो


यह जानते हुए भी

कि हर सपना सच नहीं होता

मन फिर सपना बुने

कि जब तुम पूछो

" सोचो, कौन है वो जिसके साथ

एक पल बिताने के लिए

तुम्हें

हज़ार मौत कबूल है "

सहसा समझ में आए

प्रेम

प्रेम कि जिसको

ज़रा- सी चोट खाने पर भी

एक  हल्की बात बना देते हैं लोग

जाने अनजाने


होने को

हिकारत भरी नजरें भी हैं

लोभ भी, स्वार्थ भी

अहं, अहंकार भी

दुनिया में क्या नहीं है ? 

लेकिन प्रेम

प्रति- फल नहीं 

प्रति- दान नहीं 

प्रति- उपहार नहीं है


कैनवास पर 

अधूरी रह जाती है

पेंटिंग कोई

शेर अधूरा रह जाता है

एक मिसरे की तलाश में

तो कभी

प्रेम होकर भी

नहीं हो पाता मुकम्मल


तर्क की बात यह है

कुछ भी किसी का नहीं

कि कुछ भी तो तुम्हारा भी नहीं

यहाँ तक कि यह किरदार भी

सब झूठा है  ! 

जगत् मिथ्या है  ! 

लेकिन

प्रेम तो सच ही होता है  ! 

प्रेम व्यक्ति को

सुंदर बनाता है

जीवन को जीने के योग्य 


जो यह हँसी है तुम्हारी

इतनी सुंदर

उससे सच्ची बात क्या है भला  !! 


फिर तुम तो

हर फ्रेम में सुंदर दिखती हो

यहाँ तक कि उदासी वाले पलों में भी

और यकीं मानो

मैं नहीं मानता, मैं नहीं चाहता ज़रा भी

कि दुनिया की किसी भी लड़की को

उदास होना चाहिए, दुखी रहना चाहिए

दुनिया के चेहरे पर जो पानी है

उसे

सूखना नहीं चाहिए

ज़रा भी

कभी भी, कहीं भी

जानती हो क्यों  ? 


अपनी नाकामियों से

अकेलेपन से

अपनी उदासी से

भागता है आदमी

लड़ता है रोज के रोज

लड़ना पड़ता है 

जीने के लिए

दुनिया की उदासीनता से

निराशा, हताशा से अपनी

तब

ऐसी ही

अगस्त की एक

उदास सूनी दोपहर

भर जाती है कहीं 

तुम्हारी सुंदरता से

जग सुंदर हो जाता है

भर जाता है मन

कृतज्ञता से --

दुनिया कितनी सुंदर है  !! 

क्षुद्रताएँ सारी 

विसर्जित होने लगती हैं

तुम्हारी हँसी की

रश्मियों में

छलकती हुई

फूटती हुई आभा में 

खुशी की --

सिखाने से तो नहीं होता है सब  ! 

तुम कौन हो  ? 

कैसे हो सकती हो तुम

इतनी सुंदर  ?!! 


कहने वाले कह सकते हैं

दुनिया भर में बवाल मचा है

दुनिया भर का

और तुम्हें फिल्म की पड़ी है  ! 

बात तो यह सही है

और यह भी 

दुनिया कितनी सुंदर बची है

अब भी  ! 

अगर वे देखें 

तो समझें

और सोचें

कि " कौन है वो जिसके साथ

एक पल बिताने के लिए

हजार मौत कबूल हो ?"

कि वे भी 

किसी के लिए

ऐसे क्यों नहीं  ? 


प्रेम 

क्षण में समाहित सच है

सच का एक क्षण है

परम् , निरपेक्ष

क्षण भर भी

प्रेम

बहुत है

इस जीवन को

सुंदर बनाने के लिए


उस क्षण की झलक

दिखलाती हो

तुम इतनी सुंदर हो

प्रीति ज़िंटा  ! 

इतनी ही सुंदर  !! 


