शनिवार, 3 अक्टूबर 2020

द्वारा / विविध भारती

 द्वारा / विविध भारती 



आवाज़ की

दुनिया के

दो दीवाने

जिनकी आवाज़ के

हैं दीवाने कितने

न जाने

 

ये

शोरोगुल

भागमभाग

गलाकाट की दुनिया

दस बजे रात के

जैसे, ख़ासकर,

स्थिर हो जाती है

सफ़े खुल जाते हैं

ज़िन्दगी के...

 

खिल उठती हैं

हसरतें कितनी

जाग उठते हैं

फ़साने कितने

न जाने

 

गो

सामने नहीं

न आसपास

मगर

समाई है

ज़िन्दगी में छाई है

उपस्थिति

जैसे

जल उठे

अगरबत्ती कहीं

किसी मोड़ पर

महक उठे

रात की रानी जैसे !

 

एक सखी - एक दोस्त

कितनों के लिए

माने कितने

न जाने !   

रविवार, 27 सितंबर 2020

मेरे एस पी बालासुब्रमण्यम

 मेरे एस पी बालासुब्रमण्यम

 

रफ़ी साहब के गाने को आप आँखें बंद कर के सुनिए... पूरी परिस्थितियाँ, पूरा माहौल , पूरी भावनाएँ आपके सामने उपस्थित हो जाती हैं, आप उनको महसूस कर सकते हैं- रफ़ी साहब के बारे में बोलते हुए किसी टीवी शो में एस पी बालासुब्रमण्यम ने कुछ ऐसा ही कहा था । उनके चले जाने के बाद मैं एस पी बी की यही बात उनके बारे में सोच रहा हूँ । वे अपने गायन की बदौलत मेरे और मेरे जैसे कितनों के व्यक्तित्व में रच-बस गए हैं ।

       25 सितंबर के दिन में एस पी बालासुब्रमण्यम के निधन की खबर आई । हालाँकि उनकी तबीयत बहुत खराब चल रही थी, पर इस खबर का इंतज़ार कोई नहीं करता । थोडी देर के लिए करता हुआ काम छूट गया । यू ट्यूब ने गानों को कभी भी सुनने-देखने की सुविधा दे दी है । यू ट्यूब पर गाना सर्च किया – तूने साथी पाया अपना जग में इस जग में । अप्पू राजा के इस गाने को जाने कितनी बार सुना होगा । दर्द पर इस गाने ने कितनी बार मरहम रखा होगा । गाने अपने मूल अभिप्राय से निकल कर हर तरफ फैल जाते हैं । दूसरा गाना सुना –हम न समझे थे बात इतनी सी / ख्वाब शीशे के दुनिया पत्थर की। वह दौर था जब कुछ बनने की उम्मीद लिए कुछ न कर पाने, कुछ न हो पाने की बेचैनी मन में चक्कर काटने लगी थी । और वह बेचैनी बनी रहती है, और ज़ेहन में यह गाना भी ।  तीसरा गाना – सच मेरे यार है, बस वही प्यार हैफिल्म सागर से । कुछ-कुछ तूने साथी पाया अपनाजैसा ही ।  DDLJ और मैंने प्यार कियाके पहले के दौर का सिनेमा, जब प्यार का मतलब सह जाना भी था । ये तीनों गाने repeat पर डाल कर सुने । आँख भीगी-सी लगी । शायद कुछ कमज़ोर हो जाने का अहसास ! लेकिन ये गाने तो रहेंगे न !

          अब सोचता हूँ तो लगता है उनका पहला गाना जिसने अपनी ओर खींचा था , वह था –बेखुदी का बड़ा सहारा है, वरना दुनिया में कौन हमारा है। फिल्म एक ही भूल। इसके अलावा एक दूजे के लिएके गाने तो थे ही । उसमें भी हम तुम दोनों जब मिल जाएँगे /एक नया इतिहास बनाएँगे । बिनाका गीत-माला में बहुत बार सुना हुआ रास्ते प्यार केफिल्म का गाना ये वक़्त न खो जाएभी ।  

      क्या है एस पी बालासुब्रमण्यम में जो अपनी ओर खींचे रहता है ?  रफ़ी साहब की वही खासियत जिसके बारे में एस पी बी  चर्चा करते थे । इसके अलावा मुझे लगता है एस पी बालासुब्रमण्यम में यह खासियत है कि वे आपके अंदर उतर जाते हैं, आप में समा जाते हैं । वे आपके साथ-साथ चलते हैं । दर्द आपका होता है पर गाते वे हैं । मुझ जैसे हिंदी मीडियम बिहारी लड़के के लिए, जो सिर्फ़ सोचता ही था कि हम भी मुँह में ज़बान रखते हैं, एस पी बालासुब्रमण्यम ने पूछा भी और हाल सुनाया भी । उनके गायन में कुछ तो है जो दर्द को बयां भी करता है और उससे उबरने की ताकत भी देता है । उसमें डुबाए नहीं रखता है ।

