तरावट
मंगलवार, 10 सितंबर 2019
Resemblance
तब भी थी
अब भी है
अदा
निगाहे-नाज़ की
पुर-सोज़ भी
पुर-साज़ भी...
मेरी
तुम्हारी
उसकी, शायद
हमदर्द भी
हमराज़ भी...
खो चुके-से
मानी, सारे
अल्फ़ाज़ भी
आवाज़ भी
गो टँकी- सी रह गई
इक अदा
निगाहे- नाज़ की !
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