।।। 

सच का एक क्षण :

     उत्तरार्द्ध

 ___________


लॉन की

ओस नहाई घास- सी

अहले सुबह की लाली- सी

अभी- अभी खिले लाल

उड़हुल के फूल- सी 

तरोताज़ा, 

कोमल, स्निग्ध

कितनी सुंदर  ! 

तुम

जग के अंतर को

सुंदर करती ! 

किसी भावी पिता की

इच्छा- सी

मन्नत- सी मन की


हरसिंगार के

उजले केसरिया फूल

चुपचाप बना देते हैं 

सुंदर 

धरती को

देखा होगा

किसी न किसी सुबह

कभी न कभी

कहीं न कहीं

और यदि नहीं, तो

बहुतों ने

तुमको भी नहीं देखा होगा

नहीं देखा होगा

हरसिंगार के फूलों को

घर के पूजाघर में भी


कितने सूरज निकल पड़ते हैं

जब बेटियाँ निकलती हैं

हँस उठते हैं सूरजमुखी कितने

बेटियों के

हँसने- मुस्कुराने में


घर - बाहर

नैहर- ससुराल

सँभालते हुए

सँवारते हुए

कहाँ से कहाँ 

पहुँच रही हैं

बेटियाँ


आत्मविश्वास से भरी

जो तुम हँसती हो

दमकती हो

सुंदर, 

कितनी सुंदर लगती हो  ! 

गहनों से लदने का

अब कहाँ फैशन है

आत्मविश्वास ही

सबसे बड़ा आभूषण है

जानती हैं बेटियाँ

और तुम भी  ! 


लेकिन

जब मैं यह सोच रहा हूँ

तो साथ- साथ

यह भी सोच रहा हूँ

कि हँसने- मुस्कुराने

सँवरने- सँवारने

खुली हवा में साँस लेने के लिए

हमने जगह कहाँ छोड़ी है

जहाँ पहुँची हैं बेटियाँ, तो

अपने दम से

हमारे होने के कारण नहीं

हमारे होने के बावजूद


कोई दिन ऐसा नहीं गुजरता

जब खबरों से

मन सिहर न उठता हो

कोई राह नहीं दिखती, जो 

नज़रों से, फ़िकरों से

छिली हुई नहीं हो


हमीं ने तो 

बना रखा है चलन

'पर- रुच सिंगार' का

हमीं ने तो

रचा है यह षड्यंत्र

कि लड़कियों को लड़कों की 

बराबरी करनी है

दूसरों की अर्जित सफलता को

उनकी क्षमताओं का मापदंड

हमीं ने तो बनाया है

पिता और पति के

नाम का वजन

हमीं ने तो डाला है उनके माथे पर

उनके नाम को गुमाने को


और तब उदास पाता हूँ

प्रीति ज़िंटा तुमको  ! 

जानता हूँ

यह तुम नहीं, सिर्फ एक किरदार है

और यह झूठा है 

मगर इस उदासी में सच है

हम सबको पता है


यह उदासी

हर उस लड़की की है

जिसके मन में

अपने निर्णयों को लेकर संशय है

आत्म- ग्लानि है 


बस एक किरदार ही सही, मगर

तुम्हें क्यों चाहिए

एक तारनहार

दूसरों के हाथों ही

क्यों हो तुम्हारा उद्धार  ? 


आत्मविश्वास से भरी

बढ़ती 

आँख मिलाती 

मुस्कुराती 

हाथ मिलाती 

कितनी सुंदर लगती हो  ! 

परिदृश्य बदल जाता है

क्षण भर में

सारी मुश्किलें परे हो जाती हैं


तुम्हारी मुस्कुराहट में

ताकत है, 

सबसे बड़ी ताकत --

परस्पर विश्वास

जो जग उठता है

संग- संग मुस्कुराती आँखों में

जब तुम मुस्कुराती हो


क्षण में

छुपे मिल जाते हैं सूत्र

जीवन को

सुंदर बना जाने के

जिस क्षण

मुस्कुराती हो

तुम इतनी सुंदर लगती हो  !! 


सुंदर लगती है

हर बेटी

मुस्कुराती हुई  !!      

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