       मैंने प्यार कियासे सलमान खान को आवाज़ मिली, पर उसके पहले मेरे लिए वे कमल हासन की आवाज़ बन चुके थे । कमल हासन गाएँ तो उन्हीं-जैसा गाएँगे । अप्पू राजा का राजा नाम मेरागाना सुन कर देखिए । कुछ वैसा ही कि राज कपूर गाते तो मुकेश के जैसा ही गाते । दीवानाके आखिरी सीन में राज कपूर दो लाइनें गुनगुनाते हैं सब ठाठ धरा रह जावेगा / जब लाद चलेगा बनजारा ।  

       रफ़ी साहब के जन्मदिन के अवसर पर जुलाई में जारी किए वीडियो में वे रफ़ी साहब के बारे में कहते हैं He is like a flower. I would say he is, not was.” यही बात उनके खुद के लिए भी कितनी सही है !! 

मंगलवार, 22 सितंबर 2020

राज शेखर होने के मायने

  
(चित्र : सौजन्य - गिरींद्रनाथ झा )







   

राज शेखर होने के मायने

  

बरसों पहले कोसी की एक कथा पर एक फिल्म बनी थी । नाम तो आप जानते ही होंगे – तीसरी कसम । इस फिल्म में एक गीत था –पान खाए सैंया हमारो। इस गाने में दो लाइनें कुछ ऐसी थीं –

 

      हमने मँगाई सुरमेदानी , ले आया ज़ालिम बनारस का ज़र्दा

      अपनी ही दुनिया में खोया रहे वो, हमरे दिल की न पूछे बेदरदा

 

आज एक गीत सुन रहा था तो बरबस यह गीत याद आ गया । गाना है 2019 में आई फिल्म साँड की आँखका । झुन्ना, झुन्ना, झुन्ना । इस गाने की एक लाइन है सैंया बेदरदा फूँके है ज़र्दा । आप बताइए कि बेदरदा और ज़र्दा शब्द हिंदी फिल्म के किस गाने में आपने सुना है, कम से कम इधर के 20-25 बरसों में ? आप सवाल पूछ सकते हैं कि ये शब्द क्यों याद रखे जाने चाहिए ? वाजिब सवाल है । अच्छा यह बताइए कि कातिक, अगहन, फागुन जेठ, काँसा, पीतल, सिलवट, रूई, रेशा, अरदास, मच्छरदानी, गाँव-जवारी, सदाबहार, चमकदार, उजला, हुक्का, गुड़गुड़, बुलबुला, माथापच्ची,जुगनू, रफ़ा-दफ़ा, बवंडर, गँड़ासा, टिमटिम – ऐसे शब्द याद रखे जाने चाहिए या नहीं ? जब सारी दुनिया ओ या’, ‘ आइ नो’, ‘यू नोमें लगी हुई है तब ऐसे शब्द क्यों याद रखे जाने चाहिए ?

 

      हम देखें तो सँस्कृति के निर्वहन और निरंतरता में हमारी भाषा का बहुत बड़ा योगदान होता है । और सरकारी या किताबी भाषा नहीं बल्कि लोक की भाषा । ऊपर जो शब्द उदाहरण के तौर पर रखे गए हैं, आप ग़ौर करेंगे तो पाएँगे कि ये लोक से उठाए हुए शब्द हैं । हम अगर अपनी भाषा, अपने शब्दों से दूर होते जाएँगे तो हम धीरे-धीरे अपनी सँस्कृति से भी दूर होते जाएँगे । हमें अपनी भाषा का सम्मान करना ही होगा, उसे बचा कर रखना ही होगा ।  तीसरी कसमके गीत को लिखा था शैलेन्‍द्र ने और साँड की आँखके गीत को लिखा है राज शेखर ने । वही राज शेखर जो कोसी के हैं, मधेपुरा के हैं । वही राज शेखर जिनका आज जन्मदिन है । 

 

