शनिवार, 2 अगस्त 2025

सावन,भादों, बारिश


सावन,भादों, बारिश

 

.

सावन चढ़ा

बादल छाए

बरस रहे

मन मेरा

मुझसे कहे –

 

चल कहीं दूर निकल जाएँ !

 २.

 बादल गरजे

बिजली कड़की

याद आ गए

दास तुलसी

घन घमंड नभ गरजत घोरा......

 ३.

 ये बादल

ये हवा

ये बारिश

 

हवा

कर रही है गुदी-गुदी

दोहरी हुई जा रहीं हैं, किलकारी मारती

शाखें, पत्तियाँ

सीसम की

 

और

जैसे कि हँस पड़ी हैं फुर्र से

पड़ने लगीं फुहारें

 

रुक गई है गुदी-गुदी

हँसी थम गई है

शाखें मगन आराम से हैं

पत्तियाँ हिल रहीं अब हौले

 

सावन की सुबह ने

दुलार किया है दिन को

कि अब

निपटाए जाएँगे बाकी काम

ज़रा चैन से !

 

४.

 सावन की आखिरी सुबह

 

कटहल झूमा

झूमा नीम

झूमे सीसम , बेल के पेड़

इक्का-दुक्का ताड़ खड़े

और छोटे पेड़ कनेर

सब झूम रहे हैं, झूम रहे हैं

झूमती हुई बारिश में

सावन की आखिरी सुबह

 

मैनों ने टिटकारी दी है

झटका है पंखों को अपने

कुछ कौए भी ढूँढ रहे हैं

सर छुपाने की जगह

 

एक कौआ

एकदम फुनगी पर बैठा

झूल रहा सावन का झूला

 

हवा कर रही है

भ्रामरी प्राणायाम्

 

एक छत पर

एक दुपट्टा लहराया है

लेने को जायजा

बारिश और हवा का

 

मौसम के बारे में

अखबारों में क्या पढ़ोगे

समाचारों में क्या सुनोगे

निकलो और घूम आओ

खुद करो महसूस

जिस्मो-जान से

 

कमरे की

एक खिड़की तो खोलो

कम-से-कम !

कह रही है

सावन की आखिरी सुबह !

  .

भादों के

गहरे काले बादल

मस्त हवाओं के

हवाले बादल

 

सावन ने किया हरा

भादों ने किया गहरा

गहरे को और भी गहरा

करने वाले बादल

 

छुप गए जो घटाटोप में

रुई के फाहे-से सफेद

धरती पर

उतर आए वही

बन के

कास वाले बादल

 

.

 

चिहुँक गई कोई याद

सिहर गई बाँह

बारिश से भारी

जो छू गया पवन

रच-बस गई

उपस्थिति

ज्यों बन के मकरंद

 

वही रूप, वही गंध !

वही छूट, वही बंध !

 

.

नीम की पत्तियों से

मिल रही है धूप गले

थपथपा रही है पीठ

 

और जैसे

बालों में फेरा है

फिर हवा ने हाथ हौले --

हिल रही हैं पत्तियाँ

 

एक कौआ

किसी शाख पर

सुखा रहा है

मेहराए हुए पंख अपने

 

दिनों की बारिश के बाद

खुल गई हैं

खिड़कियाँ सारी

सारे दरवाजे

 

शून्य में कहीं

अटक गई है दीठ

 

मन ढीठ !

 

.

हवा, पानी
मौसम, बारिश
पेड़, पौधे
कोयल, मैना
रोड, बिजली ...

बिना बात के बात
होती है
कितनी - कितनी बात  !
कितनी-कितनी बार !

मेरे खयाल में
अच्छी बात यही है ! ! 

.

दो दिनों की

लगातार

बारिश के बाद

बोल उठी है कोयल

कबूतर आ बैठे हैं मुंडेर पर

कौए करने लगे हैं काँव- काँव

किसी शाख पर

मंडराने लगी हैं नन्हीं चिड़ियाँ

इधर से उधर

 

आशाएँ

निकलती हैं

निराशाओं के बीच से

 

बस चाहिए हमको

'दो दिन' का

इंतजार  !

 

१०

 

मेंढक टर्राए

कि बादल बताए

कानों में उसके

आज रात पानी

बरसेगा जम के


पानी की झटास

बिजली का प्रकाश

हवा साँय-साँय

बादल भी गरजे

रात-रात बरसे

 

सुबह थकी-हारी

भीगी हरियारी

सूरज धीरे से

हटा बादलों को

तेज-तेज चमके

 

११.

बादलों का गरजना

इतने करीब से

कि

बज उठें

दरवाजे- खिड़कियाँ

हिल जाएँ मन- प्राण

 

साथ धार बारिश की

अनवरत

 

और

बीच के वक्फ़े में

जब बादल शांत हों

सिर्फ़ और सिर्फ़

पानी के बरसने की आवाज़

लगातार

 

व्यापने लगता है

मन में एकांत

लगता है बात करने

मन से

चुपचाप !

 

ऐसी दोपहर

दोपहर में ज़िंदगी की

मायने रखती है बहुत  !!

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