      बकौल राज शेखर वो एक एक्सीडेंटलगीतकार हैं । उस एक्सीडेंटके भी दस वर्ष पूरे हो चले हैं । उनके लिखे गीतों की सूची देखें तो कुल जमा चालीस- इकतालीस गीत हैं , यानी कि साल के तकरीबन चार गीत । आज के इस जो दिखता है वो बिकता हैके दौर में यह सूची काफी छोटी लगती है । लेकिन बावजूद इसके वे बराबर फिल्मों में बने हुए हैं । उनके गीत पसंद किए जा रहे हैं – जनता के द्वारा भी और फिल्म-वाले लोगों के द्वारा भी । उनके द्वारा लिखे गए पहले गीत ऐ रंगरेज़ मेरेने ही अपार सफलता का स्वाद चखा दिया । अमूमन ऐसा होता नहीं है । फिल्म थी तनु वेड्‍स मनु। इस फिल्म में उनके लिखे सारे गीत एक से बढ़कर एक । साल था 2011 । एक इंटरव्यू में उन्होंने बताया है कि ऐ रंगरेज़ मेरेऔर मन्नू भैया का करिहैंएक ही दिन बल्कि एक ही बैठक में लिखे गए गीत हैं । अगर आपने दोनों गाने सुने हैं तो राज शेखर की रेंजपर विस्मित हुए बिना नहीं रह पाए होंगे ।  उसके बाद 2013 में एक गाना आता है फिल्म इसक़में – एन्ने-ओन्ने। होली का मस्ती भरा गाना । इस गाने को देखें तो इसमें गीतकार द्वारा होली के नाम पर छूट लेने की पूरी संभावना थी , पर उसको जिस नज़ाकत से वो संभाल ले गए हैं वह देखिए – तुझे सिलवट-सिलवट चख लें /हम पारा- पारा पिघलें । गुलज़ार राज शेखर के पसंदीदा गीतकार हैं, मालूम नहीं उन्होंने यह गीत सुना है कि नहीं ? ‘इसकके बाद 2105 में तनु वेड्‍स मनु रिटर्न्‍स। इस फिल्म का एक गीत, जो शायद उतना चर्चित नहीं हुआ, - हो गया है प्यार तुमसे / तुम्हीं से एक बार फिर से । प्यार की एक नई व्याख्या । और इतनी मखमली! 2016 में आई क्यूट कमीना। इसके गानों की भी चर्चा उतनी नहीं हुई । भोपाल शहर पर लिखी गई कव्वाली भोपाल शहर के किरदार को आँखों के सामने रख देती है । सिंगल चल रिया हूँगीत में एक पंक्ति है मालवा के आसमाँ पे / किसने की फुलकारियाँ ये। किसी जगह , किसी प्रदेश को इतने रोमांटिक रूप में गाने में शामिल कर लेना गाने में एक अलग कशिश पैदा कर देता है । कशिश तो इसी फिल्म के एक और गीत शाम होते हीमें यह लाइन भी पैदा करती है – नीले सैटिन में लिपटा ये शहर / चमके जुगनू-सा‘  तनु वेड्‍स मनु रिटर्न्‍सका एक गीत ओ साथी मेरे’ , उसके गायक सोनू निगम को हद से ज्यादा पसंद है । 2017 में एक फिल्म आई थी फ्रेंडशिप अनलिमिटेडइसमें भी सोनू निगम का गाया , राज शेखर का लिखा एक गीत है – तेरे बिन ओ यारा। यह गीत भी ओ साथी मेरेकी टक्कर का ही है । इसी साल एक फिल्म आई करीब करीब सिंगल। इसमें राज शेखर के दो गीत थे । जाने देजो लोगों की ज़ुबान पर चढ़ गया, और उतरा ही नहीं । पर इसी फिल्म का एक दूसरा गीत खतम कहानीएक अलग ही चोखे रंग का गीत है ।  2018 में एक छोटी-सी फिल्म आई मेरी निम्मो। यह उस समय भी ओ.टी.टी पर ही रिलीज़ हुई थी । इस फिल्म में तीन गीत । एक गीत की कुछ लाइनें देखिए – आते-जाते पल से न जी लगाओ...क्या ये भी बीत जाएगा / हाँ ये भी बीत जाएगा । यह गीत अंग्रेज़ी की एक कविता This, too, shall pass away”  ( Paul Hamilton Hayne) की बरबस ही याद दिलाता है जैसे शैलेन्‍द्र का लिखा गीत हैं सबसे मधुर वो गीत जिन्हें हम दर्द के सुर में गाते हैं , Our sweetest songs are those that tell of saddest thought” ( P.B. Shelley)  कविता की  । शैलेन्‍द्र भी राज शेखर के पसंदीदा गीतकार हैं ।

  

      2018 में तीन फिल्में और चार गीत और आए । हिचकीमें खोल दे परऔर मैडम जी गो ईज़ी’, ‘वीरे दी वेडिंग में आ जाओ नाऔर तुम्बाडका टाइटिल सॉन्‍ग । तुम्बाडका गीत जरूर सुना जाना चाहिए । इसमें शब्दों से जो ध्वनियाँ उत्पन्न की गई हैं  वो एक दूसरे ही लोक में ले जाती हैं । ऐसा कर पाना भी संभवत: राज शेखर के बस का ही था । 2019 में तीन फिल्में । उरी’ , ‘जबरिया जोड़ीऔर साँड की आँखउरीके गीत बह चलाकी यह लाइन देखिए – छोटी-सी ज़िद होगी, लंबी-सी रातें /फिर भी प्यार रह जाएगा । यह पंक्ति चमत्कृत कर देती है । जबरिया जोड़ीके मच्छरदानीमें एक तरफ तो मच्छरदानी शब्द का इस्तेमाल होता है तो दूसरी तरफ क्वीन, स्वीटी, पासवर्डजैसे शब्द । यानी कि शब्द सहज रूप से ही चले आते हैं गीतों में बेखटके, बिना किसी को खटके । साँड की आँखपूरा एल्बम ही खास है । गीतों की विविधता के कारण और आशा भोंसले के गाए गीत आसमाँके कारण । इस गीत के बारे में आशा जी ने किसी साक्षात्कार में कहा है कि ऐसे गाने अब बनते नहीं हैं । 2020 में फिर से एक बार बम्फाड़सिनेमाघरों में न रिलीज़ हो कर ओ.टी.टी पर हुई , हालाँकि तब तक देश में लॉकडाउन भी लग गया था । मालूम नहीं इस फिल्म के गानों का एल्बम क्यों नहीं रिलीज़ किया गया है अब तक । यू ट्यूब पर बिखरे हुए इसके गानों को सुनिए , या फिर फिल्म देख कर सुनिए । बम्फाड़के गीतों की कुछ पंक्तियाँ – ऐसे तो कोई खास बात है नहीं / तू है तो ज़िंदगी ये कीमती लगे , ज़िक्र गुलाबी तेरा जितना है / उतना ही मैं भी गुलाबी अब हो रहा , मैं मुंतज़िर नहीं / पर इंतज़ार-सा या फिर जीभ है गँड़ासा इनकी । एक तरफ नर्मो-नाज़ुक इश्क की बातें तो दूसरी तरफ गँड़ासा – उतनी ही सहजता से । ओ.टी.टी पर ही रिलीज़ हुई रात अकेली हैमें राज शेखर का एक गीत है आधे-आधे-से हम। इस गीत को सुनिए और सोचिए कि कविता और क्या होती है ? राज शेखर ने एक शॉर्ट फिल्म’ ‘द गाइडके लिए भी एक गीत लिखा है , उसका भी उल्लेख जरुरी है । 2016 में आई इस शॉर्ट फिल्मके गीत की कुछ पंक्तियाँ – अगहन, फागुन , तुमसे ही जेठ , या फिर बँध गए हैं मौसमों के / सारे ही अब छोर तुमसे – क्या यह कविता नहीं है ?

 

      राज शेखर के गीतों में उनका लोक उनके साथ चलता है । लोक जहाँ पर वे रमते हैं, लोक जहाँ से वे आते हैं । बिहार के , खास कर मिथिला/कोसी क्षेत्र के शब्दों को वे अपने गीतों में बड़ी सहजता से ले आते हैं । खिसियाना, धकधकाना, हकबकाना जैसे शब्द मुख्य धारा की हिंदी फिल्मों में आ रहे हैं और स्वीकार किए जा रहे हैं । इसका कुछ श्रेय राज शेखर को भी जरूर जाता है । अंग्रेज़ी और पंजाबी शब्दों को हम पहले ही हिंदी फिल्मों के गीत में स्वीकार कर चुके हैं । राज शेखर ने संख्या की दृष्‍टि से कम ही गीत लिखे हैं । यह दो बातों को इंगित करता है – एक कि राज शेखर हड़बड़ी में नहीं हैं दूसरे उनके काम की गुणवत्ता लोगों को उनसे बाँधे रखी है । अब जबकि फिल्मों में एक तरह से गानों की जगह कम होती जा रही है, राज शेखर के गीतों का आते रहना और भी जरुरी है ।

 

शैलेन्‍द्र ने अपने आत्म-परिचय में लिखा था – फिल्म-गीत लिखना अधिकतर बहुत आसान समझा जाता है । सीधे-सादे शब्द , घिसी-पिटी तुकें, कहा जाता है कि फिल्म-गीत और है क्या ?  मेरा अनुभव कुछ और है । फिल्म-गीत-रचना मेरी समझ से एक विशेष कला है । शैलेन्‍द्र पर चर्चा करते हुए डॉ. बुद्धिनाथ मिश्र ने लिखा है – मेरी बड़ी इच्छा है कि शैलेन्‍द्र के गीतों की साहित्यिक व्याख्या की जाए । ... यदि शैलेन्‍द्र के गीतों को समुचित ढंग से व्याख्यायित किया जाता तो यह दुरवस्था फिल्मों भी नहीं आई होती

 

हालाँकि यह कहना अभी शायद जल्दी होगा, लेकिन जिस तरह से वे चल रहे हैं, शैलेन्‍द्र और डॉ, बुद्धिनाथ मिश्र , दोनों, की बात भविष्य में राज शेखर पर भी लागू होगी ।

 

राज शेखर खूब लिखें, खूब अच्छा लिखें ।   

 

शनिवार, 5 सितंबर 2020

हिरना भागल जा ता हो
कस्तूरी मिलते नइखे

केतनो जोर लगाव हो
बोझवा त हिलते नइखे

कइसन तोर निसाना हो
गोटिया त पिलते नइखे

खाली सुतले-सुतला हो
घसवो ले छिलते नइखे

पनिया केतना डलब हो
फुलवा सन खिलते नइखे

घाव दरद बड़ देता हो
कोनो ऊ सिलते नइखे

सोमवार, 31 अगस्त 2020

सूरज डूबा...

चित्र : साभार - चिन्मयानंद


सोना पिघला
नभ जल में घुला
धरा अपरा

।।।

सूरज डूबा
पिघल गया नभ
धरती स्तब्ध 

।।।।

नभ का दुख
धरती स्याही-सोख
संध्या क्लान्त-सी 

।।।

अस्त-व्यस्त-सा
आकाश, धरा चुप
मन उन्मन 

।।।

बेचैन नभ
धरती स्थित-प्रज्ञ
मौन दर्शन 

।।।

आकाश बेबस-बेचैन
धरती निश्चल-निष्चेष्ट
सूरज चला गया है, तो
उदास-सी है शाम...

शुक्रवार, 7 अगस्त 2020

                              चित्र : सौजन्य - चिन्मयानंद
                             
तांबई मस्तक
निर्भीक निगाहें
तुम जो सुना चाहो
कह देंगी क्या चाहें...

है फ़ौलाद इरादों में
तुमको बता दें हम
बचपन,
अभी बचपन है
कभी हम भी जवां होंगे
तुम भी देख लेना
हम 
कल हो के क्या होंगे !!

छुई -मुई

                              चित्र : सौजन्य - चिन्मयानंद

आँखों भरी 
हरियाली
खिलता हुआ गुलाबी

छुई-मुई
छुई-मुई

छूते सकुचाए
लजाए, शरमाए

देखिए,
देखते रहिए
छूइए मत !

जैसे
छुई-मुई-सा
मन
जीवन
स्वप्न

'हैंडल विद केयर' !!


सोमवार, 3 अगस्त 2020

308


हे शिव, हे शंकर
हे भोले भंडारी
जो मरजी तुम्हारी
वही अरजी हमारी

तुम चाहो संहारो
तुम चाहो भव तारो
जो चाहो हो जाए
क्या काम भला भारी

अब कुछ तो कर दीजै
सुधि  सबकी ले लीजै
हैं भय में संशय में
चुप आशाएँ सारी

कुछ अच्छी खबरें हों
खुश हों सब, न डरे हों
अवधि बहुत बीती,अब
भली हो होनिहारी         

लालिमा साँझ की


                       चित्र व 'लालिमा साँझ की' पंक्ति - चिन्मयानंद                             

ललछौहीं ललछौहीं
लालिमा साँझ की
अपने में बाँध रही
लालिमा साँझ की

बादल में पसर रही
लालिमा साँझ की
मन में है उतर रही
लालिमा साँझ की

पेड़ों पर परछाहीं
लालिमा साँझ की
फैली हुई सियाही
लालिमा साँझ की


बस कि देखते रहें
लालिमा साँझ की
कि बैठे छकते रहें
लालिमा साँझ की

शनिवार, 1 अगस्त 2020

सपनों का रंग गुलाबी


दस जोड़ी आँखें
आँखों में कितनी बातें
देखिए तो सही...

कि जैसे
बातों का रंग गुलाबी
उनके 
सपनों का रंग गुलाबी
कि ऐसा खिलता हुआ गुलाबी
कहिए तो
देखा है कहीं ?! 

गुरुवार, 28 मई 2020

अपने लिए जिये तो क्या जिये...






                    अपने लिए जिये तो क्या जिए... 



राँची में एक बस स्टैंड है, खादगढ़ा बस स्टैंड । वहाँ से राँची रेलवे स्टेशन की ओर चलने पर एक किलोमीटर से भी कम दूरी पर दाहिने हाथ पर बिशप स्कूल है । स्कूल के ठीक सामने सड़क की दूसरी तरफ एक घर है । उसी घर में सुरेखा तिग्गा अपने परिवार के साथ रहती हैं – पति जॉन नोएल कछप , बेटा सुशांत और छोटी बेटी निकिता । बड़ी बेटी जूही नौकरी के सिलसिले में मुम्बई । सुरेखा एसबीआई से और जॉन एजी ऑफिस से लंबी सेवा के बाद सेवानिवृत्त हो चुके हैं ।

कोई 3-4 महीने पहले सुरेखा मैडम से भेंट हुई थी। बीमार- सी थीं, कुछ परेशान सी । फिर मैं भी व्यस्त रहा , वो भी । लॉकडाउन में समय ही समय होने के बावजूद सिर्फ सोचता ही रहा कि फोन कर के हाल-चाल ले लूँ …। 24 मई की शाम में उन्हीं का मेसेज आ गया व्हाट्सएप पर । उन्होंने बताया कि कोई 15 दिनों से वो लौटते हुए प्रवासी मजदूरों के लिए थोड़ा-बहुत कुछ कर रही हैं ...

रिटायरमेंट के बाद सुरेखा मैडम और उनके पति ने सोचा घर को थोड़ा ‘रेनोवेट’ किया जाए । काम शुरु करने के लिए बैंक से पैसे भी निकाल लिए । लेकिन पैसों का इस्तेमाल भी लगता है, पहले से ही तय होता है ! किसी के तय करने से नहीं होता कुछ ।

एक दिन सुबह-सुबह घर के बाहर कैम्पस में बैठी हुई थीं कि दिल्ली से उड़ीसा जाता हुआ   प्यास से बेहाल एक लड़का उनके दरवाजे को खटखटाता है । लड़के को तुरत पानी पिलाने के बाद, उन्होंने कुछ और जरूरत के बारे में पूछा । जवाब में लड़के ने बस बोतल में पानी ही लिया । लड़के के जाने के बाद कुछ देर तक वो सोचती रहीं । अगली सुबह भूख-प्यास से बेहाल एक परिवार सामने आ गया । परिवार में छोटे बच्चे भी थे । उनको भी खाने-पीने का सामान दिया । लेकिन उनके जाने के बाद मन में बेचैनी बनी रही । उस दिन रात को भी उन्हीं लोगों के चेहरे याद आते रहे । नींद बहुत देर से आई । लेकिन सुबह जब आँख खुली तो निश्‍चय हो चुका था । घर के ‘रेनोवेशन’ का काम इंतज़ार कर सकता है । घर के सामने से गुजरने वाले इन लोगों की मदद करना अभी सबसे ज्यादा जरूरी है । घर में भी सब लोगों की सहमति इसी पर बनी । दिन में बैंक जा कर मैडम, बड़े नोट, जो घर के काम के लिए निकाले थे,  बदल कर  छोटे नोट ले आईं ।

शुरुआत पानी की बोतल , बिस्किट के पैकेट और सौ-सौ रुपए देने से की गई । जल्दी ही मुम्बई से जूही ने सुझाव दिया केले भी जोड दो । केले भी जुड़ गए । उस सड़क से गुजरने वाले हर प्रवासी मजदूर को रोक कर ये सब दिया जाने लगा । मजदूरों को ले कर जाती हुई बसों को भी रोक कर सामान देने की व्यवस्था कर दी गई । कहाँ-कहाँ से और कहाँ-कहाँ के लिए लोग सड़कों पर नहीं हैं ! मुम्बई, सिकंदराबाद, विजयवाड़ा, भावनगर, गुड़गांव, दिल्ली, उत्तरकाशी, बनारस - पूरा देश ही लगता है, सड़क पर है ! हम घरों में हैं तो शायद पता नहीं चलता ।

 रोज सुबह चार बजे से रात के आठ बजे तक । बिना नागा । आज बाइसवाँ दिन है । परिवार के लोग तो लगे ही रहते हैं,  शुरुआत के कुछ दिनों के बाद मुहल्ले के कुछ युवा ‘वॉलेंटियर’  बन कर आ गए हैं और सामान बाँटने में मदद कर रहे हैं । सुशांत, जो एक बैंक में काम करते हैं, अपने दोस्तों के साथ मिलकर हर तीन-चार दिन में 300-400 लोगों के लिए खाने का पैकेट बनवाते हैं और वितरित करते हैं । पूरा परिवार ही लग गया है एक हो कर । मुम्बई से जूही लगातार संपर्क में हैं । अभी कल ही उनका सुझाव आया कि गर्मी बढ़ गई है , ओआरएस भी जोड़ दो । ओआरएस के सैशे भी दिए जाने लगे हैं । अभी बीते दिनों जूही ने अपना जन्मदिन कुछ इस तरह मनाया कि कटिहार के पाँच मजदूर जो मुम्बई में फँसे थे ,और उनके घर के पास ही रहते थे,  उनके टिकट का इंतजाम और रास्ते के लिए अलग से कुछ और पैसे का इंतजाम कर उनको घर भिजवाया । इस काम में उनके दोस्तों ने भी मदद की । 

 सुरेखा मैडम कहती हैं कि तीन-चार महीने पहले एक निराशा उनके मन में घर करने लगी थी । तबीयत भी ठीक नहीं रहती थी । लेकिन जब से यह काम ठान लिया है सारी निराशा, दर्द-पीड़ा गायब हो गई है । सुबह चार बजे से रात के ग्यारह बजे तक की व्यस्तता के बावजूद थकान का नामोनिशान नहीं है । बल्कि अब तो और ठीक रहना है । अभी बहुत कुछ करना है । जो मन को अच्छा लगे । घर तो बनता रहेगा ।

यह कहानी मैं क्यों सुना रहा हूँ ? मैं पिक्चर में कहाँ हूँ ?

थोड़ा पीछे जाना होगा । जनवरी 2014 । जब मेरा तबादला राँची के एचईसी सेक्टर2 शाखा में हुआ । उस शाखा में सुरेखा मैडम भी थीं । उस समय भी उनका व्यवहार, उनका काम प्रभावित करता था । जिस तरह से वो ग्राहकों से बात करतीं थीं, वो स्थिति को पूरा कमांड करने वाला होता था । ब्रांच के बाहर भी कहीं कैम्प करना हो, कहीं मिलना-मिलाना हो , हर जगह वो मुस्तैद । जनधन खातों के शुरुआती दौर में ब्रांच के बाहर , कैम्पस में ही, टेबल-कुर्सी लगाकर बड़ी-बड़ी भीड़ का कई-कई दिनों तक सामना करना, उनका काम करना कोई आसान काम नहीं । लेकिन उसको भी बखूबी निभाया उन्होंने ।

 एक दिन बातों ही बातों में मैंने ज़िक्र किया कि उनके पति का भी उनको बहुत सपोर्ट है । उन्होंने कहा – “ हाँ, हाँ , एकदम अनिल कपूर जैसे हैं यंग और फिट !” मैंने जवाब दिया – “आप भी तो माधुरी दीक्षित हैं ! माधुरी दीक्षित भी नए‌- नए  क्षेत्रों में काम कर रही हैं , अभी तो अंग्रेजी में गाना ‘लॉन्च’ किया है । आप भी बैंक के बाद नए -नए और अच्छे काम कर रही हैं” ।

 उम्र सचमुच एक संख्या ही तो है ! दो रिटायर्ड लोग लगे हुए हैं कि अभी बहुत कुछ करना है । पॉलो कोएल्हो ‘पर्सनल लीजेंड’ की बात करते हैं, ‘ एंथुज़िआज़्म’ की बात करते हैं । यही नहीं है ?

आते-जाते एकदम अजनबी लोगों के बात कर लेना ।उनका हाल पूछ लेना । इस पूछ लिए भर जाने से उनका रो पड़ना । उनका बार-बार , बार-बार थैंक्यू कहते जाना - तसल्ली से भर देता है , कहने और सुनने वाले दोनों को ।

अच्छा काम करने का भी अपना एक अलग ही आनंद है । यह आनंद भी एक नशा ही होता है ! और शायद इसका ‘चेन रिएक्शन’ भी होता है ! है कि नहीं ??!!


यू ट्यूब पर खोजकर मैंने गाना बजा दिया है - संजीव कुमार पर फिल्माया गया एक खूबसूरत गाना , फिल्म बादल, गायक मन्ना डे, बोल जावेद अनवर के और संगीत उषा खन्ना का –

“ अपने लिए जिये तो क्या जिये

  तू जी ए दिल ज़माने के लिए”

शनिवार, 9 मई 2020

अब और क्या ?



ये किन गुनाहों की
सज़ा दी गई उन्हें ?

क्या उनका कसूर ये था
कि वो घरों से दूर थे
क्या उनका कसूर ये था
कि वो लौटने को मजबूर थे
या उनका कसूर ये था
कि वो मजदूर थे ??
ये किन गुनाहों की
सज़ा दी गई उन्हें ?!!

रोटी-रोज़ी के मसले हैं
ये मसले कोई कम तो नहीं
ये मसले कोई क्या कम थे
जो हालात बिगड़ते जाते हैं ?

सवाल करे भी तो क्या ?
सवाल करे भी तो किससे ?
सवाल करे भी तो कौन ?

एक ढोल उठाया जाता है
और खूब पीटा जाता है
कुछ नाम उठाए जाते हैं
और खूब घसीटा जाता है
दिशा-दिशा से जैसे फिर
बंदूक निकाली जाती है
इसके-उसके-सबके
सर पे तानी जाती है

कहने-सुनने-समझने वाले
फिर सबको समझाने वाले
हालात पे काबू पाने वाले
अंधेरे में हैं सब के सब, बस
तुक्कों के तीर चलाए जाते हैं

मैं सोचने बैठा हूँ देखो
मैं कितना ऐंठा हूँ देखो
घर में आटा- चावल है
लौकी भिंडी परवल है
बिजली-बत्ती-पानी है
मैं न्यूज़ चलाए बैठा हूँ

जीना मरना दोनों मुश्किल
बढ़ना रुकना दोनों मुश्किल
बर्दाश्त की कोई हद होगी
उस हद से गुजरना अब मुश्किल

मरने से अच्छा जीना है
रुकने से अच्छा चलना है
सब जानते हैं सबकी खातिर
कुछ करते रहना अच्छा है

जो जैसा है उससे बेहतर
थोड़ा चाहे कम कर कर
तुम भी जी लो
हम भी जी लें
वो भी जी लें
हम सब जी लें...

प्लीज़ !
प्लीज़!
प्लीज़ !!

गुरुवार, 7 मई 2020

रहने नहीं देंगे, जाने नहीं देंगे



रहने नहीं देंगे
जाने नहीं देंगे
लेने नहीं देंगे
लाने नहीं देंगे

गुलामी किसको कहते हैं
भला कोई तो बतलाओ
कोई तो आईना लाओ
बड़े साहब को दिखलाओ

कि किसने दुख को बाँटा है
महीनों पेट काटा है
कि घर जाना जरूरी है
समय मुश्किल से काटा है

तुम खिचड़ी पकाते हो
जनता को छकाते हो
डराते हो, सताते हो
उम्मीदों को थकाते हो

चंद जेबें तुम्हारी हैं
दिनो-दिन होनी भारी हैं
हमारे हाथ मुँह को हैं
दिन भी दिन पर भारी हैं

इन्सान नहीं सामान ही हैं 
ज़िंदा एक फ़रमान ही हैं 
जबड़े जो भींचे रहते हैं
दबे हुए अरमान ही हैं 

अब कितना समझाओगे
बातें कितनी बनाओगे
समझा के भला क्या पाओगे
नजरों में गिरते जाओगे





शुक्रवार, 17 अप्रैल 2020

बान्द्रा वेस्ट : चौदह अप्रैल दो हजार बीस


बान्द्रा वेस्ट : चौदह अप्रैल दो हजार बीस
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घर जाना है, घर जाना है
साहब हमको घर जाना है !
तुमको खाली समझाना है
देखो साहब, घर जाना है

खोज-खबर लेने से क्या है
माना वाजिब सब चिंता है
एक बार बस घर जाना है
घर पर चाहे मर जाना है !

साहब देखो तुमको क्या है
हमको देखो कैसा क्या है
तुम खबरों से विचलित, हमको
बस खबरों में भर जाना है

अब हम खतरा, हम मुश्किल हैं
रोते चुपचुप दिल ही दिल हैं
हम ना होंगे, तब देखेंगे
किसने क्या-क्या कर पाना है

हम क्या समझें, हम क्या जानें
हम क्या देखें, हम क्या मानें
तिल-तिल कर मरने से अच्छा
एक बार में मर जाना है !

धूल पड़ा हो, बैठा हो तन
महल कि गलियाँ, या बन उपबन
जो भी फूल खिला जीवन का
उसको आखिर झर जाना है

घर में बैठे जब कहते हैं
थोड़ा-सा तो सब सहते हैं
क्या बतलाएँ क्या लगता है
अब कितना सह कर जाना है !

हमको तुमसे बैर नहीं है
अपना कोई, खैर, नहीं है
जंग अकेले ही लड़नी है
और नहीं अब भरमाना है

रोजी-रोटी और भला क्या
किस्मत ने है ऐसा पटका
तंगी कर देती है क्या-क्या
यह जीते-जी मर जाना है !

हमने कितना दाम लिया है
तुमने कितना नाम लिया है
नाम लिया बदनाम किया है
यहाँ नहीं फिर कर आना है

तुम आगे हम पीछे होंगे
तुम ऊँचे हम नीचे होंगे
जिसके हिस्से जितना होगा
उसको उतना भर पाना है

किसके आगे रोएँ जाकर
पाप कहाँ अब धोएँ जाकर
सारे आँसू सूख चुके हैं
अब तो बस हँस कर जाना है
अपने में धँस कर जाना है
मुट्ठी को कस कर जाना है
जाना है बस अब जाना है
बस बेबस हैं, अब जाना है
देखो साहब, घर जाना है
साहब हमको घर जाना है
घर जाना है, घर जाना है
घर जाना है, घर जाना है !!

भोलाराम जीवित [ भगत -बुतरू सँवाद 2.0]

  भोलाराम जीवित [ भगत - बुतरू सँवाद 2.0] वे भोलाराम जीवित हैं। पहले के जमाने में आपने भी इस तरह के नाम सुने होंगे-- कप्तान, मेजर आदि। जरूरी ...